शराबबंदी कानून पर क्‍या है बिहार के राजनीतिक दलों की राय, मांझी से अलग हैं राजद के विचार

शराबबंदी कानून में संशोधन पर बिहार के राजनीतिक दलों की राय अलग-अलग। भाजपा जहां थोड़ी नरमी के पक्ष में है तो जीतन राम मांझी इस कानून को खत्‍म करने की मांग कर चुके हैं। राजद कांग्रेस और एआइएमआइएम का रुख कुछ अलग है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Wed, 19 Jan 2022 07:46 PM (IST) Updated:Thu, 20 Jan 2022 02:19 PM (IST)
शराबबंदी कानून पर क्‍या है बिहार के राजनीतिक दलों की राय, मांझी से अलग हैं राजद के विचार
उपमुख्‍यमंत्री रेणु देवी, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और राजद नेता जगदानंद सिंह। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, पटना। शराबबंदी कानून में संशोधन (Amendment in Liquor Ban Law) की चर्चा पर राजनीतिक दलों की राय अलग-अलग है। मुख्य विपक्षी दल राजद संशोधन के जरिए पीने वालों को थोड़ी राहत देने के बदले शराब उपलब्ध कराने वालों के खिलाफ और सख्त कानून की मांग की है। एआएमआइएम (AIMIM) ने दो कदम आगे बढ़ कर कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) शराबबंदी को जारी रखें। इसके लिए कुर्सी की फिक्र नहीं करें। हां, सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा ने विपक्षी दलों से अलग शराबबंदी कानून को ही खत्म करने की वकालत की है। सरकार की बड़ी घटक भाजपा ने संशोधन का स्वागत किया है। 

संशोधन का स्वागत: रेणु देवी

उप मुख्यमंत्री रेणु देवी (Deputy CM Renu Devi) ने शराबबंदी कानून में संशोधन की तैयारी का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि सरकार का यह सराहनीय कदम है। वहीं, मद्यनिषेध नीति के प्रभाव का अध्ययन चाणक्य राष्ट्रीय विधि संस्थान (सीएनएलयू) और पंचायती राज पीठ से कराने से सामाजिक हकीकत आएगा। जानकारी मिली है कि एएन सिन्हा संस्थान भी अध्ययन रिपोर्ट बनाने में सहयोग करेगा। सरकार की ओर से तीनों ही प्रतिष्ठित संस्थान को अहम जिम्मेदारी गई है। मैं उम्मीद करती हूं कि दोनों पहल से सर्व समाज के बीच से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की जानकारी के आधार पर सरकार को आगे निर्णय लेने में सहूलियत होगी।

खत्म हो शराबबंदी का वर्तमान कानून : मांझी

हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Ex CM Jitan Ram Manjhi) शराबबंदी कानून के विरुद्ध काफी पहले से मुखर रहे हैं। वे कहते हैं, शराबबंदी के कारण ही सूबे के लोग जहरीली शराब पी रहे हैं। शराबबंदी कानून को खत्म करके 1991 का शराब कानून लागू करना चाहिए, जिसमें शराब पीकर हुड़दंग करने वालों के लिए सजा का प्रविधान था। प्रधानमंत्री कृषि कानून वापस ले सकते हैं, तो फिर शराबबंदी कानून को वापस क्यों नहीं लिया जा सकता। 

उपलब्धता समाप्त करें : जगदानंद

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) ने कहा कि शराबबंदी उचित है लेकिन इसे लागू करने का तरीका गलत है। कानून में अगर संशोधन हो रहा है, तो ऐसे प्रविधान किए जाएं, जिनसे पीने वाले की तुलना में पिलाने वाले हतोत्साहित हो पाएं। शराब की उपलब्धता ही पीने वालों को प्रोत्साहित करती है। कमजोर कानून से राज्य को दोहरा नुकसान हो रहा है। राजस्व की क्षति हो रही है। माफिया बढ़ रहे हैं। लोग जहरीली शराब पीकर मर भी रहे हैं। इस कानून की संरचना और इसे लागू करने के उपायों को देखें तो यही पता चलता है कि राज्य सरकार शराबबंदी को लेकर कभी गंभीर नहीं रही है। 

ढिलाई नहीं, और सख्ती : अख्तरूल

एआइएमआइएम विधायक दल के नेता अख्तरुल ईमान ने कहा है कि नीतीश कुमार शराबबंदी कानून में ढील देने के बदले इसे और सख्त करें। इस कानून का समाज पर सकारात्मक असर पड़ा है। राह चलते गरीबों का अपमान बंद हुआ है। हम सरकार के आलोचक हैं। फिर भी इस कानून का समर्थन करते हैं। कुर्सियां आती-जाती रहती हैं। नीतीश कुमार कुर्सी की परवाह किए बगैर शराबबंदी कानून को सख्ती से जारी रखें। शराब पीकर शादी-ब्याह में नाचना भला किस सभ्यता की पहचान है। 

स्वतंत्र एजेंसी से हो सर्वे: राठौड़

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि स्वतंत्र जांच एजेंसी से सर्वे करा कर सरकार को यह आकलन करना चाहिए कि शराबबंदी के दौरान बिहार में कितनी शराब की खपत हो रही है। आम जनता से शराबबंदी पर राय प्राप्त करें और अन्य राज्यों में लागू शराबबंदी को देख कर अध्ययन करे। उन राज्यों का भी अध्ययन करना चाहिए, जहां शराबबंदी के बाद जहरीली शराब से आम लोगों की मौत न के बराबर होती है। 

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