जयंती विशेष : मुजफ्फरपुर भी रही स्वामी सहजानंद की कर्मभूमि, यहीं ली अंतिम सांस

स्वामी सहजानंद सरस्वती स्मृति में शहर के रेवा रोड में बनाया गया है किसान भवन। यूपी के गाजीपुर में जन्मे मुजफ्फरपुर भी रही कर्मभूमि यहीं उन्‍होंने अंतिम सांस ली थी।

By Murari KumarEdited By: Publish:Sat, 22 Feb 2020 11:22 AM (IST) Updated:Sat, 22 Feb 2020 11:22 AM (IST)
जयंती विशेष : मुजफ्फरपुर भी रही स्वामी सहजानंद की कर्मभूमि, यहीं ली अंतिम सांस
जयंती विशेष : मुजफ्फरपुर भी रही स्वामी सहजानंद की कर्मभूमि, यहीं ली अंतिम सांस

मुजफ्फरपुर, पुनीत झा। स्वामी सहजानंद सरस्वती आजीवन किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए काम करते रहे। उनकी कर्मभूमि मुजफ्फरपुर भी रही। यहां और आसपास के कई जिलों में किसानों की समस्याओं को लेकर आवाज उठाई। यहीं अंतिम सांस ली। उनकी स्मृति में शहर के रेवा रोड में किसान भवन बना है।

महाशिवरात्रि को जन्‍मे थे स्‍वामी सहजानंद

सहजानंद का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में 22 फरवरी 1889 को महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। घरवालों ने बाल्यावस्था में ही शादी कर दी थी। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गए। वे देशभर में किसानों की समस्याओं को लेकर काम करने लगे। उन्होंने पाया कि यहां किसानों की हालत गुलामों से भी बदतर है। इस पर किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को अपना लक्ष्य बना लिया। नारा दिया 'कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा जिंदाबाद।' बाद में यही किसान आंदोलन का नारा बन गया। 

किसान आंदोलन के लिए स्‍थापित किया आश्रम

अप्रैल 1936 में कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई, जिसमें उन्हें पहला अध्यक्ष चुना गया। किसान आंदोलन के सफल संचालन के लिए उन्होंने पटना के समीप बिहटा में आश्रम स्थापित किया। 

 उनकी कर्मभूमि मुजफ्फरपुर भी रही। यहां वर्ष 1941 में आए। वे आसपास के कई जिलों में घूमे। किसानों की समस्या देखी। वे कहते थे कि अधिकार हम लड़कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे। काफी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया था। 

खड़ा किया संगठित किसान आंदोलन

ब्रह्मर्षि परिषद के प्रदेश अध्यक्ष राम नारायण ठाकुर बताते हैं कि देश में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद को जाता है। उन्होंने नारा दिया, 'जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब वो कानून बनाएगा। ये भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वही चलाएगा।Ó जिले में ही उन्होंने 26 जून 1950 अंंतिम सांस ली थी। उनके पार्थिव शरीर को उनकी इच्छानुसार बिहटा स्थित आश्रम ले जाया गया था। राम नारायण कहते हैं कि सहजानंद के पार्थिव शरीर को कंधा देने का सौभाग्य उन्हें मिला। 

सहजानंद की स्‍मृति में शहर का रेवा रोड

वर्ष 1989 में शहर के रेवा रोड, भगवानपुर में स्वामी सहजानंद सरस्वती स्मृति किसान भवन की नींव रखी गई थी। इसमें स्वामी सहजानंद पुस्तकालय सह वाचनालय व डाकघर चल रहा है। कैंपस में स्वामी जी की प्रतिमा भी लगाई गई है। स्वामी सहजानंद मजदूर किसान संगठन के जिलाध्यक्ष शंभू शरण ठाकुर बताते हैं कि उनकी स्मृति में हर साल महाशिवरात्रि के दिन किसान भवन में जयंती समारोह और 26 जून को पुण्यतिथि मनाई जाती है। 

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