बिहार के इस गांव की महिलाओं-बच्चियों को पानी लाने के लिए हर दिन तय करनी पड़ती है छह किमी की दूरी

पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड अंतर्गत अवरहिया गांव के लोगों के लिए पानी की उपलब्धता सहज नहीं। हर घर नल का जल योजना की भी इन तक पहुंच नहीं।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 07 Sep 2020 09:41 AM (IST) Updated:Mon, 07 Sep 2020 09:41 AM (IST)
बिहार के इस गांव की महिलाओं-बच्चियों को पानी लाने के लिए हर दिन तय करनी पड़ती है छह किमी की दूरी
बिहार के इस गांव की महिलाओं-बच्चियों को पानी लाने के लिए हर दिन तय करनी पड़ती है छह किमी की दूरी

पश्चिम चंपारण, [गौरव वर्मा]। सरकार हर घर तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत हर घर नल का जल योजना चला रही है लेकिन पूर्वी चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड अंतर्गत अवरहिया गांव की औरत व बच्चियों की सुबह होती है पानी ढोने वाले बर्तन के साथ। पूरे दिन में कम से कम तीन बार ये पानी की जुगाड़ में बर्तन लेकर निकलती हैं। नहाने, धोने, खाना पकाने से लेकर, घर के सभी कार्य के लिए इन्हें करीब एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है।

नहीं गड़ सकते चापाकल

अवरहिया गांव को दोन क्षेत्र का प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। यह गांव सड़क के दोनों तरफ एक ऊंचे टीले पर बसा है, जहां चापाकल भी नहीं गड़ सकते। वहीं वन विभाग की तरफ से भी इसपर मनाही की बात बताई गई है।

मसान की त्रासदी झेल रहे ग्रामीण

वर्ष 2017 में मसान नदी में उफान के कारण अवरहिया गांव 80 फीसद तक उसमें कट गया। जिसके बाद गांव के लोगों ने इस ऊंचे स्थल पर शरण ले ली। उधर, वन विभाग को इसपर आपत्ति थी और उनकी तरफ से कई बार इनको हटने की बात कही गई। लेकिन, ये पहले टेंट और बाद में झोपड़ी बनाकर वहीं रहने लगे। हालांकि, पानी की इनकी समस्या दूर नहीं हुई।

पानी ढोना दिनचर्या में शामिल

गांव की मोहंती देवी का कहना है कि अब यह दिनचर्या में शामिल हो गया है। पूरे दिन में छह किलोमीटर का चक्कर पानी के लिए लगाना पड़ता है। मनोज उरांव बताते हैं कि पुराने अवरहिया गांव जिसका 20 फीसद हिस्सा बचा हुआ है, वहीं से चापाकल से महिलाएं पानी लाती हैं। इनका पूरा दिन इसी काम में बीत जाता है। जिस दिन कपड़ा धोना होता है, उस दिन तो परेशानी अधिक होती है। सभी घरों में पानी ढोने के लिए अलग बर्तन हैं।

सरकारी वन क्षेत्र में बसे होने से परेशानी

पंचायत के मुखिया प्राण कृष्ण देवनाथ का कहना है कि ये लोग सरकारी वन क्षेत्र में बस गए हैं। जिस कारण इस जगह पर हर घर नल का जल योजना का कार्य भी नहीं हो सकता है। इन्हें अन्यत्र सरकारी भूमि पर बसाना है। वहीं अंचलाधिकारी विनोद मिश्रा का कहना है कि अवरहिया गांव के कटाव पीडि़तों के लिए चंपापुर के पास भूमि का चयन किया गया है। कोरोना संक्रमण संकट काल के कारण इसमें थोड़ा विलंब हुआ है। जल्द हीं इन्हें उक्त भूमि पर बसाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। वहां पानी की समस्या नहीं रहेगी। 

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