सीएम ने दिया था रैयत पर्चा, फिर भी ख्वाब है आवास का सपना

बक्सर देश भर में अनुसूचित जाति के वंचित वर्ग को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने की कवायद हो रही है और उसके सकारात्मक असर दिख रहे हैं लेकिन कोरानसराय पंचायत के मठियां डेरा में गुजर वसर करने वाले 73 परिवारों की कहानी जुदा है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 11:27 PM (IST) Updated:Sun, 10 Jan 2021 11:27 PM (IST)
सीएम ने दिया था रैयत पर्चा, फिर भी ख्वाब है आवास का सपना
सीएम ने दिया था रैयत पर्चा, फिर भी ख्वाब है आवास का सपना

बक्सर : देश भर में अनुसूचित जाति के वंचित वर्ग को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने की कवायद हो रही है और उसके सकारात्मक असर दिख रहे हैं, लेकिन कोरानसराय पंचायत के मठियां डेरा में गुजर वसर करने वाले 73 परिवारों की कहानी जुदा है। इन परिवारों में शामिल जतकुटवां, मांझी, और नट बिरादरी के लोग सिस्टम के झोल में उलझ कर रह गए हैं। एक दशक पहले सूबे के मुख्यमंत्री के हाथों इन्हें रैयत का पर्चा मिला, लेकिन आज भी ये लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

किसी परिवार के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपना मकान नहीं और सभी लोग प्लास्टिक तानकर जीवन वसर करते है। बिरादरी के लाल बाबू, बछान, पप्पू नट आदि बताते हैं कि एक दशक पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विश्वास यात्रा के क्रम में कचईनियां आए थे। तब प्रशासन की पहल पर उन्हीें के हाथों उन लोगों को जमीन खरीदकर रैयत पर्चा उनसे दिलवाया गया था। इसके साथ ही यह भरोसा भी दिया गया कि जल्द ही सभी को आवास योजना का लाभ मिलेगा। तभी से ये महादलित मिले पर्चे पर प्लास्टिक का तिरपाल तानकर आवास का सपना देख रहे है। एक दशक बीत गया, लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ और न ही किसी बड़े पदाधिकारी और नेता को मुख्यमंत्री की घोषणा की याद आई।

पंचायत की योजनाओं के वंचित हैं लाभार्थी

मठिया डेरा के महादलित बस्ती के लोग रहते तो कोरानसराय पंचायत के दायरे में है। लेकिन, हद तो यह है कि पंचायत के किसी योजना का लाभ इन्हे मयस्सर नहीं है। बात चाहे राशन-किरासन की हो या फिर सरकार की अति महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना हो। बस्ती के किसी को यह नहीं मालूम कि जन वितरण प्रणाली क्या होता है। इन्हे यह भी नहीं मालूम कि सरकार इन्के हर घरो में पेयजल का लाभ पहुंचाने वाली है, पानी के निकास के लिए नाली का निर्माण होनें वाला है और आने-जाने के लिए सड़क की सुविधा मिलेगी। बस्ती के नरेश, विनोद, मंगनी और चानील बताते हैं कि पेयजल भी उनकी बस्ती में उपलब्ध नहीं है और किसी तरह पानी जुगाड़ कर उन लोगों का काम चलता है। बयान : यह मामला बहुत गंभीर है। जागरण के माध्यम से यह जानकारी हो रही है कि महादलित परिवार के लोग एक दशक पूर्व जमीन का पर्चा मिलने के बाद भी खुले आसमान तले रहने को विवश है। मामले की जंच कराकर उन्हें यथोचित लाभ दिया जाएगा।

हरेन्द्र कुमार, (एसडीओ, डुमरांव)

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