गरीबी उन्मूलन के लिए 75 लाख महिलाओं की खामोश पहल, सलाना 15 हजार करोड़ की बचत

बिहार में 75 लाख महिलाओं की खामोश पहल गरीबी उन्‍मूलन की दिशा में सार्थक प्रयास है। इनके प्रयास का ही नतीजा है कि सालाना 15 हजार करोड़ रुपये की बचत हो रही है।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Mon, 04 Jun 2018 05:22 PM (IST) Updated:Mon, 04 Jun 2018 11:14 PM (IST)
गरीबी उन्मूलन के लिए 75 लाख महिलाओं की खामोश पहल, सलाना 15 हजार करोड़ की बचत
गरीबी उन्मूलन के लिए 75 लाख महिलाओं की खामोश पहल, सलाना 15 हजार करोड़ की बचत

पटना [एसए शाद]। बिहार के गांवों में रहने वाली महिलाएं खामोशी से एक ऐसे काम में जुटी हैं जो आने वाले दिनों में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा। घर ही चहारदीवारी से निकल ये महिलाएं खुद को जहां स्वरोजगार से जोड़ रहीं हैं, वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने में भी कामयाब हो रही हैं।

विभिन्न बैंकों ने इन्हें 4,434 करोड़ के ऋण दिए हैं, वहीं इनका खुद का बचत 418 करोड़ रुपये है। कुल मिलाकर ये महिलाएं ग्रामीण बाजारों में 4,852 करोड़, यानी लगभग पांच हजार करोड़ रुपये डाल रही हैं। इनके प्रयास का ही नतीजा है कि गांवों में गरीबों द्वारा शराब पर सालाना खर्च हो रहे 15 हजार करोड़ रुपये की बचत हो रही है। 

दरअसल, 2007 में वर्ल्‍ड बैंक की सहायता से 18 प्रखंडों में जीविकोपार्जन परियोजना (जीविका) आरंभ हुई, जिसका कुछ ही दिनों बाद प्रदेश के सभी 534 प्रखंडों में विस्तार किया गया। कम से कम दस महिलाओं का एक समूह बनाकर उन्हें स्वरोजगार करना उद्देश्य था। सात-आठ सालों में महिलाओं के इन समूहों ने स्वरोजगार बनने के साथ-साथ समाज की बुराइयों को दूर करना आरंभ किया।

2015 में उन्होंने नीतीश कुमार पर राज्य में शराबबंदी लागू करने का दबाव डाला। उनकी ही पहल का नतीजा था अप्रैल, 2016 में प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई। वाणिज्य कर विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, शराब से हर वर्ष सरकार को करीब 4,000 करोड़ रुपये के राजस्व की प्राप्ति होती थी। ग्रामीण इलाकों में लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की शराब हर साल बिक जाती थी। 

वर्तमान में ऐसे 7.48 लाख समूह प्रदेश में सक्रिय हैं, और इनसे करीब 75 लाख  महिलाएं जुड़ी हैं। ये महिलाएं माइक्रोफिनांसिंग के बेहतर नतीजे सामने लेकर आ रही हैं। अबतक 5.11 लाख समूहों को बैंक लिंकेज उपलब्ध करा उन्हें 4,434 करोड़ रुपये ऋण के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं।

प्रत्येक सदस्य को सप्ताह में 10 रुपये बचत करने होते हैं, और ऐसा कर इन्होंने अबतक कुल 418.5 करोड़ रुपये बचत भी किए हैं। अनेक महिलाओं को प्रशिक्षण के लिए राजस्थान, झारखंड, उत्तर प्रदेश, असम और अरुणाचल प्रदेश भी भेजा गया है। इनकी गतिविधियों पर नजर डाली जाए तो दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में 448 सहकारिता समितियों का ये संचालन कर रहीं हैं।

बकरी एवं भेड़ पालन से लेकर अगरबत्ती निर्माण तक का काम कर ये महिलाएं खुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र करने में कामयाब हुई हैं। इनकी ये पहल गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर अहम योगदान दे रही है। पिछली जनगणना के मुताबिक, प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में महिला कार्य बल मात्र 20.2 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 30 का है। इन एसएचजी की सक्रियता वर्कफोर्स की कमी की भी भरपाई कर रही है।

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