बिहार चुनाव : मुलायम बने 'कठोर', अब क्या करेंगे लालू-नीतीश

सियासत में रास्ते कभी खत्म नहीं होते। मुलायम सिंह के कठोर तेवर के बाद महागठबंघन में जहां सबकुछ ठहरा नजर आने लगा है तो दूसरी ओर सुलह के प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं। पहले मनाने-रिझाने पर माथापच्ची होगी। विकल्पों पर विचार या आरपार आखिरी रास्ता होगा।

By Amit AlokEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2015 10:08 AM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2015 03:00 PM (IST)
बिहार चुनाव : मुलायम बने 'कठोर', अब क्या करेंगे लालू-नीतीश

पटना [अरविंद शर्मा]। सियासत में रास्ते कभी खत्म नहीं होते। मुलायम सिंह के कठोर तेवर के बाद महागठबंघन में जहां सबकुछ ठहरा नजर आने लगा है तो दूसरी ओर सुलह के प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं। पहले मनाने-रिझाने पर माथापच्ची होगी। विकल्पों पर विचार या आरपार आखिरी रास्ता होगा।

सवाल उठता है कि अगर गतिरोध नहीं टूटा तो क्या हैं रास्ते? क्या करेंगे लालू? नीतीश की क्या होगी रणनीति? सियासत पर क्या असर पड़ेगा? फिलहाल मुलायम के तेवर के बाद सियासत चौराहे पर खड़ी है, जहां से चार रास्ते निकल रहे हैं।

1. पहला रास्ता-सुलह

महागठबंधन के ताजा भूचाल को थामने के लिए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कोशिशें शुरू कर दी हैं। घर जाकर मुलायम से मुलाकात भी की। लालू भी अपने स्तर से प्रयास कर रहे हैं। शुक्रवार को वह भी मुलायम से मिलेंगे।

हालांकि इतना तय है कि यह गतिरोध तभी खत्म होगा, जब सपा को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी। अभी तक राजद, जदयू ने सौ-सौ सीटें बांट ली है और कांग्र्रेस को 40 सीटें मिली हैं। लालू ने अपने हिस्से की सौ में से दो सीटें सपा को दी है। अब नीतीश और कांग्र्रेस को भी कुछ सीटें कुर्बान करनी पड़ी सकती है।

2. दूसरा रास्ता- आरपार

महागठबंधन के घटक दल अगर मुलायम सिंह की पार्टी को ज्यादा सीटें देने पर सहमत नहीं होते हैं तो आरपार तय है। सपा के अकेले चुनाव लडऩे से राजद, जदयू और कांग्रेस सभी की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ेगा। सबसे ज्यादा असर नीतीश पर पड़ेगा, क्योंकि वह महागठबंधन का चेहरा हैं। सीएम पद के प्रत्याशी भी। जीत-हार की सारी जिम्मेदारी उन्हीं पर है। ऐसे में भाजपा को रोकने के लिए नीतीश और लालू को मजबूत रणनीति बनानी होगी।

3. तीसरा रास्ता : एनडीए में तोडफ़ोड़

माना जा रहा है कि महागठबंधन में टूट से एनडीए को फायदा होगा, किंतु इसका साइड इफेक्ट भी है। भाजपा के सहयोगी हावी हो सकते हैं। रालोसपा, लोजपा और हम ने पहले भी भाजपा को सलाह दी थी कि वह 102 सीटों पर ही लड़े और बाकी सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ दे।

मुलायम के पैंतरे से उन्हें हौसला मिलेगा। 2010 वाली स्थिति में सीट बांटने का दबाव बना सकते हैं। ऐसा नहीं होने पर असंतोष होगा। लालू-नीतीश इसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। एनडीए के घटक दलों पर डोरे डाल सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा की महात्वाकांक्षा को हवा दी जा सकती है।

4. चौथा रास्ता : थर्ड फ्रंट

महागठबंधन के विखंडन का असर सिर्फ लालू-नीतीश पर ही नहीं पड़ेगा। बिहार का सियासी समीकरण भी बदल जाएगा। मुलायम की राह में राष्ट्रवादी कांग्र्रेस पार्टी (राकांपा) और वामपंथी दल भी आ सकते हैं। इनका मजबूत गठबंधन भी बन सकता है।

तारिक अनवर ने संकेत भी दिया है। वामपंथी पार्टियों का सबसे ज्यादा विरोध लालू से है। मुलायम के साथ आने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो सकती है। पप्पू यादव का प्रयास भी रंग ला सकता है। मुलायम के वह भी प्रिय माने जाते हैं। उनका यह लगाव और बढ़ सकता है।

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फैक्ट फाइल

विधानसभा की कुल सीटें - 243

जदयू के हिस्से की सीटें - 100

राजद के हिस्से की सीटें - 98

कांग्र्रेस के हिस्से में - 40

सपा को दी गई थी - 3+2

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