डीएम साहब, आजाद भारत में इस कुंती को कौन देखेगा

जमुई। अब इसे नाम का प्रभाव कहें या आजादी के 70 साल बाद भी एक छत के लिए तरसते स्वतंत्र भारत के नागरिक की दास्तां।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 Aug 2017 03:01 AM (IST) Updated:Tue, 15 Aug 2017 03:01 AM (IST)
डीएम साहब, आजाद भारत में इस कुंती को कौन देखेगा
डीएम साहब, आजाद भारत में इस कुंती को कौन देखेगा

जमुई। अब इसे नाम का प्रभाव कहें या आजादी के 70 साल बाद भी एक छत के लिए तरसते स्वतंत्र भारत के नागरिक की दास्तां। एक जमीन के छोटे से टुकड़े पर मिट्टी का बर्तन बेचकर अपना जीवन गुजारने वाली कुंती की कहानी प्रशासनिक उदासीनता और नेताओं के दावे की पोल खोल रहा है। जमुई के पुरानी बाजार सड़क पर एक टूटे हुए मकान के सामने मिट्टी का बर्तन बेचने वाली कुंती पिछले एक महीने से बीमार है। रह-रहकर उल्टी होती है। बुखार से शरीर तप रहा है। बेसुध ऐसी कि बर्तन खरीदने-बेचने का सिलसिला भी टूट गया है। खोइछे में जमा खुदरे पैसे भी अब नहीं है कि खाने के लिए कुछ खरीद सके। आसपास के लोगों ने जो कुछ दिया उससे वह मूढ़ी और चाय पर अपना गुजारा कर लेती है। ऐसे में खाली पेट बुखार भी और चढ़ जाता है। अभी पड़ोसी हैप्पी ¨सह, सांतनु, दिनेश केशरी और राजेश साह इत्यादि ने कुंती को मदद और खाना देना प्रारंभ किया है जिससे उसकी सांस चल रही है। कुंती ने बताया कि जवानी में पति मर गया और 15 साल पहले एक बेटा था वह भी उसे छोड़ गया। ससुराल वाले ने घर छुड़ा दिया। पिता विश्वनाथ साव ने मरने से पहले अपनी ही जमीन पर उसे बसा लिया। बमुश्किल एक डिसमील से भी कम इस जमीन के टुकड़े पर कर्कट का छत डालने के लिए भी उसके पास पैसे नहीं है। नियम-कानून समझती नहीं है। जमीन का कागज बनवाने, रसीद कटाने के लिए सीओ से लेकर कर्मचारी तक तथा वार्ड काउंसलर से मकान बनवाने के लिए सैकड़ों चक्कर काट चुकी है। वार्ड काउंसलर ने सबका घर बनवाया पर वह अब भी नाक रगड़ते खुले आसमान के नीचे भगवान पर भरोसा कर बर्तन बेच रही थी। यहां भी भगवान ने दगा दे दी और वह बीमार होकर किसी मदद के इंतजार में तड़प रही है।

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