आइसीडीएस कार्यक्रम से संक्रामक रोग पर लगेगी लगाम

पूर्णिया। संक्रामक रोगों के मास लेबल पर फैलने से रोकने के लिए सर्विलांस कारगर उपाय है। संक्रामक

By JagranEdited By: Publish:Tue, 16 Apr 2019 09:42 PM (IST) Updated:Tue, 16 Apr 2019 09:42 PM (IST)
आइसीडीएस कार्यक्रम से संक्रामक रोग पर लगेगी लगाम
आइसीडीएस कार्यक्रम से संक्रामक रोग पर लगेगी लगाम

पूर्णिया। संक्रामक रोगों के मास लेबल पर फैलने से रोकने के लिए सर्विलांस कारगर उपाय है। संक्रामक रोगों के महामारी बनने से रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग सर्विलांस कार्यक्रम का संचालन कर रहा है। इसके लिए बहुस्तरीय प्रशिक्षण दिया गया है। एएनएम, अस्पातल प्रबंधक, डॉक्टर और आशा फेसिलेटेटर को गुणवत्तापूर्ण डाटा संकलन के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। दरअसल ऐसी बीमारी को प्रारंभिक स्तर पर रोकने के लिए यह जरूरी है फिल्ड से उसके लक्षणों के आधार पर नियमित जांच, नमूना संकलन और लक्षण पाए जाने पर उपचार बहुत जरूरी है। इसके लिए सभी पीएचसी के प्रभारी चिकित्सक को नियमित रूप से फिल्ड से आने वाले फीडबैक को सिविल सर्जन कार्यालय को रिपोर्ट देनी है। इसके साथ ही जिला सर्विलांस पदाधिकारी नीरज कुमार निराला ने बताया कि बीमारी की रोकथाम के लिए त्रिस्तरीय कार्य प्रणाली पर कार्य किया जा रहा है। साप्ताहिक स्तर पर सर्विलांस का कार्य होता है। विभाग नियमित ऐसी बीमारी के लिए जिला में अपने पीएचसी और एचएससी के माध्यम से निगरानी रखता है। आइसीडीएस (एकीकृत संक्रामक रोग सर्वेक्षण) कार्यक्रम के माध्यम से रोग पर नजर रखी जाती है। इस कार्यक्रम से पहली बार आशा कार्यकर्ता को भी जोड़ा गया है और आशा फेसिलेटेटर को प्रशिक्षण दिया गया है। फिल्ड में रोगों की पहचान के लिए आशा कार्यकर्ता काफी अहम भूमिका निभाती हैं। 25 आशा कार्यकर्ता पर एक आशा फेसिलेटेटर होती है। सर्विलांस का मकसद बीमारी की पहचान कर समय रहते इसको फैलने से रोकने के उपाय करना है।

सर्विलांस की क्या है प्रक्रिया

पहले चरण में समुदाय लेवल पर एचएससी में रहने वाली एएनएम लक्षण के अनुसार संक्रामक रोग से पीड़ित मरीज की पहचान करती हैं। दूसरे चरण में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की है। इस स्तर पर संदिग्ध रोगी की पहचान की जाती है। कितने संदिग्ध रोगी मिले और किसी गांव या क्षेत्र से मिले हैं। किस तरह के लक्षण हैं। लक्षण के आधार पर वर्गीकरण कर आंकड़ा तैयार किया जाता है। तीसरे और आखिरी चरण में सभी संदिग्ध रोगी की जांच की जाती है। दरअसल संक्रामक रोग के त्वरित रोकथाम के लिए सर्विलांस के माध्यम से क्षेत्र की पहचान, रोग की पहचान और मेडिकल टीम द्वारा रोकथाम के उपाय करना है। इसके लिए पीएचसी और जिला स्तर पर त्वरित रिस्पांस टीम गठित की गई है जो किसी बीमारी के लक्षण मिलते ही मौके पर पहुंच कर पूरे इलाके के लोगों की जांच करती है। मास लेवल लोगों को बीच जागरूकता का काम भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है ताकि लोग भी बीमारियों के लक्षण को समझें और पीएचसी में अपनी जांच करवाएं।

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