पटना: शिक्षा में आएगी गुणवत्ता, तब संवरेगी अपनी भी किस्मत

पिछले एक दशक में कई प्रौद्योगिकी संस्थान खुले हैं, मगर चंद संस्थानों की बदौलत बड़ी आबादी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना संभव नहीं है।

By Krishan KumarEdited By: Publish:Sat, 28 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 28 Jul 2018 04:07 PM (IST)
पटना: शिक्षा में आएगी गुणवत्ता, तब संवरेगी अपनी भी किस्मत

यूपीएससी, जेईई, नीट, क्लैट आदि राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में बिहार की प्रतिभा का लोहा दशकों पुरानी बात है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से स्थिति पहले जैसी नहीं रही। आबादी के अनुसार इन परीक्षाओं में सूबे की भागीदारी घटती जा रही है। पिछले तीन दशक में शिक्षा के क्षेत्र में काफी परिवर्तन आया है। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय पुराने पैटर्न और सुविधाओं के भरोसे ही जिंदा हैं। इसका खामियाजा बिहारी प्रतिभा को उठाना पड़ रहा है।

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पिछले एक दशक में राज्य में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट), चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, चंद्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट जैसे महत्वपूर्ण संस्थान खुले हैं, मगर चंद संस्थानों की बदौलत इतनी बड़ी आबादी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना संभव नहीं है। इनकी संख्या बढ़ाने की दरकार है। प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक में नामांकित बच्चों की संख्या संतोषजनक है। यह लगातार बढ़ रही है, अब इन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना अभी सबसे बड़ी चुनौती है।

स्कूली शिक्षा में शिक्षक और स्कूलों की संख्या संतोषजनक हुई तो गुणवत्ता गायब है। पहले गुणवत्ता थी तो शिक्षक और स्कूलों की संख्या पर सवाल थे। दोनों को एक साथ कदमताल करना होगा। आइआइटी बांबे के पूर्ववर्ती छात्र मनीष शंकर का कहना है आबादी की तुलना में जेईई और नीट में बिहार के अभ्यर्थी और रिजल्ट दोनों कम हुआ है। कम आबादी के बावजूद केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्य बिहार से आगे हैं। 

पटना विश्वविद्यालय के प्रो. एनके झा कहते हैं कि किसी भी देश के विकास में सबसे अहम भूमिका शिक्षा की है। किसी देश की समृद्धि वहां की शिक्षा-व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। हमारे यहां जब नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे, तो हम विश्वगुरु थे। आज भी सूबे के प्रचुर मानव संसाधन के सदुपयोग के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अनिवार्य है।

एएन कॉलेज के प्राचार्य प्रो. एसपी शाही का कहना है कि पिछले एक दशक में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय के सत्र को नियमित करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। इसका लाभ भविष्य में बच्चों को मिलना तय है। कॉलेज ऑफ कॉमर्स ऑटर्स साइंस के प्राचार्य प्रो. तपन कुमार शांडिल्य का कहना है कि सुनहरे दौर के लिए हमें भी अपनी जिम्मेवारी और भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

राजकीय बालक उच्च माध्यमिक स्कूल, शास्त्रीनगर के पूर्व प्राचार्य डॉ. अभयनाथ झा कहना है कि राज्य में अब कुछ ही बच्चे स्कूल से बाहर बचे हैं। सुदूर गांव में भी प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल हैं। इनमें बच्चे भी पहुंच रहे हैं, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा यहां की सबसे बड़ी चुनौती है। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा का स्तर बेहतर होने पर विश्वविद्यालयों में भी रौनक लौटेगी।

छात्रवृत्ति सहित कई योजनाओं ने मंजिल को किया आसान

मुख्यमंत्री सात निश्चय के तहत आर्थिक बल युवाओं का हल, साइकिल, पोशाक, द्वार पर छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का प्रभाव दिखने लगा है। गरीब घर के बच्चे आर्थिक मजबूरी के कारण पहले उच्च शिक्षा संस्थान में नामांकन की सोच नहीं सकते थे। वह अब छात्रवृत्ति और अन्य योजनाओं का लाभ लेकर मंजिल प्राप्त कर रहे हैं। बावजूद इसके शिक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना है।

स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय आदि तो खुले, लेकिन शिक्षकों की कमी और संसाधन जायका बिगाड़ रहा है। बच्चे कॉलेज से निकलते हैं तो रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ती है। रोजगार परक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल जाए तो युवा आगामी दशक में सूबे की तस्वीर बदल देने का माद्दा रखते हैं।

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