महानगरों की मोह छोड़ गांव में ही शुरू करेंगे रोजगार

कुढ़नी प्रखंड के सोनबरसा गांव निवासी मो. महमूद गांव स्थित अपनी दुकान बेचकर चार माह पहले पुणे गए थे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 May 2020 01:31 AM (IST) Updated:Tue, 26 May 2020 01:31 AM (IST)
महानगरों की मोह छोड़ गांव में ही शुरू करेंगे रोजगार
महानगरों की मोह छोड़ गांव में ही शुरू करेंगे रोजगार

मुजफ्फरपुर : कुढ़नी प्रखंड के सोनबरसा गांव निवासी मो. महमूद गांव स्थित अपनी दुकान बेचकर चार माह पहले पुणे गए थे। गांव में घर निर्माण को बड़ी रकम कमाने का सपना साथ लेकर गए थे। तीन माह तक दिन-रात मेहनत कर कुछ कमाया था। लेकिन, इसी बीच लॉकडाउन के कारण कामकाज ठप हो गया। तीन महीने में जो कमाया था वह खर्च हो गया। वहां न अब काम था और न ही जेब में पैसा। जीना मुहाल हुआ तो गांव के ही शिवजी सिंह, रघुनाथ सिंह समेत एक दर्जन लोगों के साथ कठिन यात्रा तय कर गांव पहुंच गए। कोरोना के कारण पुणे में कमाकर घर बनाने एवं बेटी की शादी के लिए पैसा जुटाने का सपना टूट गया। अब वह गांव में ही रहकर फिर से अपना रोजगार शुरू करेंगे। यह सिर्फ मो. महमूद की सोच नहीं बल्कि गांव लौटे उन सभी प्रवासियों की है जो अब गांव में ही रहकर अपना रोजगार करना चाहते है। लॉकडाउन ने गांव की तस्वीर एवं गांव के लोगों की सोच बदल दी है। बड़े शहरों की ओर रुख करने वाले युवा अब वहां जाने से तौबा कर रहे है। वे गांव में ही रोजगार का अवसर तलाश रहे हैं।

पुणे स्थित कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले भूषण सिंह हो या मुंबई में काम करने वाले वकील सहनी एवं महमूद आलम भी तमाम परेशानियों का सामना करते हुए गांव लौट आए हैं। वे भी अब गांव मे ही रहकर मेहनत-मजदूरी करना चाहते हैं लेकिन फिर से पुणे जाने को तौबा कर रहे हैं। पड़ोस के गांव बसौली में रहने वाले सानू, मंटू एवं सोहन भी परदेस से लौटे हैं। वे दिल्ली में एसी, कूलर, फ्रिज, पंखा बनाने का काम करते थे। सब कुछ गंवा कर वह भी गांव पहुंचे हैं। वे अगल-बगल के शहर में काम कर लेंगे लेकिन लौटकर दिल्ली नहीं जाएंगे। गांव के ही महमूद, शिवजी व रघुनाथ सिंह का कहना है कि वे अब घर पर ही मुर्गी फॉर्म, रामनाथ सहनी मछली पालन एवं वकील सहनी गृह निर्माण कार्य कर परिवार चलाएंगे। भले ही यहां काम करते हुए भूख नहीं मिटे लेकिन बाहर नहीं जाएंगे। कोलकाता में रिक्शा खींचने वाले गरीबनाथ सहनी अब गांव में ही उन्नत किसानों से बंटाई जमीन लेकर अन्न उपजाने का काम करेंगे।

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बड़े शहरों में श्रमिकों का शोषण होता है। जितना कमाते हैं उससे पेट तो भर जाता है, भविष्य नहीं बनता। परिवार से दूर रहने की परेशानी अलग से। इसलिए गांव में ही रहकर मजदूरी करेंगे।

- सुभाष कुमार सहनी अब बाहर जाने की जरूरत नहीं। गांव में ही रहकर अपना रोजगार करेंगे। मछली, बकरी, भेड़ या फिर गोपालन कर परिवार की गाड़ी चलाएंगे। बाहर जाकर जान देने से तो अच्छा है कि गांव में रहकर चैन की रोटी खाएं ।

- उपेंद्र सहनी

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