मिलिए कला गुरु कन्हाई दास से, 500 से अधिक शिष्‍यों की संवार दी जिंदगी

500 से अधिक शिष्य गुरु से मिले हुनर को देश-विदेश में बांट रहे। कला गुरु कन्हाई दास ने शिष्यों से कभी शुल्क नहीं मांगा। गुरुदक्षिणा से कर रहे गुजर बसर।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sun, 24 Mar 2019 09:41 AM (IST) Updated:Sun, 24 Mar 2019 10:38 PM (IST)
मिलिए कला गुरु कन्हाई दास से, 500 से अधिक शिष्‍यों की संवार दी जिंदगी
मिलिए कला गुरु कन्हाई दास से, 500 से अधिक शिष्‍यों की संवार दी जिंदगी

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। आज जब हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा। कला बेच कामयाबी हासिल करने में लगा है। तब, शहर में एक ऐसी शख्सियत, जो गुरु-शिष्य परंपरा के साथ जी रहा। नि:स्वार्थ अपनी कला शिष्यों में बांट रहा। उन्हें हुनरमंद बना रहा। कला गुरु कन्हाई दास ढाई दशक में पांच-दस नहीं, 500 से अधिक शिष्यों को हुनर दिया है। शिष्य उनसे मिले हुनर को चित्रों और कलाकृतियों को देश-विदेश में पहुंचा रहे। बदले में उन्होंने शिष्यों से कभी कुछ मांगा नहीं। गुरुदक्षिणा के रूप में जो भी मिल जाता, उसी में गुजर बसर हो जाता।

कला के नाम समर्पित कर दिया जीवन

आमगोला स्थित एक छोटे से अव्यवस्थित कमरे में रहकर कन्हाई दास ने सारा जीवन कला को समर्पित कर दिया। मुखर्जी सेमिनरी से मैट्रिक, आरडीएस कॉलेज से गणित में स्नातक और बिहार विश्वविद्यालय से बांग्ला मे स्नातकोत्तर की डिग्री लेनेवाले कन्हाई दास को चित्रकला व शिल्पकला का गुण जन्मजात मिला है। बताते हैं कि सात-आठ साल की उम्र में कागज और दीवारों पर चित्र बनाने लगे थे।

   कटिहार में रहनेवाले उनके मामा माधुर्यमय मित्रा ने उनकी प्रतिभा को पहचान राह दिखाई। व्यवसायी पिता कालीपद दास व माता प्रसुन प्रभा दास का साथ मिला। पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की जगह कला को बांटने का फैसला लिया। 1990 में तुलिका कला केंद्र नाम से संस्था खोल छात्र-छात्राओं को चित्रकला एवं हस्तकला सिखाने लगे। जीवन के 60 साल पूरा करने के बाद भी अपनी कला बांट रहे।

शिष्यों को दी पहचान

उन्होंने खुद को एक छोटे से कमरे में सीमित रख शिष्यों को पहचान दिलाई। नेपाल ललित कला अकादमी की सदस्य चंदा, निफ्ट में प्राध्यापक कंचन प्रकाश, बेंगलुरु की एक कंपनी के आर्ट डायरेक्टर सोलन मजूमदार, शिप्रा सिंह, हेमलता सोनकर, देवव्रत, मांडवी कुमारी, मानकी कौशिक, स्नेहा ठाकुर, अनामिका समेत दर्जनों शिष्य आज देश-विदेश में नाम कमा रहे। उन्होंने शिष्यों द्वारा बनाए गए चित्रों और कलाकृतियों की जर्मनी के अलावा दिल्ली, बेंगलुरु व पटना में प्रदर्शनी लगवाई।

   उनको कभी बड़ा सम्मान नहीं मिला, लेकिन शिष्यों पर गर्व है। वार्ड -30 की पार्षद सुरभि शिखा ने कहा कि कन्हाई दास वर्षों से चित्रकला एवं शिल्पकला के पोषण में लगे हैं। छात्र-छात्राओं के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। अपनी पहचान नहीं बना, शिष्यों को आगे बढ़ाया। शिष्या शिप्रा सिंह ने कहा कि गुरुजी ने कभी किसी से कुछ नहीं लिया। उनके दिए हुनर से जीवन को लक्ष्य मिल गया। उन्होंने अपनी कला को बेचा नहीं, बल्कि बांटा है। हमारी सफलता को अपनी सफलता माना।

chat bot
आपका साथी