ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रहे स्वयं सहायता समूह, बचत 418 करोड़ से भी अधिक

बिहार में 7.48 लाख स्‍वंय सहायता समूह सक्रिय हैं। इनसे करीब 86.41 लाख परिवार जुड़े हुए हैं। इनकी कुल बचत 418 करोड़ से भी अधिक है।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Tue, 01 May 2018 05:37 PM (IST) Updated:Tue, 01 May 2018 07:46 PM (IST)
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रहे स्वयं सहायता समूह, बचत 418 करोड़ से भी अधिक
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रहे स्वयं सहायता समूह, बचत 418 करोड़ से भी अधिक

पटना [एसए शाद]। बिहार में इस समय महिलाओं के 7.48 लाख स्वयं सहायता समूह(एसएचजी) सक्रिय हैं, और इससे 86.41 परिवार जुड़े हैं। ये समूह न केवल महिला कार्य बल(वर्कफोर्स) के मोर्चे पर राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे चल रहे प्रदेश को एक अलग पहचान दे रहे हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर डाल रहे हैं। इनके माध्यम से 4,434 करोड़ रुपये बाजार में सर्कुलेट हो रहे हैं। साथ ही इन समूहों में शामिल महिलाओं की कुल बचत अबतक 418.5 करोड़ हो चुकी है।

जो 7.48 लाख एसएचजी बने हैं वे माइक्रोफिनांसिंग के बेहतर नतीजे सामने लेकर आ रहे हैं। अबतक 5.11 लाख समूहों को बैंक लिंकेज उपलब्ध करा उन्हें 4,434 करोड़ रुपये ऋण के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं। इन समूहों में शामिल महिलाओं को खेती से लेकर छोटे कारोबार के लिए हुनरमंद बनाया जा रहा है। अनेक को प्रशिक्षण के लिए राजस्थान, झारखंड, उत्तर प्रदेश, असम और अरुणाचल प्रदेश भी भेजा गया है।

इनकी गतिविधियों पर नजर डाली जाए तो दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में 448 सहकारिता समितियों का ये संचालन कर रहीं हैं। इस कार्य में स्वयं सहायता समूहों की 61 हजार सदस्य अभी सक्रिय हैं। बकरी एवं भेड़ पालन से लेकर अगरबत्ती निर्माण तक का काम कर ये महिलाएं खुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र करने में कामयाब हुई हैं। इनके द्वारा अभी नालंदा, मुजफ्फरपुर, खगडिय़ा एवं पूर्णिया में एक-एक कंपनी का पंजीकरण भी कराया गया है जिसके माध्यम से ये कृषि क्षेत्र में संगठित रूप से काम करेंगी।

पिछली जनगणना के मुताबिक, प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में महिला कार्य बल मात्र 20.2 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 30 प्रतिशत का है। इसकी तुलना में पुरुष कार्यबल 53 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 46.7 प्रतिशत है। इन एसएचजी की सक्रियता वर्कफोर्स की कमी की भी भरपाई कर रही है। प्रत्येक सदस्य को सप्ताह में 10 रुपये बचत करने होते हैं, और ऐसा कर इन्होंने अबतक कुल 418.5 करोड़ रुपये बचत कर लिए हैं।   

वर्ल्‍ड बैंक की मदद से 2007 में मात्र 18 प्रखंडों में यह योजना आरंभ हुई, जिसका कुछ ही दिनों बाद सभी प्रखंडों में विस्तार कर दिया गया। ग्रामीण विकास विभाग के तहत चल रही जीविकोपार्जन परियोजना(जीविका) के माध्यम से इन समूहों का संचालन हो रहा है। राज्य सरकार कई योजनाओं के कार्यान्वयन में इस समय इनकी सदस्यों की मदद भी ले रही है। प्रदेश के 37 प्रखंडों में तो इन महिलाओं के जिम्मे ही लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान का कार्यान्वयन हो रहा है और ये महिलाएं खुले में शौच की समस्या से गांवों को मुक्ति दिलाने में लगी हैं।

''पिछले 11 साल के प्रयास का नतीजा है कि ग्रामीण महिलाओं में निर्णय लेने की क्षमता का विकास हुआ है। वे अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों के प्रति भी सजग हुई हैं।''

श्रवण कुमार, ग्रामीण विकास मंत्री

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