औरंगाबाद में पुनपुन नदी के अस्तित्‍व पर ही मंडरा रहा खतरा, अतिक्रमण और गंदगी के कारण हो गया है बुरा हाल

अतिक्रमण और गंदगी के कारण पुनपुन नदी के अस्तित्‍व पर संकट आने लगा है। कभी सदानीरा यह नदी वर्तमान में बरसाती नदी बनकर रह गई है। इस आेर जल्‍द सरकार का ध्‍यान नहीं गया तो यह नदी इतिहास का हिस्‍सा बनकर रह जाएगी।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 26 Dec 2020 08:12 AM (IST) Updated:Sat, 26 Dec 2020 08:12 AM (IST)
औरंगाबाद में पुनपुन नदी के अस्तित्‍व पर ही मंडरा रहा खतरा, अतिक्रमण और गंदगी के कारण हो गया है बुरा हाल
औरंगाबाद के नवीनगर में सूखी पड़ी पुनपुन नदी। जागरण

जासं, औरंगाबाद। कभी अविरल बहने वाली पुनपुन नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। संरक्षण के अभाव में दिन प्रतिदिन इसकी हालत खराब होने लगी है। कभी सदानीरा रहने वाली यह नदी वर्तमान में बरसाती नदी में तब्‍दील हो गई है।

नवीनगर में है पुनपुन का उद्गम स्‍थल

नवीनगर प्रखंड के कुंड के पास पुनपुन नदी का उद्गम स्थल स्थित है। यहां छोटे से गड्ढे़ से पुनपुन नदी निकलती है। यहां से कई इलाके को सिंचित करते हुए नवीनगर होते हुए गंगा नदी में यह मिल जाती है। पुनपुन को आदि गंगे पुन पुन की संज्ञा दी गई है। श्रद्धालु इस नदी में पितृ तर्पण करते हैं। इस नदी की व्याख्या पुराणों में की गई है।

कभी बहती थी पानी की अविरल धारा

लोगों का कहना है कि पहले इस नदी में पानी की अविरल धारा बहती थी। गर्मी में चापाकल सूखने के कारण ग्रामीण इस नदी का पानी पीते थे। लेकिन अतिक्रमण के कारण नदी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। यह नदी बरसाती बनकर रह गई है। नवीनगर के तत्कालीन सीओ राणा अक्षय प्रताप सिंह के नेतृत्व में पुनपुन नदी को अतिक्रमणमुक्त करने की मुहिम चलाई थी। लेकिन यह बस कागजी ही साबित हुआ। किसानों का कहना है कि इस नदी से दर्जनों गांव की फसलें सिंचित होती थीं। परंतु आज देखने के लिए भी पानी नदी में नहीं है। इन दिनों मौसम के कड़े रूख के कारण जल संकट गहरा गया है।

एक ओर जल संरक्षण की बात तो दूसरी ओर नदी की उपेक्षा

क्षेत्र के तमाम जलस्रोत दम तोड़ने लगे हैं। लोग पेयजल की समस्या को लेकर गंभीर दिख रहे हैं। जिनके घर में सबमर्सिबल या ट्यूबवेल है, उन्‍हीं को राहत है। बाकी के घरों में जहां हैंडपंप लगे वहां समस्‍या हो गई है। कुछ ऐसे चापाकल हैं। जिनसे केवल सुबह और शाम पानी मिल रहा है। ऐसे में लोगों को पानी के लिए उन घरों का मुंह देखना पड़ रहा है जिनके घरों में सबसर्मिबल लगा है। लेकिन यह सुविधा क्षेत्र के कुछ ही घरों में उपलब्ध है। जिससे समस्या का निदान होना सभी घरों में संभव नहीं है।

अन्‍य नदियों का अस्तित्‍व भी खतरे में

नदियों का अस्तित्व खतरे में है। हर घर नल का जल योजना प्रभावशाली नहीं दिख रही है। हालांकि इस योजना से लोगों को उम्मीद थी कि अब सभी घरों में शुद्ध पेयजल की समस्या कम होगी, लेकिन यह योजना भी कुछ ही वार्डों में क्षणिक सुख दे रही है। प्रखंड के अति नक्सल प्रभावित दक्षिणी आठ पंचायतों में पानी के लिए हाहाकार है। आमजन से लेकर जानवर तक पानी को लेकर बेचैन हैं। जानवर पानी को लेकर एक गांव से दूसरे गांव भटक रहे हैं। जलसंकट की स्थिति भयावह बनती जा रही है।

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