महापर्व के बाद बक्सर पर्व की तैयारी शुरू, पंचकोश यात्रा 27 से

महापर्व के बाद 'बक्सर पर्व' का आगमन हो रहा है। इनमें एक है पंचकोश का मेला और दूसरा सिय-पिय मिलन महोत्सव। पंचकोश महोत्सव के अंतिम दिन विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा महोत्सव का आयोजन इस साल एक दिसम्बर को होगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Nov 2018 05:00 PM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 05:00 PM (IST)
महापर्व के बाद बक्सर पर्व की तैयारी शुरू, पंचकोश यात्रा 27 से
महापर्व के बाद बक्सर पर्व की तैयारी शुरू, पंचकोश यात्रा 27 से

बक्सर । महापर्व के बाद 'बक्सर पर्व' का आगमन हो रहा है। इनमें एक है पंचकोश का मेला और दूसरा सिय-पिय मिलन महोत्सव। पंचकोश महोत्सव के अंतिम दिन विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा महोत्सव का आयोजन इस साल एक दिसम्बर को होगा। यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। इसी का निर्वहन करते हुए लोग 27 नवम्बर से पंचकोशी यात्रा के दौरान अहिरौली, नदांव, भभुवर, बड़का नुआंव तथा अंतिम पड़ाव के दिन चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण कर पूरा करेंगे। वहीं, अगले दिन 2 दिसम्बर को संतों की विदाई विश्रामकुंड (कोइरपुरवा, बसांव मठिया) से होगी। इसके तुरंत बाद ही नौ दिवसीय सिय-पिय महोत्सव नया बाजार में 5 दिसम्बर से प्रारम्भ हो रहा है। दोनों ही कार्यक्रमों में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की सहभागिता होगी। कार्यक्रम को लेकर दोनों ही समितियां पूरजोर तरीके से जुट गई हैं। वहीं, प्रशासन भी दोनों कार्यक्रमों को देखते हुए सुरक्षा और आधारभूत संरचना की तैयारियों में लग गया है।

क्या है पंचकोशी यात्रा का महत्व

पंचतत्व से बने हुए इस शरीर से मुक्ति की प्राप्ति हेतु लोग त्रेतायुग में भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित इस पंचकोसी परिक्रमा का अनुगमन करते हैं। इस बाबत मानस मर्मज्ञ सह समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा बताते हैं कि'महाजनों येन गत: स पंथा'अर्थात सनातन परंपरा में यह कहा गया है कि जिस मार्ग से प्रबुद्ध चले हों, उसी मार्ग पर चलना चाहिए। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए पंचकोश मेला त्रेतायुग से आज तक चल रही है। इधर, बसांव पीठाधीश्वर के महंत अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने बताया कि ब्रज की 84 कोस परिक्रमा, अयोध्या की परिक्रमा आदि से बक्सर पंचकोशी परिक्रमा का महत्व जरा भी कम नहीं है। महाराज जी ने कहा कि ये सारी परिक्रमाएं ईश्वर की प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। स्थल तक पहुंच पथ का जीर्णोद्धार जरूरी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन स्थलों तक जाने को माकूल सड़क और संसाधन का अभाव बना हुआ है। क्षेत्रीय ग्रामीणों का कहना है कि मेले के नाम पर ठेकेदारी तो होती है परंतु, व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं मिलता। समिति के सचिव का कहना है कि जिस पथ से होकर श्रद्धालु गमन करते हैं। उन रास्तों का बुरा हाल बना हुआ है। समय रहते यदि प्रशासन ध्यान दे तो कम से कम इसकी मरम्मत कराकर यात्रा को सुगम बनाया जा सकता है। सियपिय मिलन को विशाल मंच की तैयारी श्री सीताराम विवाह महोत्सव स्थल का सुप्रसिद्ध कार्यक्रम श्री सियपिय मिलन महोत्सव को लेकर 3 हजार वर्गफीट का विशाल मंच बनाने का कार्य युद्धस्तर पर जारी है। आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण जी महाराज ने शुक्रवार को बताया कि साकेतवासी परम पूज्य श्रीनारायणदास जी भक्तमाली उपाख्य नेहनिधि मामाजी के आशीर्वचन में कार्यक्रम 5 दिसम्बर से प्रारम्भ हो रहा है। जिसका समापन 13 तारीख को होगा। इस बार भी देश के कोने-कोने से कई श्रीसम्पन जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य एवं महान संतों का पदार्पण हो रहा है। जिनमें ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी श्रीवासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज, भानपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीदिव्यानन्द तीर्थ जी महाराज, जगद्गुरु श्रीरामनन्दाचार्य श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज, रामशरण जी महाराज, मुरारी बापू और रमेश भाई ओझा आदि प्रमुख हैं। वाल्मीकि रामायण कथा प्रतिदिन नौ दिवसीय सियपिय मिलन कार्यक्रम में रोजाना सुबह हरिनाम संकीर्तन, 6 से 9 रामचरितमानस का सामूहिक नवाह्न पारायण, पूर्वाह्न 9 से 12 कृष्णलीला एवं शाम 7 बजे से समागत आचार्यों तथा विद्वजनों द्वारा प्रवचन और रात्रि 9 बजे से रामलीला का भक्तजन दर्शन एवं आनन्द लेंगे। इसकी जानकारी देते हुए आश्रम के महंत ने बताया कि महर्षि श्रीखाकी बाबा सरकार के 49वें निर्वाण दिवस के इस महोत्सव पर प्रतिदिन अपराह्न 3 से शाम 7 बजे तक श्रीमन्माधव गौड़ेश्वर वैष्णवाचार्य पूज्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज, ज्ञान गुदरी वृंदावन द्वारा श्रीमद वाल्मीकि रामायण कथा की अमृत वर्षा की जाएगी। उक्त आयोजन को लेकर लगभग आठ बीघा में फैले इस परिक्षेत्र को ठीक कर इसकी घेराबंदी का कार्य जोर-शोर से जारी है।

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