यहां बनती थी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति
फोटो . -बेलागंज प्रखंड में नेयामतपुर आश्रम में क्रांतिकारी होते थे एकजुट -पं. यदुनंदन शर्मा ने स्वतंत्रता सेनानी व स्थानीय किसानों के सहयोग से की थी आश्रम की स्थापना -ब्रिटिश फौज ने आधी रात को आश्रम पर सैकड़ों चक्र बरसाई थीं गोलियां -महावीर सिंह को गंवानी पड़ी थी जान कई लोग हुए थे जख्मी --------- -1933 में स्वामी सहजानंद सरस्वती के निर्देश पर हुई थी स्थापना -1942 में स्वतंत्रता के लड़ाकों द्वारा चाकंद स्टेशन पर हमला करने पर भड़क गए थे अंग्रेज ---------
राकेश कुमार, बेलागंज
(गया)
बूंद-बूंद दे लहू अपना, सींचें हिद चमन। जब तक सूरज चांद रहेगा, याद करेगा इन्हें वतन। इसको चरितार्थ करता है नेयामतपुर आश्रम। स्वतंत्रता आदोलन का मुख्य केंद्र बिंदु एवं स्वतंत्रता सेनानी किसान नेता पं. यदुनंदन शर्मा की कर्मभूमि हुई करती थी। यहां अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाने व उसे निष्पादन करने के लिए क्रांतिकारी एकजुट हुआ करते थे।
बेलागंज प्रखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर दक्षिण गया-पटना राष्ट्रीय राजमार्ग पर 1933 में स्वामी सहजानंद सरस्वती के निर्देश पर पं. यदुनंदन शर्मा ने स्वतंत्रता सेनानी व स्थानीय किसानों के सहयोग से इस आश्रम की स्थापना की थी। इस पर अंग्रेजी हुकूमत की नजर रहती थी। सन 1942 में स्वतंत्रता के लड़ाकों ने सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से चाकंद स्टेशन पर हमला बोलते हुए आग लगा दी थी। ब्रिटिश फौज ने आधी रात को नेयामतपुर आश्रम पर सैकड़ों चक्र गोलियां बरसाई। कई लोग जख्मी हुए थे और नेयामतपुर गाव के महावीर सिंह को जान गंवानी पड़ी थी। उसी लहर में कई लोगों के साथ पं. यदुनंदन शर्मा भी पकड़े गए। उन्हें मार भी खानी पड़ी और सश्रम कारावास की घोषणा की गई। इस आश्रम में महात्मा गाधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल सहित कई दिग्गज नेताओं का पदार्पण एवं ओजस्वी भाषण हुआ।
स्वामी सहजानंद सरस्वती के निर्देश व पं. शर्मा की देखरेख में आश्रम के अंदर दीनबंधु पुस्तकालय का संचालन किया जाता था। यहा से फिरंगियों के विरुद्ध व स्वतंत्रता सेनानियों के मार्गदर्शन के लिए 'जागते रहो' पत्रिका का संपादन व प्रेषण हुआ करता था। एक दौरे में नेयामतपुर आश्रम आए पं. जवाहर लाल नेहरू ने पुस्तकालय के विस्तार के लिए अपने फंड से राशि दी। पुस्तकालय का नाम बदलकर दीनबंधु से कमला नेहरू पुस्तकालय कर दिया गया। सन 1896 के माघ माह में बसंत पंचमी के दिन वर्तमान अरवल जिला के मंझियामा गाव में एक गरीब शाक द्वीपीय ब्राह्माण कुल में जन्मे पं. यदुनन्दन शर्मा देश की आजादी की जंग और किसानों की जमींदारी प्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए अपना घर परिवार त्याग दिया। आश्रम के विकास के लिए संघर्ष करते हुए 03 मार्च 1975 को पं. यदुनंदन शर्मा का देहावसान हो गया। आजादी के बाद कई गण्यमान्य नेता इस आश्रम को नमन करने आते रहे हैं। इस स्थान की महत्ता को देखते हुए रेलमंत्री रहे बाबू जगजीवन राम ने गया-पटना रेलखंड पर नेयामतपुर में हाल्ट बनवाया था। मगर इस आश्रम का दुर्भाग्य कहें या देश की व्यवस्था का जो इतने महान स्थली आज प्रशासनिक एवं सामाजिक उपेक्षा के कारण इतिहास के अनेको स्मृतियां संजोए अपनी बदनसीबी का रोना रो रहा है। वर्तमान में स्थानीय स्तर से आश्रम में पं. शर्मा की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। आश्रम की जमीन पर अवैध अतिक्रमण बदस्तूर जारी है। कमला नेहरू पुस्तकालय भवन में स्थानीय लोग मवेशी बाधते हैं।
शिक्षक शंभु शरण शर्मा कहते हैं, स्वतंत्रता सेनानी के लिए यह आश्रम स्थापित हुआ। यहां से देश की आजादी की लड़ाई लड़ी गई। आजादी के बाद इस आश्रम की अनदेखी की गई। इसका विकास जरूरी है।