पिता ने चाउमिन तक बेच बनाया चैम्पियन, कृतज्ञ बेटे ने पदक कर दिया समर्पित
गरीब बाप ने बेटे के अरमान पूरे करने के लिए चाउमिन तक बेच पैसे कमाए, ताकि उसे अच्छा खिलाड़ी बना सके। आज कृतज्ञ चैम्पियन बेटे ने अपना पदक पिता को समर्पित कर दिया है।
पटना [अरुण सिंह]। बेटे को चैंपियन बनाने में गरीब पिता ने हिम्मत नहीं हारी। चाउमिन तक बेचकर पैसे का जुुगाड़ किया। अब कृतज्ञ बेटे ने अपना भारोत्तोलन का पदक पिता को समर्पित कर दिया है। यह कहानी है 'खेलो इंडिया' प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने वाले बिहार के आशीष गोराई की।
पिता ने महसूस नहीं होने दी कोई कमी
केंद्र सरकार के आयोजन 'खेलो इंडिया' में आखिरी दिन चमक बिखेरने वाले बिहार के आशीष कुमार गोराई को भारोत्तोलक बनाने के लिए उसके पिता रंजीत कुमार गोराई ने चाउमिन तक बेची, लेकिन बेटे को किसी चीज की कमी नहीं होने दी।
जहानाबाद के सबजपुर निवासी रंजीत बताते हैं, 'मैं किसान हूं और खेती से गुजर-बसर किसी तरह चल रहा है। लेकिन बेटे को भारोत्तोलन में रुझान को देखते हुए मैंने उसपर होने वाले खर्च के लिए चाउमिन बेचने का फैसला किया। उसकी कमाई से उसे जहानाबाद स्थित ऊंटा मध्य विद्यालय वेटलिफ्टिंग प्रशिक्षण केंद्र में 2015 में दाखिला कराया। उसने वहां जमकर मेहनत की, जिसका परिणाम सामने है।' कहते हैं कि आशीष ने कांस्य जरूर जीता है, लेकिन यह उनके लिए सोने के बराबर है।
एसजीएफआइ में आया था छठा स्थान
ऊंटा में गहन प्रशिक्षण के बाद आशीष को बिहार सरकार की ओर से स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया में पहली बार अपना जौहर दिखाने का मौका मिला। हालांकि वह पदक जीत नहीं सका, लेकिन छठे स्थान पर आने से उसने खेलो इंडिया के लिए पात्रता हासिल कर ली। खेलो इंडिया में एसजीएफआइ के किसी स्पर्धा में शीर्ष आठ खिलाड़ी भाग लेते हैं। इस मिले मौके को आशीष ने गुरुवार को दिल्ली में जाया नहीं होने दिया और बिहार को एकमात्र कांस्य पदक दिलाने का गौरव हासिल किया।
राज्य सरकार से मदद की गुहार
आशीष से अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक की अपेक्षा होगी। इसके लिए उसे अत्याधुनिक प्रशिक्षण और संतुलित डाइट की जरूरत है। पिता रंजीत ने राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई है, क्योंकि प्रोटीनयुक्त भोजन और उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की व्यवस्था कराना अब उनके बस की बात नहीं है।
पटना में नहीं है प्रशिक्षण केंद्र
जहां तक प्रशिक्षण केंद्र का सवाल है तो राजधानी पटना का ही हाल बेहाल है तो दूसरे जिलों में इस खेल का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। बिहार सरकार की ओर से दो प्रशिक्षण केंद्र जहानाबाद और सीतामढ़ी में चल रहा है। विभाग के एक पदाधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि राज्य खेल प्राधिकरण की ओर से राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कैंप का आयोजन पाटलिपुत्र खेल परिसर में होता है, लेकिन राजधानी में सेंटर खुलवाने की चर्चा कोई नहीं करता। तीन साल पूर्व विभाग की ओर से भारोत्तोलन सेट खरीदने के लिए साढ़े तीन लाख रुपये आवंटित हुए थे। उससे खरीदे गए पांच सेट इतने बड़े राज्य के लिए नाकाफी है।
पिता को समर्पित कर दिया पदक
आशीष गोराई पदक जीतने के बाद खुश है। वे ओलंपिक में भी भारत का नाम करना चाहते हैं। कहते हैं, 'आज वे सिज मुकाम पर हैं, वहां से आगे के रास्ते खुल गए हैं। इसमें पिता के त्याग का बड़ा योगदान है।' खेलो इंडिया में कांस्य पदक जीतने के बाद उन्होंने अपना पदक पिता को समर्पित कर दिया।