मंदी की ‘तपिश’ में ठंडी हो रहीं लहठी की भट्ठियां Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर की लहठी पर मंदी की मार खरीदार नहीं मिलने से डंप हो गईं लाखों की लहठियां। कच्चे माल की कीमत में डेढ़ से दोगुना वृद्धि लेकिन लहठी का दाम नहीं बढऩे से दोहरी मार।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 30 Aug 2019 09:40 AM (IST) Updated:Fri, 30 Aug 2019 09:40 AM (IST)
मंदी की ‘तपिश’ में ठंडी हो रहीं लहठी की भट्ठियां Muzaffarpur News
मंदी की ‘तपिश’ में ठंडी हो रहीं लहठी की भट्ठियां Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्र]। मो. उस्मान ने बैंक से एक लाख का कर्ज लेकर बड़ी मात्रा में लहठी बनाई। मगर, मंदी की आहट वे नहीं सुन सके। नतीजा, खरीदार नहीं मिलने से उनकी ये लहठी आज कबाड़ बनकर रह गई है। कभी छह से सात लहठी की भट्ठी चलाने वाले फिरोज की हालत भी अच्छी नहीं। परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर बमुश्किल दो भट्ठियां ही जल रहीं। वहीं, हजारों का कच्चा माल बर्बाद होने से उनकी कमर टूट गई है।

 जिले में लहठी निर्माण के लिए प्रसिद्ध बंगरा गांव के अधिकतर व्यवसायियों की कमोबेश यही स्थिति है। कच्चे माल की कीमत डेढ़ से दोगुना बढ़ गई। दस हजार रुपये महीने से कम पर कारीगर नहीं मिल रहे हैं। मगर, यहां लहठी की कीमत बढऩे की जगह कम हो गई। दोहरी मार से विश्व प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर का लहठी उद्योग संकट में आ गया है। उनके लिए त्योहार का मौसम संजीवनी साबित हो सकता है। खासकर छठ में लहठी की मांग बढऩे की आशा में घाटे के दर्द को कम कर वे निर्माण कार्य में लग गए हैं।

उस्मान कहते हैं, बैंक से ऋण के एक लाख रुपये सीधे नहीं मिले। कच्चा माल वाली कंपनियों को पैसा गया। वहां से जो सामान आया उसकी लहठी बनवाई। मगर, उसकी बिक्री नहीं हुई। गर्मी के कारण लहठियों के आपस में सट जाने से वह बेकार हो गई। अब उसे कबाड़ में बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं। पहले वर्षभर मांग रहती थी तो लहठी डंप नहीं होती थी। अब लगन व त्योहार पर ही मांग होती।

चपड़ा की कीमत में सर्वाधिक वृद्धि

बंगरा समेत जिल के कई गांवों के अधिकतर घरों में लहठी का निर्माण होता है। इस कारण परिवार की महिलाएं भी इसमें हाथ बंटाती हैं। किसी परिवार के जीविकोपार्जन की यह बेहतर माध्यम है। मगर, कच्चा माल की कीमत काफी बढ़ गई। इसमें चपड़ा (लहठी में रंग देने का प्रमुख अवयव) की कीमत दो माह पूर्व की तुलना में डेढ़ से दोगुना हो गई है। तीन सौ रुपये प्रतिकिलो से बढ़कर इसकी कीमत पांच से छह सौ रुपये हो गई है। मेटल चूड़ी व लाह की कीमत भी बढ़ गई। मगर, एक मुट्ठा (24 पीस) लहठी के लिए 80 रुपये ही मिल पाता। शमशुद्दीन की मानें तो किसी तरह मजदूरी निकल रही। अधिक फायदा उन्हें होता जो कच्चा माल देकर तैयार लहठी ले जाते।

जयपुर गए कारीगर भी निराश

बेहतर मजदूरी की आस में यहां से कारीगरों ने जयपुर का रुख किया। मगर, वहां भी स्थिति अच्छी नहीं। कम काम मिलने के साथ मजदूरी भी पहले जैसी नहीं मिलती।

गुलजार रहने वाला बाजार भी बेजार

ग्राहकों से गुलजार रहने वाली लहठी की प्रमुख मंडी इस्लामपुर भी मंदी की मार से बेजार है। थोक व खुदरा दोनों व्यापारियों के लिए मुसीबत भरे दिन। बाबा लहठी भंडार के अब्दुल सत्तार कहते हैं, पहले की तुलना में आधे ग्राहक भी नहीं आ रहे हैं। यहां की रौनक ही समाप्त हो गई है। अब आशा त्योहार व लगन का ही है।

 इस बारे में महाप्रबंधक जिला उद्योग केंद्र मुजफ्फरपुर परिमल सिन्हा ने कहा कि लहठी कारीगरों के लिए छोटे-छोटे ऋण बैंकों से दिलाने में जिला उद्योग केंद्र मदद कर रहा है। वहीं, उनके लिए जिले में दो लहठी कलस्टरों का प्रस्ताव है। यहां कच्चा माल व मशीन उपलब्ध कराया जाएगा। लहठी निर्माण के साथ यहां उन्हें बाजार भी मिल जाएगा।

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