धन्नासेठ नौकर को पता ही नहीं की उनके खाते में पड़े थे 13 करोड़ , राजकुमार ने किया करोड़ों का अवैध लेन-देन

पश्चिम बंगाल के व्यवसायी पंकज व राजकुमार गोयनका के बीच चला करोड़ों का लेनदेन नौकर कुणाल के बैंक खाता से एक सप्ताह में 14 करोड़ का किया गया लेन देन 21 महीने से आर्थिक अपराध इकाई कर रही जांच।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 25 Sep 2020 06:01 PM (IST) Updated:Fri, 25 Sep 2020 06:01 PM (IST)
धन्नासेठ नौकर को पता ही नहीं की उनके खाते में पड़े थे 13 करोड़ , राजकुमार ने किया करोड़ों का अवैध लेन-देन
लगभग 21 महीने से इस मामले की जांच आर्थिक अपराध इकाई कर रही है।

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। नोटबंदी के दौरान करोड़ों के अवैध लेनदेन के आरोपित राजकुमार गोयनका के नौकर कुणाल को पता नहीं था कि उसका दो बैंक खाता है। इस खाता से करोड़ों का लेनदेन हुआ है। इसका पता तब चला जब आयकर के अधिकारी उसके घर पर पहुंचे। उसकी खास्ता आर्थिक स्थिति को देखकर अधिकारियों को माजरा समझते देर नहीं लगी। उसकी पत्नी ने अधिकारियों को बताया कि राजकुमार गोयनका के फर्म में कुणाल नौकरी करता है। इसके बाद आयकर अधिकारियों ने राज कुमार गोयनका व उसके भाई अशोक गोयनका के फर्म व आवास पर छापेमारी की।

दो बैंकों में खाता खोला था

छानबीन से पता चला कि मोबाइल एसेसरीज और आभूषण कारोबारी राज कुमार गोयनका ने रामबाग निवासी अपने नौकर कुणाल के नाम पर अलग अलग दो बैंकों में खाता खोला था। उसे नौकरी पर रखने के शुरुआती दौर में ही उसकी आइडी ली थी। इसी आइडी पर बैंक में यह खाता खोला गया। नोटबंदी के बाद कुणाल के एसबीआइ वाले खाता से एक सप्ताह के अंदर ही अलग अलग तिथियों में 14 करोड़ रुपये का लेन देन किया गया। असलियत की जानकारी होने पर कुणाल ने 22 दिसंबर 2016 राज कुमार गोयनका व उसके भाई अशोक गोयनका के विरुद्ध मिठनपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। कुणाल के खाता से गोयनका बंधुओं ने पश्चिम बंगाल के व्यवसायियों से सर्वाधिक लेन-देन किया था। इसी आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने पश्चिम बंगाल से पंकज को और मुजफ्फरपुर से राज कुमार गोयनका को गिरफ्तार किया। अशोक गोयनका अब तक फरार है।

आर्थिक अपराध इकाई कर रही जांच

लगभग 21 महीने से इस मामले की जांच आर्थिक अपराध इकाई कर रही है। पिछले साल छह फरवरी को मिठनपुरा थाना पुलिस से इस मामले का चार्ज सीआइडी कंट्रोल ने लिया था। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने भी केस दर्जकर जांच शुरू की। लगभग आधा दर्जन आइओ भी बदले, फिर भी पुलिस की जांच धीमी रही। पुलिस को कोई विशेष सुराग नहीं मिला। कई आइओ तो केस डायरी भी सही तरीके से लिख नहीं पाए। बस केस का चार्ज बदलकर अपना पल्ला झाड़ते रहे। 

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