SURVEY में 80 फीसद लोगों ने माना, धनबल से वोट प्रभावित कर सकते हैं प्रत्‍याशी

बिहार में 80 प्रतिशत लोग महसूस करते हैं कि धनबल से प्रभावित कर प्रत्‍याशी अपने पक्ष में वोट कराया जा सकता है। इससे चुनाव आयोग चिंतित है। आयोग ने इस खुलासे को चुनौती के रूप में लेते हुए इसके खिलाफ अभियान आरंभ कर दिया है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Wed, 07 Oct 2015 08:27 AM (IST) Updated:Wed, 07 Oct 2015 06:37 PM (IST)
SURVEY में 80 फीसद लोगों ने माना, धनबल से वोट प्रभावित कर सकते हैं प्रत्‍याशी

पटना। बिहार में 80 प्रतिशत लोग महसूस करते हैं कि मतदान को धनबल से प्रभावित कर प्रत्याशी अपने पक्ष में मतदान करा सकते हैं। इससे चुनाव आयोग चिंतित है। आयोग ने इस खुलासे को चुनौती के रूप में लेते हुए इसके खिलाफ अभियान आरंभ कर दिया है। आयोग मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के साथ 'इथिकल वोटिंग' को लेकर भी चिंतित है।

'बिहार में वोटिंग विहेबियर' की पड़ताल को लेकर बीते जून-जुलाई 2015 में 'चंद्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमंट स्टडीज' ने एक सर्वेक्षण किया था। इसमें पाया गया कि बिहार के 80 प्रतिशत आम मतदाताओं को नगद व गिफ्ट देकर प्रभावित किया जा सकता है। सर्वे के अनुसार, इन प्रभावित मतदाताओं से प्रत्याशी अपने पक्ष में मतदान करा सकते हैं।

खास बात यह कि यह सर्वे चुनाव आयोग के सौजन्य से कराया गया था। बिहार के एडिशनल सीईओ आर. लक्ष्मणन ने बताया कि सर्वे में राज्य के 4500 मतदाताओं को शामिल किया गया। उनके चयन में इसका ध्यान रखा गया कि राज्य के उच्च व निम्न आय वाले जिलों को समान प्रतिनिधित्व मिले। जिला के अंदर भी अधिक व कम मतदान वाले बूथों से समान संख्या में सैंपल लिए गए।

गत विधानसभा चुनाव (2010) में 2014 के लोकसभा चुनाव से कम मतदान हुआ था। सर्वे में कहा गया कि इसका मुख्य कारण मतदान के दिन मतदाताओं का अपने विधानसभा क्षेत्रों से दूर रहना था। लेकिन, इस बार मतदान त्योहारों के बीच पड़ने के कारण मतदान का प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।

लक्ष्मणन ने बताया कि सर्वे केू अनुसार कम मतदान के पीछे दूसरा बड़ा कारण मतदान केद्रों पर लंबी लाइन भी है। इसलिए चुनाव आयोग बूथ स्लिप पर यह सूचना भी दर्ज कर रहा है कि सुबह व दोपहर बाद के समय में मतदान के लिए लंबी लाइन नहीं लगती।

आयोग चाहता है कि मतदान का प्रतिशत बढ़े, साथ ही बेहतर प्रत्याशी को वोट मिले। सर्वे रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने इससे निबटने को चुनौती के रूप में लिया है। आयोग ने 'इथिकल वोटिंग' को बढ़ावा देने के लिए अभियान आरंभ कर दिया है। इसके तहत आम जनता को किसी प्रलोभन में आए बिना बेहतर प्रत्याशी को वोट देने के लिए मीडिया में विज्ञापन भी दिए जा रहे हैं।

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