Positive News: बिहार में मलबरी सिल्क के धागों से रफू हो रही किस्मत की फटी चादर

बिहार में शुरू की गई मुख्यमंत्री कोसी मलबरी परियोजना ने अब जाकर रंग दिखाना शुरू किया है। पहले कौड़ी के भाव कोकून बेचने वाली महिलाओं की बदलने लगी है किस्‍मत जानें खबर में।

By Rajesh ThakurEdited By: Publish:Fri, 08 Nov 2019 11:14 AM (IST) Updated:Sat, 09 Nov 2019 09:46 PM (IST)
Positive News: बिहार में मलबरी सिल्क के धागों से रफू हो रही किस्मत की फटी चादर
Positive News: बिहार में मलबरी सिल्क के धागों से रफू हो रही किस्मत की फटी चादर

पटना [श्रवण कुमार]। Mulberry threads weaving fate of poor in Bihar: 2008 में बाढ़ के रूप में आई भीषण त्रासदी के बाद कोसी की किस्मत बदलने के लिए बिहार में शुरू की गई मुख्यमंत्री कोसी मलबरी परियोजना ने अब जाकर रंग दिखाना शुरू किया है। पहले कौड़ी के भाव कोकून बेचने वाली महिलाएं अब उसी कोकून से साड़ी तैयार कर लाखों रुपये कमा रही हैं।

पूर्णिया से सिलसिला हुआ शुरू 

यह सिलसिला पूर्णिया से शुरू हुआ, जब महिलाओं की टोली ने पहली बार खुद ही रेशम कीटों से तैयार कोकून को बंगाल ले जाकर सिल्क (रेशमी) की साड़ियां बनवाईं। इन साड़ियों को इन महिला किसानों ने स्वत: पांच से 20 हजार रुपये तक में बेचा। पहले इन महिला किसानों के द्वारा तैयार कोकून को बंगाल के व्यापारी तीस से पचास रुपये प्रति किलो की दर से खरीदकर ले जाया करते थे और साड़ियों तैयार करा अच्छी कमाई करते। धागा बनाने के बाद कोकून के वेस्टेज (अपशिष्ट) को भी व्यापारी सौ रुपये प्रति किलो में बेचा करते थे। अब महिला किसान खुद ही साड़ियां बनवाकर बेच रही हैं। जीविका समूह इसके लिए बीज से लेकर बाजार तक उपलब्ध करा रहा है। धीरे-धीरे ही सही मलबरी सिल्क के धागों से किस्मत की फटी चादर सिलने लगी है।

 

सफलता की शानदार बानगी

सफलता की शानदार बानगी पूर्णिया के धमदाहा की आदर्श जीविका महिला मलबरी उत्पादन समूह की दीदियों के प्रयास से सामने आई है। भोटिया, दमगड़ा, गरेल मौजा, अमारी और संझा जैसे कई गांवों की 80 महिलाओं के समूह के प्रयासों से जो परिणाम मिले हैं, उससे पूरे क्षेत्र की किसान दीदियां उत्साहित हैं। इस समूह को जीविका के प्रयास से मलबरी का पौधा रोपने से लेकर साड़ी बनवाने तक के लिए प्रशिक्षित किया गया।

रेशम के कीट से बनता है कोकून 

संसाधन उपलब्ध कराए गए। मलबरी उत्पादन में लगीं किसान दीदियों को मनरेगा के तहत भी तीन साल में 17700 रुपये मजदूरी के रूप में दिए जाते हैं। मलबरी (शहतूत) के पत्तों पर पलने वाले रेशम के कीट से कोकून बनता है, जिससे रेशमी धागा बनाया जाता है। जीविका के प्रयास से अब कोसी की महिलाओं द्वारा तैयार किए गए कोकून को सीधे बंगाल के मुर्शिदाबाद, विष्णुपुर, भागलपुर के नाथनगर और बांका के अमरपुर ब्लॉक के कटोरिया ले जाया जा रहा है। वहां से साड़ियां बनवाकर बड़े बाजारों तक पहुंचाई जा रही हैं।

जिंदगी अब बदल गई है

पूर्णिया के धमदाहा की रानी देवी की जिंदगी अब बदल गई है। पिछले दिनों पटना में लगे सरस मेला में सिल्क साड़ियों का काउंटर भी लगाया। कहती हैं कि जब बंगाल के व्यापारी कोकून खरीद कर ले जाया करते थे, उस समय लगता था कि हमारी महीनों की मेहनत पर पानी फिर रहा है। बहुत कम पैसे मिलते थे, जिससे घर चलाना मुश्किल हो जाता था। अब जीविका द्वारा लगाये जाने वाले मेलों में काउंटर लगाकर साड़ियां बेचते हैं। पांच हजार से बीस हजार तक में एक साड़ी बिक जाती है।

कहती हैं जीविकाकर्मी  

कोसी क्षेत्र की महिलाओं के आर्थिक उत्थान के लिए सेंट्रल सिल्क बोर्ड, मुख्यमंत्री कोसी मलबरी परियोजना और उद्योग विभाग के संयुक्त प्रयासों को जीविका के माध्यम से फलीभूत किया जा रहा है। महिलाओं को बहुत फायदा हो रहा है। 272 किलो ड्राई कोकून तैयार होने पर 51 किलो धागा निकलता है। इससे 130 पीस साड़ियों का निर्माण होता है। साड़ियां किसान दीदियां खुद काउंटर लगाकर बेच रही हैं।

 - प्रियंका कुमारी, युवा पेशेवर, सामाजिक विकास, जीविका

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