मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुनी करने की दिशा में हो रहा काम

मोतिहारी। मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुनी करने की दिशा में सरकार का प्रयास अब रंग लाने लगा है। जिले

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Feb 2019 07:59 AM (IST) Updated:Sat, 16 Feb 2019 07:59 AM (IST)
मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुनी करने की दिशा में हो रहा काम
मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुनी करने की दिशा में हो रहा काम

मोतिहारी। मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुनी करने की दिशा में सरकार का प्रयास अब रंग लाने लगा है। जिले के पांच मनों का विकास कर उसमें मत्स्यपालन का लाभ अब सीधे मछुआरों को मिलने लगा है। इससे जुड़े सैकड़ों परिवार के लोगों को रोजगार मिलने के साथ वे समृद्धि की राह पर चल पड़े हैं। भारत सरकार के एनएफडीवी की मदद से कररिया, रूलही, सिरसा, मझरिया व कोठिया मन को विकसित कर उसमें मछली पालन किया जा रहा है। इस कार्य की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्सि्यकी अनुसंधान संस्थान बैरकपुर कोलकाता के तत्वावधान में शुक्रवार को कररिया मन के किनारे मत्स्य उत्सव का आयोजन किया गया। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एमए हसन, वरिष्ठ वैज्ञानिक गणेश चंद्र, सुमन कुमारी व राजू बैठा ने बताया कि जिले में अब तक सभी मनों में मत्स्य उत्पादन बेहतर तरीके से हो रहा है। मछुआरों को समय समय पर प्रशिक्षण देकर उन्हें नई तकनीक का ज्ञान दिया जाता है। कररिया मन को दो भागों में बांटकर मत्स्य सहयोग समितियों को देखरेख की जिम्मेदारी दी गई है। वहां का उत्पादन इस साल रिकॉर्ड हुआ है। 40 एकड़ में एक साल के अंदर मत्स्यपालक 40 लाख व 70 हेक्टेयर में 70 लाख रुपये अर्जित किया है। मन से अब तक 74 टन मछली निकालकर बेचा जा सका है। इस अवधि में 250 मछुआरों के परिवार को रोजगार मिला है। केज, पेन व तालाब का किया गया है निर्माण मत्स्य वैज्ञानिकों ने कहा कि मुख्य रूप से इन मनों में केज, पेन व तालाब का निर्माण कर मछली पालन के तरीकों से मछुआरों को अवगत कराया गया है। दो हजार प्रति हेक्टेयर बड़ी अंगुलिकाएं पूरे साल में क्रमवार तरीके से डाली जाती है। सौ एमएम साइज की मछलियां बड़ी होकर अब निकलने लगी है। अक्टूबर से निकल रही मछलियों से मछुआरों की हालत में व्यापक सुधार हुआ है। बताया गया कि मन में मछलियों के लिए कोई चारा नहीं डाला जाता है। पूरी तरह प्राकृतिक स्त्रोत से उन्हें आहार मिलता है। इससे मछलियां स्वस्थ व पौष्टिक होती है। इन स्थलों पर केज, पेन व तालाब का निर्माण किया गया है। तालाब में अंगुलिकाएं रखी जाती है। सूबे में मछली उत्पादन की है बेहतर संभावनाएं वरिष्ठ वैज्ञानिक गणेश चंद ने बताया कि सूबे में 9 हजार हेक्टेयर में मत्स्यपालन को किया जा सकता है। बस जरूरत है उसका समुचित विकास किया जाए। इससे लोगों को बेहतर लाभ होने के साथ बाहर की मछलियों पर निर्भरता कम होगी। मछली के उत्पादन में वृद्धि होने के साथ लोग स्वत: आंध्रा की मछलियों की खरीदारी नहीं करेंगे। यहीं नहीं बिहार इस स्थिति में आ जाएगा कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद बाहर भी मछलियां भेज सकेगा। मौके पर भाजपा नेता राजा ठाकुर, धूपलाल सहनी, योगेंद्र चौधरी, विनय चौधरी समेत कई लोग मौजूद रहे।

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