उम्मीदवारों के लिए चिंता का विषय बन सकती है पटना के मतदाताओं की उदासीनता

पटना में पिछले लोकसभा चुनाव में कम मतदान इस बार उम्मीदवारों के माथे पर चिंता की लकीर बना रहा है। अधिक वोट पड़े इसके लिए चुनाव आयोग के साथ अन्य संस्थाएं प्रयासरत हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sun, 21 Apr 2019 11:04 AM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 11:04 AM (IST)
उम्मीदवारों के लिए चिंता का विषय बन सकती है पटना के मतदाताओं की उदासीनता
उम्मीदवारों के लिए चिंता का विषय बन सकती है पटना के मतदाताओं की उदासीनता

लवलेश कुमार मिश्र, पटना। आसन्न लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की उदासीनता भाग्य आजमा रहे उम्मीदवारों की उम्मीदों पर तुषारापात कर सकती हैं। दरअसल, राजधानी पटना की दोनों लोकसभा सीटों पर पिछले चुनावों में हुआ कम मतदान चिंता का सबब रहा है। लिहाजा, मतदान प्रतिशत में अपेक्षित इजाफे के लिए भी चुनाव आयोग और जिला प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

दीगर बात है कि अधिकाधिक मतदाताओं को घरों से निकालने के लिए व्यापक स्तर पर कोशिशें हो रही हैं। जिला निर्वाचन कार्यालय के साथ-साथ 'दैनिक जागरण' और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की ओर से भी प्रयास किए जा रहे हैं। जिससे इस चुनाव में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी अवश्य होगी और लंबे अर्से से राजधानी के माथे पर लगा 'ठप्पा' भी मिट जाएगा।

जीत-हार पर बेअसर रहा है कम मतदान

पटनावासियों ने भले लोकसभा के पिछले चुनावों में बेरुखी दिखाई हो, लेकिन इसका उम्मीदवारों की जीत-हार पर विशेष असर नहीं पड़ा है। मतदान के आंकड़े कम होने के बावजूद 2014 में पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से अभिनेता व तत्समय भाजपा के प्रत्याशी रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने बड़े मार्जिन (2,65,805 मत) से जीत दर्ज कराई थी। जबकि उस चुनाव में वोटिंग 45.33 फीसद ही रही। पाटलिपुत्र सीट के लिए कुल 56.37 फीसद मतदाताओं ने वोट डाला था और भाजपा के उम्मीदवार रामकृपाल यादव ने महज 40,322 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।

जब-जब बढ़ा मतदान का ग्राफ, दिखे नजदीकी मुकाबले

पिछले संसदीय चुनावों में राजधानी की दोनों सीटों पर यह भी साफ दिखा है कि जब-जब घरों से अधिक संख्या में मतदाता निकले और मतदान प्रतिशत बढ़ा, मुकाबला बेहद करीबी रहा है। 1999 के चुनाव में बाढ़ सीट के लिए कुल 70.25 फीसद मतदाताओं ने वोट डाला था। इस चुनाव में जदयू उम्मीदवार नीतीश कुमार (वर्तमान मुख्यमंत्री) ने 48.23 फीसद और उनके प्रतिद्वंद्वी राजद के विजय कृष्ण ने 48.05 फीसद वोट हासिल किए थे। मतगणना का मौका आया तो लंबी जद्दोजहद के बाद नीतीश कुमार को महज 1335 वोटों से ही विजय मिली थी।

हमेशा फिसड्डी साबित हुए शहरी मतदाता

मतदान में बढ़ोत्तरी के लिए चाहे जितने प्रयास होते रहे हों, लेकिन पाटलिपुत्र (पूर्व में पटना) सीट से संबद्ध मतदाताओं ने वोटिंग में हमेशा बेरुखी दिखाई है। वहीं पटना साहिब (पूर्व में बाढ़) से जुड़े मतदाता अव्वल साबित होते रहे हैं। पिछले कुछ चुनावों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो इसकी बानगी स्पष्ट दिखती है। हालांकि पिछले दो चुनाव में पाटलिपुत्र से जुड़े शहरी मतदाता ही अव्वल रहे हैं। 2014 में पाटलिपुत्र में जहां 56.37 फीसद मत पड़े, वहीं पटना साहिब में 45.33 फीसद। इसी तरह 2009 में मतदान प्रतिशत क्रमश: 41.16 और 33.64 फीसद रहा। जबकि इसके पूर्व के हर चुनाव में पटना साहिब सीट के लिए अधिक मतदान होता रहा है। उदाहरण के तौर पर 1999 में बाढ़ सीट के लिए 70.25 फीसद वोट पड़े तो पटना में महज 55.24 फीसद ही। 1998 में क्रमश: 69.29 व 44.70 फीसद वोटिंग हुई। 1996 के चुनाव में बाढ़ क्षेत्र में 65.00 और पटना में 53.84 फीसद मतदान हुआ।

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