यहां कभी होते थे पोलो से फुटबॉल तक के इंटरनेशनल मैच, आज 'रेगिस्तान' बने मैदान
दरभंगा महाराज के संरक्षण में कभी बिहार के दरभंगा में पोलो से फुटबॉल तक के इंटरनेशनल मैच होते थे। इनके लिए भव्य मैदान थे, जो आज 'रेगिस्तान' की तरह धूल से बदहाल पड़े हैं।
दरभंगा [जेएनएन]। एक जमाना था जब दरभंगा देश-विदेश में खेलों के लिए चर्चित था। यहां इंग्लैंड एवं अफगानिस्तान के अलावा पेशावर की टीमें पोलो, फुटबॉल, बिलियर्ड्स खेलने पहुंचती थीं। उस जमाने की कई खेल सामग्री आज भी याद दिलाती हैं। खिलाड़ी ट्रेन से नरगौना टर्मिनल स्टेशन पहुंचते थे। कई हवाई जहाज से पहुंचते थे। बिलियर्ड्स व अन्य इनडोर गेम के लिए दरभंगा क्लब चर्चित था।
वर्ष 1925 से लेकर 1956 तक यहां खेल की गतिविधियां होती रहीं। चार मैदानों में से तीन ही बचे हैं, वो भी जर्जर हाल में। वहां रेगिस्तान की तरह धूल उड़ती है।
दरभंगा में पड़ी थी अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन की नींव
वर्ष 1935 में अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन की नींव यहीं पड़ी थी। इसके संरक्षक तत्कालीन महाराज कामेश्वर सिंह बने थे। ख्याति प्राप्त खिलाड़ी विशेश्वर सिंह उर्फ राजा बहादुर संस्थापक बनाए गए थे। उन्हें फेडरेशन का मानद सचिव भी बनाया गया था।
दरभंगा कप के नाम से कलकत्ता (कोलकाता) के खेल मैदान में प्रतियोगिता होती थी। लाहौर, पेशावर, चेन्नई (मद्रास), कलकत्ता (कोलकाता), दिल्ली, जयपुर और बंबई (मुंबई) के अलावा अफगानिस्तान, इंग्लैंड की टीमें भाग लेती थीं। इंग्लैंड से प्रकाशित तत्कालीन टेलीग्राफ में इसकी खबरें छपती थीं।
अब खेल मैदानों में अलग गतिविधियां
चारों खेल मैदानों का स्वरूप बदल गया है। फुटबॉल के लिए बने इंद्र भवन स्थित खेल मैदान के बीच हेलीकॉप्टरों के उतरने के लिए हेलीपैड बना दिया गया है। लहेरियासराय का पोलो मैदान उस समय खेल गतिविधियों का मुख्य केंद्र था। जब इसे अंग्रेजों ने कब्जा लिया तो दरभंगा महाराज ने कादिराबाद स्थित पोलो मैदान बनवाया था।
अब यहां पॉलीटेक्निक और उद्योग विभाग समेत अन्य भवन हैं। इस मैदान की देखरेख के लिए जलमीनार बनी थी। पश्चिम छोर पर पवेलियन और इसके पीछे पोलो प्रशिक्षण केंद्र। ये सभी खत्म हो चुके हैं। अस्तबल होमगार्ड भवन हो गया है। लहेरियासराय पोलो मैदान में नेहरू स्टेडियम, इंडोर स्टेडियम और टेनिस कोर्ट बन गया है। इसकी भी स्थिति जर्जर है। इनडोर गेम के लिए बना दरभंगा क्लब जर्जर है।
सुख-सुविधा का था पूरा इंतजाम टीमों के ठहरने, स्नान करने, मनोरंजन और बाग-बगीचों में टहलने की शानदार व्यवस्था थी। एमआरएम कॉलेज के मौजूदा प्रशासनिक भवन में खिलाडिय़ों के ठहरने का इंतजाम होता था। परिसर स्थित तालाब में स्नान की व्यवस्था होती थी। संस्कृत विवि के समक्ष तालाब में दो बोट होते थे। खिलाड़ी इसमें नौकायन करते थे।
प्रतियोगिताओं का आयोजन सितंबर से शुरू होता था। विदेशी खिलाडिय़ों के लिए ऐसा वातावरण तैयार किया गया था ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो। खिलाडिय़ों के आवागमन के लिए हवाई जहाज और सीधी ट्रेन सेवा थी। विदेशी खिलाड़ी हवाई जहाज से सीधे दरभंगा हवाई अड्डा उतरते थे।
ललित नारायण मिथिला विवि कर रहा प्रयास
ललित नारायण मिथिला विवि के खेल पदाधिकारी डॉ. अजयनाथ झा बताते हैं कि जो खेल मैदान बचे हैं, उनके विकास के प्रयास हो रहे हैं। विवि के अंतर्गत आने वाले इंद्र भवन स्थित दो मैदानों के लिए राशि आवंटित करने के लिए सरकार को पत्र भेजा गया है।