मधुबनी कोर्ट से भी 'निर्भया' के दोषियों को सुनाई जा चुकी है फांसी की सजा

मधुबनी में फांसी की सजा देने का अबतक पहला मामला सामने अाया है। यह सजा 2015 में एक मासूम लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में दिया गया था।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Sat, 06 May 2017 02:05 PM (IST) Updated:Sat, 06 May 2017 02:05 PM (IST)
मधुबनी कोर्ट से भी 'निर्भया' के दोषियों को सुनाई जा चुकी है फांसी की सजा
मधुबनी कोर्ट से भी 'निर्भया' के दोषियों को सुनाई जा चुकी है फांसी की सजा

मधुबनी [जेएनएन]। वर्ष 2012 में जिले के जयनगर के कुआढ़ गांव में जिले के ही पंडौल के बथने गांव से बरात गई एक मासूम लड़की से दुष्कर्म एवं हत्या की घटना में दो दोषियों को तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट, मधुबनी ने फांसी की सजा सुनाई थी। इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया था।

यह मधुबनी कोर्ट का पहला ऐसा फैसला था जिसमें आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस घटना ने समाज को क्षुब्ध, शर्मसार कर दिया था। फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पीड़िता के परिजन सहित सभी को संतोष हुआ था।

यह थी घटना
28 जून 2012 की रात पंडौल थाना क्षेत्र के बथने गांव से जयनगर के कुआढ़ गांव में एक बरात गई थी। जिसमें 8 वर्षीय लड़की के साथ बरात गए तीन चालकों ने दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या कर दी थी। इस बाबत जयनगर में कांड संख्या 122/12 के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए आम लोग सड़क पर आ गए थे।

जुलाई 2014 में इस घटना के दो आरापितों कैलाश पासवान और सुरेश मंडल को तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनमोहन शरण लाल ने फांसी की सजा सुनाई तो यह मधुबनी जिले के न्यायालय के इतिहास में पहली फांसी की सजा के रूप में दर्ज की गई। जिसके कारण यह जजमेन्ट चर्चा में रहा।

मासूम बच्ची के पिता ने कहा था कि बच्ची तो नहीं लौट कर आएगी लेकिन दोनों आरोपितों को फांसी की सजा से संतोष हो रहा है। वहीं तीसरे अभियुक्त मदन साह के फरार होने पर दुख भी जताया था।

इसी मामले में फांसी की सजा प्राप्त दोनों अभियुक्तों की क्रिमिनल अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने पुन: कुछ बिन्दुओं पर सुनवाई के लिए मधुबनी न्यायालय को भेज दिया था।  संयोगवश तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में मनमोहन शरण लाल के समक्ष ही यह मामला आया। 

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उन्होंने हाईकोर्ट के निर्देशानुसार और अभियुक्तों की मांग के अनुसार पूरे मामले की सुनवाई की और 2015 में अभियुक्तों को मासूम की हत्या और दुष्कर्म का दोषी मानते हुए फांसी की सजा बहाल रखी वहीं उम्रकैद की भी सजा सुनाई। फिलहाल मामला ऊपरी अदालत में चल रहा है।

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