बिहार में गठबंधन के लिए मुश्किल है लोजपा की अनदेखी, जानिए वजह

रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा का बिहार में अपना वजूद है और इसीलिए लोजपा की अनदेखी किसी भी गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। जानिए इस रिपोर्ट में...

By Kajal KumariEdited By: Publish:Fri, 21 Dec 2018 09:32 AM (IST) Updated:Fri, 21 Dec 2018 02:20 PM (IST)
बिहार में गठबंधन के लिए मुश्किल है लोजपा की अनदेखी, जानिए वजह
बिहार में गठबंधन के लिए मुश्किल है लोजपा की अनदेखी, जानिए वजह

पटना, अरुण अशेष। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पहले निकले। रालोसपा अभी निकली।  लोजपा दुविधा में है। फर्क है। पहले निकले दोनों को मनाया नहीं गया। लोजपा को मनाया जा रहा है। दोनों के बाहर जाने की बुनियाद विधानसभा के पिछले चुनाव में ही पड़ गई थी।

 2014 के लोकसभा चुनाव का मोदी फैक्टर 17 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में बेअसर हो गया था। तभी भाजपा ने हिसाब किया कि इन सबकी तुलना में जदयू की पुरानी दोस्ती ही उसके समीकरण में ठीक है। गौर कीजिए। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद ही नीतीश से दोस्ती की संभावना की तलाश होने लगी।

मांझी, जिन्हें गवर्नर बनाने से लेकर राज्यसभा भेजने तक की बात हो रही थी, पुत्र को एनडीए कोटे से विधान परिषद तक नहीं पहुंचा पाए। रालोसपा के साथ भी यही हुआ। विधानसभा चुनाव में उसके हिस्से की जहानाबाद सीट उप चुनाव में जदयू के खाते में चली गई। भाजपा ने दोनों को कई बार बाहर निकलने का संकेत दिया। मांझी जल्दी समझ गए। उपेंद्र कुशवाहा को देरी से समझ में आई।

मांझी-कुशवाहा की पसंद नीतीश नहीं हैं। नीतीश भी दोनों को पसंद नहीं करते हैं। लेकिन, लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान का मामला अलग है। नीतीश उन्हें पसंद करते हैं। उनके भाई को पशुपति कुमार पारस को मंत्री बनाया गया। विधान परिषद में नामित किया गया। लिहाजा, लोजपा को एनडीए में बनाए रखने के लिए अंतिम दम तक कोशिश होगी। नीतीश भी हस्तक्षेप करेंगे।

वैसे, मांझी और कुशवाहा की तुलना में पासवान हमेशा बिहार की चुनावी राजनीति के लिए अपरिहार्य रहे हैं। वे गिनती के उन नेताओं में हैं, जिनके कहने पर वोट ट्रांसफर होता है। 2005 के फरवरी वाले विधानसभा चुनाव में लोजपा को 12. 62 फीसद वोट मिला। यह उसकी उपलब्धि का रिकार्ड है। वह चुनाव राजद के साथ लड़ी थी।

अक्टूबर में लोजपा अकेले लड़ी। फिर भी उसे 11.10 फीसदी वोट मिला। 2010 के विधानसभा चुनाव में लोजपा गठबंधन में शामिल थी। उसका वोट 6.75 फीसदी पर आ गया। यह राजद-कांग्रेस के गठबंधन में लोजपा की न्यूनतम उपलब्धि थी।

भाजपा इसलिए भी लोजपा को एनडीए में बनाए रखना चाहती है, ताकि चुनाव के समय सत्ता विरोधी रूझान से होने वाली संभावित क्षति की भरपाई हो सके।

लोजपा की पांच से 10 फीसदी वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता किसी गठबंधन के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। महागठबंधन भी पासवान की इस क्षमता से परिचित है। इसलिए वहां भी लोजपा के लिए लोकसभा की पांच और राज्यसभा की एक सीट आरक्षित रखी गई है।

पुराने यूपीए में पासवान की क्षमता का आकलन खुद चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने किया था। वह पासवान से मिलने पैदल ही 12 जनपथ पहुंच गईं थीं। हालांकि 10 और 12 जनपथ के बीच सिर्फ एक दीवार का ही फासला है।  

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