प्राचीन भारत में प्रकृति पर हुए कई रिसर्च

दरभंगा। प्राचीन भारत में प्रकृति पर रिसर्च कर अनेक वैज्ञानिक अविष्कार किए गए। मॉडर्न साइंस की उम्र तीन-चार सौ वर्षो की है। लेकिन इससे पूर्व भी विज्ञान था। भारत इसका केंद्र रहा है। भवन-निर्माण धातु-विज्ञान वस्त्र-निर्माण के साथ-साथ ज्योतिष रसायन खगोल चिकित्सा आदि के क्षेत्रों में प्राचीन भारत अग्रणी था।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 Feb 2020 12:59 AM (IST) Updated:Thu, 13 Feb 2020 06:15 AM (IST)
प्राचीन भारत में प्रकृति पर हुए कई रिसर्च
प्राचीन भारत में प्रकृति पर हुए कई रिसर्च

दरभंगा। प्राचीन भारत में प्रकृति पर रिसर्च कर अनेक वैज्ञानिक अविष्कार किए गए। मॉडर्न साइंस की उम्र तीन-चार सौ वर्षो की है। लेकिन, इससे पूर्व भी विज्ञान था। भारत इसका केंद्र रहा है। भवन-निर्माण, धातु-विज्ञान, वस्त्र-निर्माण के साथ-साथ ज्योतिष, रसायन, खगोल, चिकित्सा आदि के क्षेत्रों में प्राचीन भारत अग्रणी था। अंग्रेजों ने अपना वर्चस्व साबित करने में हमारे विज्ञान को ध्वस्त कर दिया। आइंस्टीन, लीन बर्न आदि वैज्ञानिकों के कार्यो को देखें तो साफ प्रतीत होता है कि उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान से प्रेरणा ली है। ब्रह्मांड की वास्तविकता का ज्ञान भारत में प्राचीन काल से ही स्थापित रहा है। आधुनिक विज्ञान भी इसे स्वीकारता है। उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं इतिहासकार डॉ. जेएन सिन्हा ने भारत में विज्ञान-इतिहास के आइने में विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में कही।

लनामिविवि के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग एवं डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में डॉ. सिन्हा ने बताया कि मिथिला साइंस के ज्ञान का सेंटर रहा है। न्याय की वैज्ञानिक स्थापना काल से ही यह विश्व पटल पर उभर गया था। लेकिन, आधुनिक समय में भारत के विज्ञान के साथ मिथिला के ज्ञान की उपेक्षा हुई। इस क्षेत्र में शोध की जरूरत है।

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वैज्ञानिक आविष्कारों से भरे हैं वेद-पुराण : कुलपति

सेमिनार का उद्घाटन करते हुए कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि हमारा इतिहास समृद्धशाली है। वैज्ञानिक अविष्कारों से हमारे वेद पुराण भरे हुए हैं। प्राचीन भारत में शोध-अविष्कार होते थे और नालंदा, तक्षशिला आदि जगहों पर विश्वभर के विद्यार्थी आकर ज्ञान प्राप्त करते थे। पर हम अपनी थाती को भूल गए हैं। दूसरों देशों का मुंह ताकते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वो सिर्फ क्लास तक सीमित ना रहें। बल्कि, इससे इतर जगहों से भी ज्ञान अर्जित कर उस पर कार्य करें और प्राचीन गौरव को पुनस्र्थापित करें।

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विज्ञान आधारित रहा है भारतीय ज्ञान :

कुलसचिव कर्नल निशिथ कुमार राय ने कहा कि विज्ञान-इतिहास मानवीय विकास के लिए आवश्यक है। भारतीय ज्ञान विज्ञान आधारित रहा है। प्रकृति और मानवीय पहलुओं पर जितने कार्य भारत में हुए हैं, उतना पूरे विश्व में कहीं नहीं हुआ। एमएलएसएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. विद्यानाथ झा ने कहा कि प्राचीन विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला का अहम स्थान रहा है। यह क्षेत्र ज्योतिष व खगोल के क्षेत्र में श्रेष्ठ रहा है। सोशल साइंस डीन डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि भारत यूं ही विश्वगुरू नहीं कहलाता रहा है। मेडिकल साइंस की अधिकांश चिकित्सा पद्धति हमारे आयुर्वेद से प्रेरित है। मटेरियल साइंस भारत की देन :

सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री डॉ. मानस बिहारी वर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान पूरी तरह वैज्ञानिक रहा है। पश्चिमी जगत ने इसे हाथो-हाथ लिया। पर, इसका श्रेय भारत को नहीं दिया। मटेरियल साइंस विश्व को भारत की देन है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अमिताभ कुमार, स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. प्रभाषचंद्र मिश्र व धन्यवाद ज्ञापन मुकेश कुमार झा ने किया। कार्यक्रम में डॉ. अयोध्यानाथ झा, डॉ. जयशंकर झा, डॉ. अरूणिमा सिंहा, डॉ. प्रतिभा गुप्ता, डॉ. पुनिता झा, डॉ. कुलानंद यादव, डॉ. जीवानंद झा आदि मौजूद थे। सेमिनार की समाप्ति पर अतिथियों ने नरगौना परिसर में पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।

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