कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों के 23 प्रधानाचार्यों की बर्खास्तगी, मचा हड़कंप Darbhanga News

मामला कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ। पिछले दस सालों से विवादों में है नियुक्ति प्रकरण। कोर्ट के आदेश की सूचना मिलते ही विवि मुख्यालय में हड़कंप मच गया।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Tue, 24 Sep 2019 07:47 PM (IST) Updated:Tue, 24 Sep 2019 07:47 PM (IST)
कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों के 23 प्रधानाचार्यों की बर्खास्तगी, मचा हड़कंप Darbhanga News
कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों के 23 प्रधानाचार्यों की बर्खास्तगी, मचा हड़कंप Darbhanga News

दरभंगा, जेएनएन। कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों के 23 प्रधानाचार्यों की सेवा बर्खास्त कर दी गई है। पटना उच्च न्यायालय में मंगलवार को इससे जुड़े मामले में यह आदेश जारी किया गया है। कोर्ट के आदेश की सूचना मिलते ही विश्वविद्यालय मुख्यालय में हड़कंप मच गया। विश्वविद्यालय के इतिहास में कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक है। अब तक इतने बड़े पैमाने पर शिक्षाकर्मियों की सेवा को बर्खास्त किए जाने का यह पहला मामला है।

 हालांकि, विश्वविद्यालय के कोई अधिकारी या कर्मी इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। कोर्ट के आदेश की सूचना मिलते ही विश्वविद्यालय से जुड़े लोग पटना के सूत्रों से संपर्क साधने में लग गए। वे सूचना की पुष्टि करने को बेताब थे। आखिरकार, जब सूचना पुष्ट हो गई तो विवि मुख्यालय में सन्नाटा पसर गया। अब विवि प्रशासन कोर्ट का निर्णय प्राप्त होने का इंतजार कर रहा है। कोर्ट का निर्णय मिलते ही उस आलोक में आगे की कार्रवाई की जाएगी।

 बता दें कि प्रधानाचार्यों की नियुक्ति का मामला वर्ष 2011 से कोर्ट में विचाराधीन था। कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन भी किया गया था जिसने अपनी रिपोर्ट में कई अनियमितताओं की ओर ईशारा किया था। हालांकि, जांच कमेटी की रिपोर्ट के आलोक में कार्रवाई विवि प्रशासन को करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं होने की स्थिति में मंगलवार को कोर्ट ने अपना आदेश जारी कर दिया है। 

वर्ष 2009 में हुई थी प्रधानाचार्यों की नियुक्ति 

विज्ञापन संख्या 1/2008 के आलोक में वर्ष 2009 में इन प्रधानाचार्यों की नियुक्ति हुई थी। नियुक्ति के समय से ही प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे थे। 2011 में यह मामला हाईकोर्ट में पहुंचा था। डॉ. रमेश झा व प्रियंवदा कुमारी ने नियुक्ति में अनियमितता को लेकर सीडब्ल्यूजेसी 7039/11 दायर किया था। हालांकि, बाद में मामला कोर्ट में लटक गया। इसके बाद इंटरवेनर दयानाथ ठाकुर के आइएन नंबर 899/17 के माध्यम से यह मामला फिर सुर्खियों में आया।

 इस क्रम में हाईकोर्ट ने तीन अक्टूबर 2018 को विवि प्रशासन को आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देते हुए 10 अक्टूबर तक कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। विवि प्रशासन ने कोर्ट के आदेश के अनुरूप मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन करते हुए नौ अक्टूबर को कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कार्रवाई के लिए चार माह का समय मांगा था। 

तीन सदस्यीय कमेटी ने की थी जांच 

कोर्ट के आदेश पर गठित तीन सदस्यीय कमेटी ने 10 नवंबर 2018 को जांच शुरू की। कमेटी में सोमनाथ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अर्कनाथ चौधरी, लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली के डॉ. देवी प्रसाद त्रिपाठी व लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. बृजेश कुमार शुक्ला शामिल थे। कमेटी ने सभी प्रधानाचार्यों व आवेदकों से बारी-बारी से पूछताछ करते हुए दस्तावेजों को खंगाला और अपनी रिपोर्ट सौंप दी। जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के लिए इसे 16 फरवरी 2019 को ङ्क्षसडिकेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया, लेकिन ङ्क्षसडिकेट सदस्यों ने जांच रिपोर्ट की स्पष्टता पर ही सवाल उठा दिए। बाद में विधिक राय लेने और रिपोर्ट की समीक्षा के लिए भी कमेटी बनी। बहरहाल, अब कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुना दिया है।

विप की समिति ने भी नियुक्ति पर उठाए थे सवाल 

नियुक्ति के समय से ही प्रक्रिया में अनियमितता की बात उठती रही। इस क्रम में विधान परिषद सदस्य केदार पांडेय के ध्यानाकर्षण पर मामले की जांच के लिए विधान परिषद की कमेटी का गठन वासुदेव प्रसाद ङ्क्षसह के संयोजन में किया गया था। जांच कमेटी ने 2011 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें नियुक्ति को विखंडित करते हुए नए सिरे से प्रधानाचार्यों की नियुक्ति की सिफारिश की। हालांकि, विधान परिषद की जांच कमेटी की रिपोर्ट पर तत्कालीन विश्वविद्यालय प्रशासन कार्रवाई नहीं कर सका। बाद में मामला कोर्ट में चला गया। 

इन प्रधानाचार्यों पर गिरी गाज 

जिन 23 प्रधानाचार्यों की नियुक्ति को कोर्ट ने गलत बताते हुए बर्खास्त करने का आदेश जारी किया है, उनमें कई ऐसे प्रधानाचार्य हैं जो विगत वर्षों में विवि प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे। विवि सूत्रों के अनुसार बर्खास्त होने वाले प्रधानाचार्यों में डॉ. हरिनारायण ठाकुर, डॉ. उमेश प्रसाद ङ्क्षसह, डॉ. घनश्याम मिश्रा, डॉ. दिनेश्वर यादव, डॉ. दिनेश झा, डॉ. भगलु झा, डॉ. शिवलोचन झा, डॉ. मनोज झा, डॉ. अश्विनी शर्मा, डॉ. अशोक पूर्वे, डॉ. जितेंद्र कुमार, डॉ. रविशंकर झा, डॉ. आरपी चौधुर, डॉ. कंचन माला पंडित, डॉ. रामेश्वर राय, डॉ. अशोक आजाद, डॉ. आभा ङ्क्षसह, डॉ. विनय कुमार ङ्क्षसह, डॉ. प्रभाष चंद्र, डॉ. सुरेश पांडेय, डॉ. सहजानंद राय, डॉ. प्रेमकांत झा व डॉ. अनिल कुमार ईश्वर शामिल हैं। 

 इस बारे में संस्कृत विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने कहा कि विभिन्न माध्यमों से सूचना मिली है। हम कोर्ट के निर्णय प्राप्त होने का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट का निर्णय मिलते ही उसमें जारी आदेश के अनुरूप कार्रवाई की जाएगी। 

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