Jagjivan Ram Death Anniversary: चंद गंदी तस्‍वीरों ने प्रधानमंत्री बनने से रोका, आंबेडकर से काफी अलग थे जगजीवन राम के रास्‍ते

Jagjivan Ram Death Anniversary अगर चंद गंदी तस्‍वीरें सामने नहीं आई होतीं तो बिहार का नाम भी उन चंद राज्‍यों में शामिल होता जिन्‍होंने भारत को प्रधानमंत्री दिए। बाबू जगजीवन राम का जीवन देश के दूसरे दलित नेताओं से काफी अलग था।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Wed, 06 Jul 2022 01:02 PM (IST) Updated:Wed, 06 Jul 2022 02:09 PM (IST)
Jagjivan Ram Death Anniversary: चंद गंदी तस्‍वीरों ने प्रधानमंत्री बनने से रोका, आंबेडकर से काफी अलग थे जगजीवन राम के रास्‍ते
Jagjivan Ram News: जगजीवन राम और इंदिरा गांधी। फाइल फोटो

पटना, आनलाइन डेस्‍क। Jagjivan Ram Death Anniversary: भारतीय राजनीति में दलित राजनीति का जिक्र होता है, तो बात बाबा साहब भीमराव आंबेडकर, कांशीराम, मायावती और राम विलास पासवान सरीखे नेताओं के इर्द-गिर्द ही घूमकर रह जाती है। खासकर नई पीढ़ी के बीच बाबू जगजीवन राम के बारे में बेहद कम जानकारी देखने को मिलती है। करीब 50 साल लंबा राजनीतिक जीवन जीने वाले जगजीवन राम को बाबू जी के तौर पर जाना जाता है। देश के पहले दलि‍त उप प्रधानमंत्री बने और शायद प्रधानमंत्री भी बन जाते, लेकिन बेटे की अश्‍लील तस्‍वीरों ने भारी नुकसान पहुंचा दिया। रही-सही कसर इंद‍िरा गांधी से अदावत ने पूरी कर दी। यहां हम बाबू जगजीवन राम के जीवन के जाने-अनजाने ऐसे ही कई रोचक पहलुओं की जानकारी देंगे, जिनके चलते वे कामयाब हुआ और जिनके चलते उन्‍हें नुकसान झेलना पड़ा। 

आंबेडकर से अलग थे बाबू जगजीवन राम के रास्‍ते 

बाबू जगजीवन राम को दलित राजनीति में उतनी तरजीह नहीं दी जाती। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि इनका रास्‍ता बाबा साहब आंबेडकर, कांशीराम और मायावती से काफी हद तक अलग था। बिहार के भोजपुर जिले के एक छोटे से गांव चंदवा से ताल्‍लुक रखने वाले जगजीवन राम को सामाज‍िक विषमताओं का खूब सामना करना पड़ा, ले‍क‍िन वे कभी प्रत‍िक्र‍ियावादी नहीं हुए। महात्‍मा गांधी से गहरे तक प्रभाव‍ित जगजीवन बाबू ने दल‍ितों के बीच धर्मांतरण रोकने के लिए खूब काम किया। वे हिंदू समाज में रहकर ही सामाजि‍क विसंगत‍ियों के खिलाफ काम करते रहे। 

आरा के नजदीक गांव में हुआ जन्‍म 

जगजीवन राम का जन्‍म तब के शाहाबाद (अब भोजपुर) जिले के मुख्‍यालय आरा शहर से सटे चंदवा गांव में 5 अप्रैल 1908 को हुआ। उनका निधन 06 जुलाई 1986 को हुआ। आजादी से पहले अंग्रेजी राज में ही उनका राजनीत‍िक सफर शुरू हुआ। केवल 28 साल की उम्र में 1936 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्‍य बने। गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्‍ट 1935 के तहत 1937 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो जगजीवन राम विधायक चुने गए और कांग्रेस की सरकार में मंत्री भी बने। ब्र‍िटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ कांग्रेस ने बिहार की स्‍थानीय सरकार चलाने से मना किया तो जगजीवन राम भी अलग हो गए। 

बेटे की तस्‍वीरों ने लगाया जीवन में दाग

बाबू जगजीवन राम के बारे में कहा जाता है कि वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे। ऐसी स्‍थ‍ितियां बनने लगी थीं। लेकिन इसी वक्‍त उनके बेटे की अश्‍लील तस्‍वीरें सामने आईं। उनके बेटे पर देह व्‍यापार से जुड़े आरोप लगने लगे। इससे जगजीवन राम के राजनीत‍िक जीवन का अंत तो नहीं हुुुआ, लेकि‍न एक ठहराव जरूर आ गया। लोकसभा की पूूूर्व स्‍पीकर मीरा कुमार इनकी ही बेटी हैं। मीरा कुमार सिविल सेवा में चुनी गई थीं। कुछ साल तक नौकरी करने के बाद वे राजनीत‍ि में चली आई थीं। वह कई बार सांसद रह चुकी हैं। कांग्रेस ने 2017 में उन्‍हें राष्‍ट्रपत‍ि पद के लिए उम्‍मीदवार भी बनाया था। 

इंदिरा गांधी के खिलाफ कांग्रेस से हो गए अलग

जगजीवन राम लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। वे एक अच्‍छे प्रशासक थे। केंद्र सरकार में उन्‍होंने बड़ी जिम्‍मेदारियां संभालीं। उनके रक्षा मंत्री रहते ही भारत ने 1971 का युद्ध जीता। देश के कृषि मंत्री रहते हुए उन्‍होंने हरित क्रांति लाने का मार्ग प्रशस्‍त किया। इंदिरा गांधी की सरकार ने जब आपात काल का एलान किया तो वे कांग्रेस से अलग हो गए। जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई के नेतृत्‍व में सरकार बनाई तो जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। 

हिंदू धर्म से गहराई तक जुड़ा था इनका परिवार 

जगजीवन राम को पूरे जीवन में 'अछूत' बताकर कई जगह अपमानित किया गया। स्‍कूल से शुरू हुआ यह स‍िलसिला राजनेता बनने तक जारी रहा। लेकिन, इससे उनके मन में अपने पंथ के प्रति कभी प्रत‍िक्र‍ियावादी भाव पैदा नहीं हुआ। दरअसल, उनका पूरा परिवार ही हिंदू धर्म में सुधार के लिए संकल्‍प‍ित रहा। जगजीवन राम की संस्‍कृत पर खूब पकड़ थी। इससे मदन मोहन मालवीय तक प्रभाव‍ित हुए थे। जगजीवन राम के पिता सोभी राम ब्र‍िटिश सेना में थे। सेना की नौकरी छोड़कर वे संत बन गए। वे हिंदू समाज के एक सुधारवादी पंथ श‍िव नारायणी के महंत बने। उन्‍होंने अध्‍यात्‍मवाद पर एक पुस्‍तक भी लिखी थी।

मां को भी हिंदू धर्म से था गहरा अनुराग 

उनकी बेटी मीरा कुमार ने उनके जीवन के एक रोचक प्रसंग को साझा किया था। जगजीवन राम पढ़ने में काफी होनहार थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई आरा के अग्रवाल विद्यालय से हुई थी। मैट्रिक परीक्षा में वे पहली श्रेणी में सफल रहे थे। एक वक्‍त ऐसा आया कि परिवार को उनको आगे पढ़ाने में दिक्‍कत हो रही थी। तब एक इसाई महिला ने उनकी मां को प्रस्‍ताव दिया कि उनके बच्‍चे को विदेश लेकर जाकर पढ़ाई कराई जा सकती है। जगजीवन राम की मां ने यह कहकर इस प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया कि पढ़ाई के लिए लेकर जाकर उनके बच्‍चों का धर्म बदलवा दिया जाएगा। 

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