नीतीश पितातुल्य, उनका हर फैसला मंजूर कह कर उन पर ही सवाल उठाते रहे प्रशांत किशोर

Political strategist Prashant Kishor राजनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सीएम नीतीश कुमार को पितातुल्य बताते हुए कहा कि उनसे मेरे वैचारिक मतभेद हैं।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Tue, 18 Feb 2020 11:43 AM (IST) Updated:Tue, 18 Feb 2020 09:47 PM (IST)
नीतीश पितातुल्य, उनका हर फैसला मंजूर कह कर उन पर ही सवाल उठाते रहे प्रशांत किशोर
नीतीश पितातुल्य, उनका हर फैसला मंजूर कह कर उन पर ही सवाल उठाते रहे प्रशांत किशोर

पटना, राज्य ब्यूरो।  अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग नीतियों वाली पार्टियों के लिए लुभावने नारे गढऩे वाले चुनावी प्रबंधक प्रशांत किशोर ने मंगलवार को एलान किया कि वह कोई नया दल नहीं बनाने जा रहे। अब बिहार में बदलाव के लिए काम करेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने 'पितातुल्य' बताया। कहा कि उनका हर फैसला मंजूर है। उनपर टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन तुरंत बाद वे 15 साल के शासन की कमियां गिनाने लगे। यह भी पूछा कि नीतीश गोडसे के समर्थकों के साथ क्यों हैं? भाजपा के 'पिछलग्गू' बन गए हैं। पत्रकारों ने जब पूछा कि 5 साल तक तो वह भी नीतीश के साथ थे और 'बिहार में बहार है' जैसे नारे गढ़ रहे थे, तो प्रशांत किशोर जवाब टाल गए और नीतीश से मतभेद की वजहें गिनाने लगे।  

शुरू हो रहा बिहार की बात

प्रशांत की 18 फरवरी को पटना में प्रेस वार्ता की घोषणा की वजह से देश भर की मीडिया वहां जुटी थी। खबर थी कि वे अलग राजनीतिक फ्रंट खड़ा करेंगे, लेकिन उन्होंने इससे मना कर दिया। कहा अभी वह बिहार की साढ़े आठ हजार पंचायतों के 10 लाख युवाओं के साथ 'बात बिहार की' अभियान करने जा रहे हैं। यह 20 फरवरी से शुरू हो रहा है। 

बात जेपी-लोहिया की और साथ खड़े हैं गोडसे के 

प्रशांत ने कहा कि 'नीतीश कुमार से मेरे संबंध आज के नहीं। उन्होंने मेरे साथ हमेशा बेटे जैसा व्यवहार किया और मैं भी उन्हें पिता तरह मानता हूं।  इस वजह से उनके निर्णय पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा। उनका जो भी निर्णय होगा हृदय से स्वीकार होगा। 'प्रशांत ने माना कि 'लोकसभा चुनाव के वक्त से ही नीतीश से मतभेद शुरू हो गए थे। नीतीश गांधी, जेपी और लोहिया के आदर्श की बात करते हैं, पर गोडसे को समर्थन देने वालों के साथ खड़े हो जाते हैं। नीतीश पहले भी भाजपा के साथ थे, लेकिन तब दो सांसदों वाली पार्टी के धूल-धूसरित नेता थे। तब नीतीश कुमार दस करोड़ बिहारियों के नेता थे, लेकिन आज 16 सांसदों वाले नीतीश समृद्ध बिहार के नाम पर भाजपा के पिछलग्गू बन गए हैं। भाजपा उनकी बात नहीं सुनती। विशेष राज्य का दर्जा हो या पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की उनकी मांग स्वीकार नहीं हुई।'

विकास तो हुआ, लेकिन बिहार अभी भी है पिछड़ा 

पीके ने दावा किया कि 2005 से अब तक बिहार में विकास तो हुआ है। लेकिन यह भी सचाई है कि 2005 में बिहार 22 वें पायदान पर था और आज भी वह 22 वें पायदान पर ही है। स्कूलों में बच्चों को साइकिल दी गई। नामांकन बढ़ा। शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ा। सड़कें बनी पर लोगों के पास वाहन खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ी। दस साल में घर-घर बिजली पहुंची। घर में एक बल्ब और पंखा लगा लेना ही काफी नहीं। हाऊसहोल्ड लेवल पर बिजली खपत की अन्य राज्यों की तुलना में आज कहां है? देश में जहां 900 वाट बिजली की औसत खपत है वहीं बिहार में यह 200 वाट है। जो लोग बिहार को दस साल में टॉपटेन में देखना चाहते थे उन्हें पता होना चाहिए बिहार में आज भी साढ़े तीन करोड़ लोग सर्वाधिक गरीब है। साइकिल, घर-घर बिजली और सड़क पर काम हुआ, लेकिन दूसरे राज्यों के मुकाबले बिहार आज भी 22 वें पायदान पर ही है। प्रशांत ने अपनी इस बात के समर्थन में कुछ आंकड़े दिखाए। कहा कि उनका उद्देश्य बिहार के विकास के लिए काम करना है। इसके लिए वे साढ़े आठ हजार पंचायतों के दस लाख युवाओं को जोड़कर बिहार की समृद्धि के लिए काम करेंगे, ताकि दस वर्ष में बिहार अग्रणी राज्य बन सके।

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