दूसरों के हित करने से सुख की होती है प्राप्ति : दलाईलामा

फोटो-804 806 807 व 809 -सुनने चिंतन करने और फिर अभ्यास करने से होती है ज्ञान की प्राप्ति -हमें बुरे संगत का भी त्याग करना चाहिए केवल सुनने से कुछ नहीं होगा -किसी को ज्ञान देने से पहले आपको ज्ञानवान होना होगा ------------ जागरण संवाददाता गया

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Jan 2020 08:24 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jan 2020 08:24 PM (IST)
दूसरों के हित करने से सुख की होती है प्राप्ति : दलाईलामा
दूसरों के हित करने से सुख की होती है प्राप्ति : दलाईलामा

गया । तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा कि दूसरों का हित करने से ही सुख की प्राप्ति होती है। किसी का भला करेंगे तो आपके साथ भी निश्चित ही अच्छा होगा। इसलिए सुख चाहते हैं तो बोधिचित्त का अभ्यास करें। सुनने के बाद उस पर चिंतन करें। सुनने, चिंतन करने और फिर अभ्यास करने से ही ज्ञान की प्राप्ति होगी। हमें बुरे संगत का भी त्याग करना चाहिए। केवल और केवल सुनने से कुछ नहीं होगा।

ये बातें रविवार को दलाईलामा ने बोधगया के कालचक्र मैदान में जारी प्रवचन के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध ने अनुभव के द्वारा ज्ञान की प्राप्ति की। आप किसी को ज्ञान तभी दें सकते हैं जब आपके पास ज्ञान होगा। अपने अंदर की बुराई को नष्ट कर बुद्ध बने।

दलाईलामा ने कहा कि मैं दीक्षा देकर खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं। ऐसा लगता है कि इससे पुण्य का लाभ हो रहा है। संस्कृत परंपरा से यह आतरिक अस्तित्व की शून्यता की समझ के विकास, परोपकार के लिए बोधिचित्तोत्पाद और छह पारमिताओं के लिए निर्देश तथा अभ्यास को संरक्षित करता है। आधारभूत रूप से यह दूसरों की सहायता करने से संबधित है। हमें अज्ञानता पर काबू पाने की आवश्यकता है। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से सलाह दी अच्छी तरह से अपने मन को वश में करो। हम अनुपयुक्त रूप से सोचते हैं, हम भ्राति के अधीन हो जाते हैं, जिसके मूल में अज्ञान है। वस्तुएं जिस रूप में प्रतीत होती हैं हम उसी को लेकर चिपके रहते हैं। अर्थात हम उन्हें एक स्वतंत्र अस्तित्व लिए हुए के रूप में देखते हैं। बोधगया के पवित्र भूमि पर जिस प्रकार बुद्ध ने व्याख्या किए हैं। हमें उसी प्रकार करना चाहिए। इससे खुशी होती है। बोधगया में बोधिचित्त की प्राप्ति कर रहा हूं और हर दिन अभ्यास भी करता हूं। बुद्ध की शरण में हम दूसरे के लिए जाते हैं और दूसरे मित्रों व जीवों के लिए बोधिचित्त का दीक्षा ग्रहण करते हैं। महाकरुणा के उदय होने से बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। यमातक तिब्ब्ती बौद्ध परंपरा गेलुग के अनुत्तरयोग तंत्र से जुड़े वज्रयान बौद्ध देव हैं। बौद्ध तंत्र के तहत मंडल रहस्यात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसमें भगवान बुद्ध का गुरु के रूप में उपस्थित होना, समाधिस्थ होना, चमत्कार प्रदर्शन करना, देवी-देवताओं से घिरे रहना शामिल है। उत्पत्ति क्रम में इष्ट देवों की भावना करना शामिल है। अनुत्तर योग तंत्र में बुद्ध के त्रिकाय- धर्मकाय, संभोगकाय और निर्माणकाय को क्रमश: मृत्यु, अंतरभव और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से मार्ग पर लाना है। जहा एक ओर सूत्र साहित्य बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए तीन अनगिनत या उससे अधिक कल्पों की बात करता है, तात्रिक ग्रंथों में एक ही जीवन काल में एक ही शरीर में ऐसा कर पाने की बात की गई है।

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