हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है बिहार का ये गांव, धर्म कोई भी हो; सबका टाइटल है एक

बिहार के बिहारशरीफ के गांव में दोनों धर्मों के लोग सरनेम गिलानी लिखते हैं। गांव को लेकर शेर काफी मशहूर है इस गांव का इतना ही फसाना है सिमटे तो गिलानी हैं फैले तो जमाना है। जानें क्या है इसकी कहानी।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Thu, 07 Jul 2022 07:49 PM (IST) Updated:Thu, 07 Jul 2022 07:49 PM (IST)
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है बिहार का ये गांव, धर्म कोई भी हो; सबका टाइटल है एक
इस्लामिक स्कालर व लेखक मौलाना मनाजिर अहसन गिलानी की हवेली।

रजनीकांत, बिहारशरीफ : मिट्टी से लगाव व जुड़ाव की बानगी देखनी हो तो चले आइए नालंदा के गिलानी गांव में। यहां के लोगों की गांव से मोहब्बत मिसाल है। जो दशकों पहले गांव छोड़ दूसरी जगह जा बसे हैं, वे भी गांव की मोहब्बत को सीने से लगाए फिर रहे हैं। गांव के नाम को सरनेम बना रखे हैं। यहां दोनों धर्मों के लोग सरनेम गिलानी लिखते हैं। गांव को लेकर शेर काफी मशहूर है 'इस गांव का इतना ही फसाना है, सिमटे तो गिलानी हैं, फैले तो जमाना है।' गिलानी गांव निवासी व शायर बेनाम गिलानी ने बताया कि बगदाद के बुजुर्ग हजरत अब्दुल कादिर जिलानी रह. के मुरीद हजरत जंजेरी रह. थे। वे ईरान से इस जगह आए और यहीं बस गए। करीब सात सौ साल पहले उन्होंने इस गांव बसाया। उन्होंने बताया कि हजरत अब्दुल कादिर जिलानी रह. के नाम से 'गिलानी' नाम रखा गया है। अरबी भाषा में 'ग' अक्षर नहीं होता, इसलिए लोग उन्हें जिलानी कहते हैं। इस वजह से गांव का नाम मोहीउद्दीनपुर गिलानी है।

धर्म कोई हो, टाइटल एक

बेनाम गिलानी ने बताया कि गांव के लोग चाहे किसी धर्म के हों या विश्व के किसी कोने में बसे हों, सभी का सरनेम है गिलानी। आदित्य प्रसाद गिलानी, सुरेश प्रसाद गिलानी, एयान गिलानी, रैयान गिलानी, जितेन्द्र राम गिलानी, कैलाश राम गिलानी, राजेन्द्र राम गिलानी जैसे कई नाम हैं जिन्होंने सरनेम गिलानी रखा है। मौलाना मनाजिर अहसन गिलानी रह. की लिखी 14 पुस्तकें प्रसिद्ध हुई हैं। भागलपुर विवि के कुलपति एम.ए.एम गिलानी भी इसी गांव से हैं। 

आम के लिए भी मशहूर है गिलानी गांव

आम का सीजन आए, गिलानी की याद न आए, ऐसा हो नहीं सकता। मालदह आम के लिए भी गिलानी गांव मशहूर है। सीजन में दूसरे जगह के लोग भी यहां के आम का स्वाद लेना नहीं भूलते। यहां के आम विदेश तक भेजे जाते हैं

विभाजन के समय दंगे में मुसलमानों को बचाने आगे आए थे हिंदू

बेनाम गिलानी ने बताया कि आज छोटी-छोटी बात पर दोनों धर्म के लोगों के बीच नफरत पनप रही है। वहीं इस गांव की कौमी एकता की कहानी एक मिसाल है। 1947 में विभाजन के बाद देश दंगे की आग में सुलग रहा था। जब दूसरे गांव के लोग गिलानी पहुंचे तो हिंदू भाई आगे बढ़ कर आए और बोले कि पहले उनकी गर्दन कटेगी। गांव के हिंदू भाइयों के विरोध के बाद सभी चले गए। आज फिर ऐसे माहौल को सजाने की जरूरत है जहां दोनों कौम के लोग अमन-चैन से रह सके। 

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