खुलासा: स्कूली शिक्षा के फ्रंट पर फेल हुआ बिहार, शिक्षा का अधिकार कानून का बुरा हाल

बिहार में स्कूली शिक्षा की हालत सही नहीं है, वहीं शिक्षा का अधिकार कानून की स्थिति भी बदहाल है। इसपर केन्द्र ने बिहार सरकार से न सिर्फ जवाब तलब किया है, बल्कि इसे चेताया भी है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Thu, 11 Oct 2018 09:48 AM (IST) Updated:Thu, 11 Oct 2018 11:28 PM (IST)
खुलासा: स्कूली शिक्षा के फ्रंट पर फेल हुआ बिहार, शिक्षा का अधिकार कानून का बुरा हाल
खुलासा: स्कूली शिक्षा के फ्रंट पर फेल हुआ बिहार, शिक्षा का अधिकार कानून का बुरा हाल

पटना [दीनानाथ साहनी]। शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू होने के 10 साल बाद भी बिहार में स्कूली पढ़ाई की नाकामियों पर केन्द्र के सामने कई सवाल अनुत्तरित हैं। स्कूली शिक्षा के मोर्चे पर आ रही गिरावट और आरटीई कानून को लागू करने के प्रति नकारात्मक रवैये से आजिज आकर केन्द्र ने बिहार सरकार से न सिर्फ जवाब तलब किया है, बल्कि इसे चेताया भी है।

यह भी पूछा है-हर साल शिक्षा पर खर्च का बजट आकार बढ़ रहा है फिर भी स्कूली शिक्षा में नाकामी क्यों? शिक्षा  में गुणात्मक बदलाव क्यों नहीं दिख रहा है? 

केन्द्र सरकार की नाराजगी का आलम यह है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूली शिक्षा सचिव ने बिहार सरकार से साफ कह दिया है,'अर्से से मंजूर और लंबित प्रस्तावों को अविलंब लागू करायें।

सिर्फ केन्द्र सरकार धनराशि उपलब्ध नहीं कराएगी बल्कि स्कूली शिक्षा के मोर्चे पर सकारात्मक बदलाव के साथ बच्चों के सुनहरे भविष्य का आकलन भी करेगी।' केन्द्र ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा का अधिकार कानून के मसले पर 'ढुलमुल' रवैया और ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा।

साथ ही केन्द्र ने मर्ज किए गये 1000 स्कूलों को स्वतंत्र रूप से खोलने का आदेश भी दिया है। शिकायत इस बात की भी है कि पूंजीगत खर्च में राज्य सरकार सिर्फ धन की कमी का रोना रोती है।

स्कूली शिक्षा में सुधार के प्रति रवैया इतना खराब है कि इस साल दो करोड़ में से 50 फीसद बच्चों को किताबें तक मयस्सर नहीं हो पायी है। नतीजा यह किबिना पढ़ाई किये ऐसे बच्चों को अद्र्धवार्षिक मूल्यांकन परीक्षा में सम्मिलित होना पड़ा है।

जरूरी संसाधनों एवं बुनियादी जरूरतों पर फोकस करने की हिदायत

केन्द्र ने राज्य सरकार को यह हिदायत भी दी है कि स्कूली शिक्षा में बच्चों के बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए केवल बजट पर ही ध्यान नहीं दे बल्कि जरूरी संसाधनों और बुनियादी जरूरतों पर भी फोकस करे।

यदि इन बिन्दुओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में प्रदेश में स्कूली शिक्षा और भी पीछे जाएगी। हैरत की बात यह कि अभी भी प्रदेशसरकार द्वारा सवा चार लाख शिक्षकों के स्वीकृत पदों में करीब 60 हजार पद खाली पड़े हैं।

केन्द्र ने आरटीई के अन्य प्रावधानों की रोशनी में राज्य सरकार से जल्द से जल्द प्रामाणिक सूचनाएं तलब की हैं। खासतौर से प्राइवेट स्कूलों में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चों के लिए 25 फीसद आरक्षित सीटों पर दाखिले की स्थिति क्या हैं, इस पर रिपोर्ट मांगी है। 

* छात्र-शिक्षक अनुपात के मानक को पूरा करने के लिए कम से कम 1.50 लाख शिक्षक और चाहिए

* अब भी 50 बच्चों पर एक शिक्षक बहाल, जबकि 40 बच्चों पर चाहिए एक शिक्षक

* दिव्यांग बच्चों के लिए उनके घरों पर जाकर पढ़ाने के लिए नहीं हुई शिक्षकों की व्यवस्था

* अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में नहीं लागू हो पाया आरटीआइ कानून

* 1 किमी के रेंज में चाहिए अभी 1000 नये स्कूल

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