Lok Sabha Election : कटिहार में मुद्दों से ज्यादा ध्रुवीकरण की रफ्तार ने दिए परिणाम, लड़खड़ाई नैया तो याद आए नीतीश

Katihar Lok Sabha Seat बिहार में कटिहार लोकसभा सीट पर पिछले चुनावों के परिणाम बताते हैं कि यहां जमीनी मुद्दों से ज्यादा ध्रुवीकरण का असर होता है। हालांकि जानकार यह भी कहते हैं कि जहां ध्रुवीकरण से काम नहीं बनता वहां नीतीश कुमार लड़खड़ाती नैया को पार लगाने का काम करते हैं। बहरहाल सभी दल यहां अपना-अपना गणित भिड़ाने में जुटे हैं।

By BHUWANESHWAR VATSYAYAN Edited By: Yogesh Sahu Publish:Tue, 16 Apr 2024 02:35 PM (IST) Updated:Tue, 16 Apr 2024 02:35 PM (IST)
Lok Sabha Election : कटिहार में मुद्दों से ज्यादा ध्रुवीकरण की रफ्तार ने दिए परिणाम, लड़खड़ाई नैया तो याद आए नीतीश
Lok Sabha Election : कटिहार में मुद्दों से ज्यादा ध्रुवीकरण की रफ्तार ने दिए परिणाम

HighLights

  • साल 2019 में जदयू प्रत्याशी को मिले थे 50.05 प्रतिशत वोट
  • कांग्रेस के प्रत्याशी ने भी 44.93 प्रतिशत वोट हासिल किए थे

भुवनेश्वर वात्स्यायन, पटना। कटिहार लोकसभा का चुनाव इस मायने में नोटिस लिया जाता रहा है कि वहां वोटरों में मुद्दे से अधिक ध्रुवीकरण की रफ्तार ने परिणाम दिए हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कटिहार की आबादी में 55 प्रतिशत हिस्सा हिंदुओं का है और 45 फीसद आबादी मुस्लिम की है।

पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के प्रत्याशी दुलालचंद गोस्वामी जीत जरूर गए पर उनकी जीत का अंतर बहुत अधिक नहीं था। उन्हें 5,59,423 वोट मिले थे, जो 50.05 प्रतिशत था।

वहीं, उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के तारिक अनवर को 5,02,220 वोट मिले थे, जो 44.93 प्रतिशत था। ऐसे में ध्रुवीकरण के असर को समझा जा सकता है।

इस बार भी कांग्रेस की टिकट पर वहां से मैदान में तारिक अनवर हैं और जदयू ने पुन: दुलालचंद गोस्वामी को वहां से अपना उम्मीदवार बनाया है।

बहुत नई नहीं है ध्रुवीकरण की बात

कटिहार में ध्रुवीकरण की बात बहुत नई नहीं है। बात 1991 की है। जनता दल ने वहां से चुनाव में यूनुस सलीम को मैदान में उतार दिया था। दिलचस्प बात यह थी कि 1990 में वह बिहार के गवर्नर थे।

यूपी के रहने वाले यूनुस सलीम का कर्मक्षेत्र हैदराबाद रहा था। इसके बाद भी ध्रुवीकरण की वजह से वह कटिहार लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत गए थे। तारिक अनवर तीन बार कटिहार से सांसद रहे हैं और इस बार भी मैदान में हैं।

एक जमाने में भारतीय जनसंघ को भी मिली थी जीत

जानकार बताते हैं कि वाेटरों के ध्रुवीकरण का यह मामला एकतरफा नहीं है। एक जमाने में भारतीय जनसंघ को भी कटिहार से जीत मिली थी।

वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी ज्ञानेश्वर प्रसाद यादव को कटिहार से जीत मिली थी। भाजपा के टिकट पर निखिल चौधरी भी यहां से सांसद रहे हैं।

ध्रुवीकरण की वजह से रही है कांटे की टक्कर

कटिहार लोकसभा क्षेत्र में वोटरों के ध्रुवीकरण की वजह से यहां मतों का कम अंतर देखने को मिला है। वर्ष 2009 में जब यहां भाजपा उम्मीदवार निखिल चौधरी को जीत मिली थी तो उन्हें 37.23 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे राकांपा के तारिक अनवर को 35.30 प्रतिशत वोट मिले थे।

जीत का मार्जिन तीन प्रतिशत भी नहीं था। उस वर्ष हुए चुनाव में कटिहार मेडिकल कालेज के संस्थापक अशफाक करीम भी चुनाव मैदान में थे और उन्हें तब 6.32 प्रतिशत मैदान में थे।  

वोटों के ध्रुवीकरण के साथ-साथ जदयू को नीतीश का सहारा

कटिहार लोकसभा क्षेत्र के लिए वोटों के ध्रुवीकरण की बात तो जदयू के लोग भी कर रहे हैं, पर साथ में वे यह भी जोड़ते हैं कि भाजपा के साथ रहते हुए भी नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए काम किए हैं।

चुनावी सभाओं में इसकी चर्चा भी कर रहे नीतीश। बता दें कि कटिहार में नीतीश कुमार अगले हफ्ते 20-21 को कदवा के डुमरी और बरारी के समेली में चुनावी सभा करने जा रहे हैं।

कटिहार लोकसभा क्षेत्र से संबंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

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