प्लीज! अपनी पसंद को मेरी पसंद न बनायें

By Edited By: Publish:Thu, 17 Apr 2014 11:40 PM (IST) Updated:Thu, 17 Apr 2014 11:40 PM (IST)
प्लीज! अपनी पसंद को मेरी पसंद न बनायें

प्रमोद टैगोर, संझौली (रोहतास) : बक्सर लोकसभा क्षेत्र का कन्या प्राथमिक विद्यालय सूर्यपुरा का मतदान केन्द्र। महिलाओं की लम्बी कतारें। बूथ के बाहर एक महिला व एक पुरुष की आपसी बहस ने अनायास ही ध्यान खींच लिया। जानकारी लेने पर पता चला कि वे पति-पत्‍‌नी हैं। पति रविन्द्र सिंह अपनी पत्‍‌नी सुनीता को अपने पसंद की पार्टी के पक्ष में वोट देने को बाध्य कर रहे थे, पर वह तैयार नहीं थी। बोले जा रही थी, आपकी बीबी हूं, पर लोकतंत्र में मेरे अधिकार (वोट) पर आप क्यों हावी हो रहे हैं। आपको जो पार्टी पसंद है, वह मुझे पसंद नहीं? प्लीज! अपनी पसंद (पार्टी) को मेरी पसंद न बनायें। .. अपवाद हीं सही, लेकिन इस छोटी सी वाक्या ने एक बड़ी सकारात्मक संदेश को उजागर कर दिया। बता दिया कि लोकतंत्र में वोट के अधिकार पर पत्‍‌नी पति की रबड़ स्टाम्प नहीं बन सकती। गांवों में वोट का ठेका लेने वाले ठेकेदारों के लिए न सिर्फ सबक है, बल्कि नारी सशक्तीकरण का यह मूक क्रांति है। मध्य विद्यालय बलिहार में मिली पूनम देवी कहती हैं, देश की विपरित परिस्थितियों पर कौन पार्टी या नेता खरा उतर रहा है, यह शिक्षित महिलाओं को पता है। वोट कहां देना है या कहां नहीं, पतियों से पूछने की क्या जरुरत है। मध्य विद्यालय बारण में शकुंतला देवी बोल पड़ी, अजी! औरतों के पास भी तो दिमाग है। वोट कहां देना है, हम भलीभांति समझ गए हैं। कोआथ मतदान केन्द्र पर वोट देने पहुंची रुकसाना खातून बेवाक बोली, वोट के मामले में शौहरों का हस्तक्षेप उचित नहीं। जब शौहरों के अपनी अधिकार पर बीवीयां नहीं बोलती तो फिर ..। केदार चंवरी, संसार, सेमरी, दिनारा के बीसीकला, महरोड़, राजपुर समेत कई मतदान केन्द्रों पर मिली कई महिलाओं का कहना था कि वोट के मामले में पतियों की दखलअंदाजी बिल्कुल गलत है।

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