बिहार चुनाव 2020: जानें कैसे मैकेनिकल इंजीनियर बन गया सोशल, हौसला बढ़ाती है नीतीश कुमार की कहानी

बिहार के सीएम नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की जब कहानी शुरू होती है तो यह बात बहुत मजबूती के साथ कही जाती है। जो व्यक्ति लगातार पंद्रह साल बिहार का मुख्यमंत्री रहा उसे आरंभ में ही दो बड़े झटके मिले थे।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Tue, 10 Nov 2020 03:30 PM (IST) Updated:Tue, 10 Nov 2020 09:42 PM (IST)
बिहार चुनाव 2020: जानें कैसे मैकेनिकल इंजीनियर बन गया सोशल, हौसला बढ़ाती है नीतीश कुमार की कहानी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुुमार। जागरण आर्काइव। -

पटना, जेएनएन। नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की जब कहानी शुरू होती है तो यह बात बहुत मजबूती के साथ कही जाती है। जो व्यक्ति लगातार पंद्रह साल बिहार का मुख्यमंत्री रहा उसे आरंभ में ही बड़े झटके मिले थे। नीतीश 1977 में पहली बार विधानसभा का चुनाव नालंदा जिले के हरनौत विधानसभा से लड़े पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दूसरी बार भी उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। इसके बाद ही उन्होंने धैर्य नहीं खोया। आखिरकार तीसरी बार उन्हें जीत हासिल हो ही गई। इसके बाद कहानी रुकी नहीं। विधानसभा की जगह लोकसभा का चुनाव बाढ़ से लड़ा तो वहां से जीते और फिर जब नालंदा से लड़े तो वहां से भी जीते। केंद्रीय मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का उन्हें आशीर्वाद मिला। रेल मंत्री के रूप में काफी काम किया।

पढ़ाई मैकेनिकल इंजीनियरिंग की हुई पर काम सोशल इंजीनियरिंग का

बख्तियारपुर जैसे छोटे कस्बे से आने वाले नीतीश कुमार ने पटना साइंस कॉलेज से अपनी पढ़ाई की और बाद पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। विद्युत बोर्ड में नौकरी भी लगी पर उन्हें यह रास नहीं आया और वह सोशल इंजीनियरिंग के काम में लग गए। जेपी और कर्पूरी ठाकुर का सान्निध्य उन्हें भा गया। नीतीश कुमार ने 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर पहली बार हरनौत से चुनाव लड़ा था। उन्हें तब 31.66 प्रतिशत वोट मिले थे और वह निर्दलीय प्रत्याशी भोला सिंह से चुनाव हार गए थे। इसके बाद 1980 में पुन: चुनाव हुआ तो पुन: नीतीश मैदान में आए और फिर हार गए। दो चुनाव हारने के बाद भी वह हिम्मत नहीं हारे और 1985 के चुनाव लोकदल के प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ गए। इस बार वह भारी मतों के अंतर से चुनाव जीत गए। उन्हें 53.42 प्रतिशत वोट मिला और कांग्रेस के ब्रजनंदन यादव को 30.54 प्रतिशत। इस चुनाव के बाद 1995 का चुनाव भी वह हरनौत से जीते। जेपी और कर्पूरी ठाकुर के शिष्य रहे नीतीश कुमार के लिए यह मंजिल नहीं थी। उन्होंने तय कर रखा था कि उन्हें और आगे जाना है।

1989 में राजनीतिक जीवन ने भरी उड़ान

नीतीश कुमार के लिए वर्ष 1989 का विशेष महत्व है। उन्होंने बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वह जीत भी गए। उन्हें केंद्र में कृषि विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। जब 1991 का लोकसभा चुनाव हुआ तो पुन: नीतीश कुमार सांसद बन गए। वह 1996 में भी एमपी बने। 1998 में जब वह सांसद चुने गए तो केंद्र में रेल मंत्री बनाया गया। वर्ष 2004 तक वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेलमंत्री रहे। 

पहली बार 2000 में मिली बिहार की कमान

बात सन 2000 की है। नीतीश कुमार को तीन मार्च को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की कमान मिली थी। लेकिन उनका कार्यकाल केवल सात दिनों का ही रहा। 24 नवंबर 2005 को नीतीश कुमार पुन: बिहार के मुख्यमंत्री बने। इस बार उनका कार्यकाल पूरे पांच वर्षों का रहा। सन 2010 में फिर एक बार नीतीश बिहार के सीएम बने पर लोकसभा चुनाव में हार की वजह से इस्तीफा दे दिया। नीतीश ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बन दिया। यह मामला बहुत दिनों तक नहीं चला। 22 फरवरी 2015 को नीतीश पुन: बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। इस बार मामला कुछ अलग था। नीतीश ने महागठबंधन की सरकार बनाई, पर महागठबंधन की सरकार केवल 18 महीने तक चली। फिर नीतीश भाजपा के समर्थन से पुन: नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। 

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