बिहार पर काटजू के 'मजाक' का जवाब बने ये बिहारी ...जानिए

जस्टिस काटजू के बिहार को लेकर दिए गए बयान पर बिहार में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। लेकिन, बिहार में सेवा व इंसानियत की मिसाल बने लोग इस मजाक का अपने स्तर से जवाब भी दे रहे हैं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Tue, 27 Sep 2016 09:28 PM (IST) Updated:Tue, 27 Sep 2016 11:05 PM (IST)
बिहार पर काटजू के 'मजाक' का जवाब बने ये बिहारी ...जानिए

पटना [अमित आलोक]। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने पाकिस्तान से बिहार लेने की पेशकश कर बिहार का मजाक उड़ाया है। खुद काटजू ने इसे मजाक माना है। लेकिन, वे वर्तमान बिहार के ऐसे लोगों को भूल गए, जो देश-दुनिया में मिसाल बने हुए हैं। हर राज्य के अपने-अपने ‘शहाबुद्दीन’ हैं और जंगल राज के तर्क भी अपनी जगह हैं, लेकिन बिहार में आज भी इंसानियत जिंदा है।

आइए नजर डालते हैं दो ऐसे बिहारियों पर, जो सेवा व इंसानियत की मिसाल बनकर दुनिया को रास्ता दिखा रहे हैं...

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गणितज्ञ आनंद

काेचिंग संस्थान ‘सुपर 30’ के संस्थापक आनंद कुमार आज किसी पहचान के मोहताज नहीं। वे एक ऐसे गुरु हैं जो गुदड़ी के लालों को चुनकर उन्हें संवारते हैं। फिर सारा जहां उन बच्चों का होता है।

समाज के वंचित तबके के बच्चों की प्रतिभा तराश कर उन्हें आइआइटी में प्रवेश दिलाने वाले आनंद की खुद की कहानी बड़ी मार्मिक है। वे घर-घर जाकर पापड़ बेचते थे। गणित में गहरी रुचि रखने वाले आनंद ने वैज्ञानिक और इंजीनियर बनने का सपना देखा था। उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए बुलावा भी आया। लेकिन, परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका सपना अधूरा रह गया।

पिता की मौत के बाद जब आर्थिक तंगी के कारण घर-परिवार चलाना मुश्किल हो गया तब मां ने घर में पापड़ बनाना शुरू किया। आनंद तथा उनके भाई साइकिल पर घर-घर जाकर पापड़ बेचने लगे। इसके बाद आनंद ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।

इसी बीच उनके संपर्क में एक ऐसा बच्चा आया जो प्रतिभावान था। ट्यूशन पढ़ना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। आनंद ने उसे मुफ्त में पढ़ाना शुरू कर दिया। वह छात्र आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ। फिर तो सिलसिला चल पड़ा।

बस यही वाकया आनंद के जीवन का टर्निंग प्वाइंट बन गया। इसके बाद उन्होंने 2001 में ‘सुपर-30’ की स्थापना की और गरीब बच्चों को आइआइटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने लगे। अब तक सैकड़ों बच्चे इस संस्थान के माध्यम से आइआइटी में प्रवेश कर चुके हैं। उनके लिए आनंद किसी मसीहा से कम नहीं।

'डिस्कवरी चैनल' सुपर 30 पर डाक्यूमेंटरी बना चुका है। ‘टाइम' पत्रिका ने सुपर 30 को एशिया का सबसे बेहतर स्कूल कहा है। देशी-विदेशी मीडिया में छाए रहे आनंद पर फिल्म निर्देशक विकास बहल एक फिल्म भी बना रहे हैं।

गुरमीत सिंह

पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के लावारिस वार्ड में गुरमीत सिंह जाना-पहचाना चेहरा हैं। वे करीब 20 वर्षों से वहां बेसहारा मरीज़ों की सेवा कर रहे हैं। अस्पताल के लावारिस वार्ड की बेहद खराब हालत में डॉक्टर भी वहां जाना नहीं चाहते, लेकिन गुरमीत वहां रोज अपने हाथों से मरीज़ों को खाना देते हैं। जो खुद खाने में असमर्थ हैं, उन्हेंज खुद खिलाते हैं। इतना ही नहीं मरीजों के खा लेने के बाद उनकी जूठी थालियां भी धो देते हैं।

वे लावारिस मरीज़ों को अपने पैसे से वे दवाएं भी खरीद देते हैं।

लावारिस मरीजों की सेवा को लेकर गुरमीत बीबीसी व हफिंगटन पोस्ट से लेकर भातीय मीडिया तक में सुर्खियां बने। गुरमीत को उनके इस काम के लिए लंदन की एक संस्था ‘द सिख डायरेक्टरी’ ने ‘वर्ल्ड सिख अवार्ड’ देने की घोषणा की है। सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वाले दुनिया के सौ सिखों में उन्हें भी चुना गया है।

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