चौराहे पर जिदगी, सड़क पर कट रहे दिन और रात

सीतामढ़ी। इलाके में आई बाढ़ ने गरीबों की जिदगी बदरंग कर दी है। बाढ़ के पानी में गरीबों के अरमान बह गए हैं। ताश के पत्ते की तरह आशियाने बिखड़ गए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Aug 2019 12:16 AM (IST) Updated:Thu, 01 Aug 2019 06:33 AM (IST)
चौराहे पर जिदगी, सड़क पर कट रहे दिन और रात
चौराहे पर जिदगी, सड़क पर कट रहे दिन और रात

सीतामढ़ी। इलाके में आई बाढ़ ने गरीबों की जिदगी बदरंग कर दी है। बाढ़ के पानी में गरीबों के अरमान बह गए हैं। ताश के पत्ते की तरह आशियाने बिखड़ गए हैं। बिखड़े आशियानों को संभालने और एक बार फिर बसने की चुनौती के बीच अब गरीबों की खुद की जिदगी चौराहे पर खड़ी है। बेबसी और आने वाले कल की चिता के बीच गरीबों की जिदगी अब सड़क पर कट रही है। बाढ़ का खतरा हालांकि अभी पूरी तरह टला नहीं है। नेपाल में बारिश का दौर जारी है। अब भी सैकड़ों गांव जल जमाव की गिरफ्त में है। घर ध्वस्त हो गए है। सड़कें टूट गई है और बिजली गुल है। ऐसे में जिले के सैकड़ों बाढ़ पीड़ितों की जिदगी सड़कों पर कट रही है। लोग अब भी विस्थापित जिदगी जीने को विवश है। साथ ही शासन-प्रशासन की ओर राहत और सहायता के लिए टकटकी लगाए बैठे है। सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर हाईवे के रून्नीसैदपुर में हाईवे के किनारे अब भी 70 परिवार प्लास्टिक टांग रहने को विवश है। पिछले 15 दिनों से लोग इसी तरह कड़ाके की धूप और मूसलाधार बारिश को झेलते हुए जाग-जाग कर रात काट रहे है। दिन तो किसी तरह कट जा रहा है लेकिन रातें लगातार लंबी हो रही है। लोग बाढ़ के पानी के उतरने का इंतजार कर रहे है। लेकिन बीच-बीच में होती बारिश लोगों का इंतजार बढ़ा रही है। फिलहाल जो लोग हाईवे के किनारे रह रहे है वह जैसे-तैसे सड़क पर ही खाना बना कर खा रहे है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूरी पर निर्भर है। 15 दिनों में लोगों को 12 दिन तक मजदूरी नहीं मिली। अब धीरे-धीरे मजदूरी मिल रही है। सड़क पर बने तंबू में लोग बच्चों और मवेशियों के साथ रहने को विवश हैं। शाम ढलने के बाद लोग हाईवे पर पहरेदारी करते है, ताकि बच्चे हादसे का शिकार नहीं बने। 15 दिनों से वक्त गुजार रहे रेखा देवी, नथुनी मल्लिक, बृज लाल मल्लिक, किरण मल्लिक, दिलीप मंडल, जितेंद्र मल्लिक, वीरेंद्र मल्लिक, फकीरा पासवान, जय किशोर, नवीन कुमार, शत्रुघ्न साह और भोला पासवान आदि बताते हैं कि अब तक किसी ने दर्द बांटने तक की कोशिश नहीं की है। राहत के नाम पर केवल एक-एक पॉलीथीन ही दी गई है। पीड़ितों का कहना हैं कि उन्हें अब तक राहत मद की छह हजार की राशि नहीं मिली है। बताया कि कुछ लोगों को सूची से वंचित करने की भी साजिश की जा रही है। बहरहाल, कुदरत की मार झेल रहे इलाके के गरीबों की जिदगी तत्काल हाईवे के किनारे नंगी जमीन और खुले आसमान के बीच कट रही है। वहीं पीड़ित अपनी गरीबी को लेकर ईश्वर और अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।

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