अनलॉक का मतलब कोरोना संकट से आजादी नहीं

चाहे गांव हो या शहर मौजूदा कोरोना संकट को लेकर कम ही लोग संजीदा नजर आ रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Jun 2020 07:54 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 06:19 AM (IST)
अनलॉक का मतलब कोरोना संकट से आजादी नहीं
अनलॉक का मतलब कोरोना संकट से आजादी नहीं

शिवहर। चाहे गांव हो या शहर मौजूदा कोरोना संकट को लेकर कम ही लोग संजीदा नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन अवधि में थोड़ा डर थोड़ी सावधानी जरूर दिखाई देती थी। लेकिन, अनलॉक-1 के बाद की बेफिक्री से ऐसा लगता है कि लोग भूल से गए हैं कि हम कोरोना संक्रमण काल से गुजर रहे। स्मरण रहे कि अनलॉक का मतलब पहले जैसी आजादी हरगिज नहीं है। सच्चाई यह है कि अब अपने बचाव की जिम्मेदारी हमें खुद करनी है।

चौक चौराहों से लेकर जिला मुख्यालय तक लोगों की आमोदरफ बिल्कुल पहले जैसी दिख रही। सभी दुकानें नियमित रूप से खुल रहीं हैं। वहां ग्राहकों की भीड़ भी दिख रही है। सरकार और जिला प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों के मुताबिक सभी को मास्क लगाना और शारीरिक दूरी बनाए रखना सभी के लिए जरूरी है। लेकिन, लापरवाही का आलम यह है कि बहुतायत ऐसे लोग है जो मास्क और शारीरिक दूरी की अहमियत को भूल सा गए हैं। छोटी बड़ी सभी दुकानों पर पहले हम की तर्ज पर ग्राहक उमड़ रहे। होटल, चाय-नाश्ते की दुकानें भी पूर्ववत चल रहीं हैं। आज हुई बारिश के कारण गुदरी बाजार स्थित सब्जी मंडी में ग्राहकों की तादाद कम दिखी। लेकिन, नियम तोड़ने वाले अधिक दिख रहे थे। कोरोना को लेकर जरूरी करार मास्क पहनने की जहमत कोई नहीं उठा रहा। जबकि, अब मास्क की कीमत भी काफी कम हो गई है। वहीं हर जगह इसकी उपलब्धता भी है। हद तो यह कि पंचायत स्तर पर सभी परिवारों में चार-चार मास्क मुफ्त दिए गए हैं। लेकिन इस सुरक्षा कवच को लगाने वाले लोग गिने चुने दिख रहे।

ऑटो में सफर करने के भी कायदे निर्धारित किए गए हैं। लेकिन इसकी भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ठूंस- ठूंस कर यात्रियों को ढोया जा रहा।

नहीं सुधर रही बैंक शाखाओं व एटीएम की हालत कोरोना काल के ढ़ाई महीने होने को है। लेकिन, बैंक शाखाओं की हालत नहीं सुधरी। वही हाल एटीएम का भी है। आज भी वहां ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही। यह हाल तब है जब वहां सुरक्षा गार्ड की तैनाती होती है। ऐसे में सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन स्थानों पर पुलिस की मौजूदगी नहीं वहां लोग किस कदर नियमों का उल्लघंन कर रहे होंगे। गांवों में सज रहीं चौपालें

जब शहर की स्थिति ऐसी हो तो गांवों की हालत क्या बयान करना। वहां लोग समूहों में बैठ आज भी देश दुनिया की बातें और कोरोना को लेकर चर्चा करते दिख जाते हैं। लेकिन, इससे बचाव के लिए तय एहतियात की अनदेखी कर रहे हैं।

बसें खुल रहीं मगर यात्रियों की संख्या कम सरकारी निर्देश के मुताबिक बसें चलने लगी हैं। लेकिन, देखा जा रहा है कि यात्रियों की संख्या एक चौथाई से भी कम है। इस बाबत लोगों का कहना है कि बाहर यात्रा करने से लोग परहेज कर रहे है। हालांकि, बसों में साफ- सफाई का ख्याल रखा जा रहा फिर भी लोग नहीं पहुंच रहे। आलोक ट्रेवल्स के स्थानीय प्रबंधक रामप्रवेश सिंह बताते हैं कि जब तक बस नहीं चल रही थी एक बेचैनी थी कि कब लॉकडाउन से मुक्ति मिले कितु अभी जिस परिस्थिति से जूझ रहे प्रतीत होता है कि बसें बंद थी तभी ठीक था। मौजूदा हालात में यात्रियों की संख्या इतनी कम हो गई है कि ईंधन की कीमत बामुश्किल निकल पा रही है। चालक एवं अन्य स्टाफ का वेतन और रोजाना का खर्च अलग है। बसों में जो यात्री सफर कर रहे वे या तो इलाज कराने जा रहे या फिर अन्य प्रदेशों में काम पर लौटने लगे हैं। इनमें अधिकांश दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों से लौटे हैं।

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