जिले की गंगा-जमुना संस्कृति से नई पीढ़ी को जोड़ने में लगे हैं नेहाल अख्तर
जिला की अपनी संस्कृति वर्षाें पुरानी है। यहां की संस्कृति में रहन-सहन भोजन रीति-रिवाज और सामाजिक व्यवहार सहित कई अन्य चीजें शामिल हैं।
संवाद सहयोगी, किशनगंज : जिला की अपनी संस्कृति वर्षाें पुरानी है। यहां की संस्कृति में रहन-सहन, भोजन, रीति-रिवाज और सामाजिक व्यवहार सहित कई अन्य चीजें शामिल हैं। यहां की संस्कृति अत्यंत ही निराली है। इस संस्कृति की मान्यता, प्रथाओं, सीखे हुए व्यवहार सहित नैतिकमूल्यों के समूह से है। जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता नेहाल अख्तर हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
नेहान अख्तर बताते हैं कि जिला में अधिकतर लोगों द्वारा बोल-चाल में सूरजापुरी भाषा का प्रयोग किया जाता है। 17 भाषाओं के संगम से सूरजापुरी भाषा बना है। यह भाषा अत्यंत ही मधुर है। इस सूरजापुरी भाषा को कायम रखने के लिए गांवों में शिविर लगा कर युवाओं को इस भाषा के प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता हूं। जिससे कि समाज के लोगों में आपसी भाईचारा के साथ सांस्कृतिक सौहार्द बना रहे। यहां के अधिकतर लोगों का मानना है कि जिले में सूरजापूरी आम यहां का विशेष फल है। इसकी मिठास की तुलना शहद से की जा सकती है। इस सूरजापुरी आम के मिठास की तरह यहां बोली जाने वाली सूरजापूरी भाषा का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए लोगों को प्रेरित भी करता हूं। जिले की संस्कृति में भोजन के रूप में यहां के लोग चावल को विशेष महत्व देते हैं। इसलिए इस जिले के शत प्रतिशत किसान धान की खेती करते हैं। यहां के संस्कृति में पसंद की बात करें तो पंता भात, चावल से बने गर्म-गर्म भात, भक्का और मछली यहां के लोगों के मुख्य भोजन में शामिल हैं। इस संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता सभी धर्म के लोग आपस में भाई-भाई की तरह मिल जुलकर रहते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं से नए पीढ़ी को जोड़ने में लगा रहता हूं। हालांकि इस कार्य में कभी-कभी आर्थिक कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ता है। इसके बावजूद भी यहां की संस्कृति को बरकारा रखने के लिए जीवन के अंतिम समय तक प्रयास जारी रहेगा।