बाजारवादी संस्कृति से बचाने पर ही हो सकता है भोजपुरी का विकास

बक्सर विश्व की हजारों बोलिया अंतिम सांसे गिन रही हैं। बोली-भाषाओं की श्रीवृद्धि और समृद्धि के

By JagranEdited By: Publish:Sun, 21 Feb 2021 09:53 PM (IST) Updated:Sun, 21 Feb 2021 09:53 PM (IST)
बाजारवादी संस्कृति से बचाने पर ही हो सकता है भोजपुरी का विकास
बाजारवादी संस्कृति से बचाने पर ही हो सकता है भोजपुरी का विकास

बक्सर : विश्व की हजारों बोलिया अंतिम सांसे गिन रही हैं। बोली-भाषाओं की श्रीवृद्धि और समृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि इसे बाजारवादी संस्कृति से बचाया जाए। यह कहना है साहित्यकार डॉ. अरुण मोहन भारवि का। उन्होंने बताया कि भाषाओं के संरक्षण के लिए ही 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मनाने का फैसला 1999 में यूनेस्को के द्वारा लिया गया।

दरअसल, विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर भोजपुरी पत्रिका गधपूरना, अरुणोदय प्रकाशन तथा भोजपुरी साहित्य मंडल के संयुक्त बैनर तले भोजपुरी भाषा की दशा, दिशा एवं दुर्दशा पर एक सेमिनार का आयोजन बक्सर के बंगाली टोला स्थित आर्या एकेडमी के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भोजपुरी साहित्य मंडल के अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी ने की। इस दौरान जिले के प्रमुख नागरिकों, बुद्धिजीवी एवं साहित्यकारों ने कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। मौके पर स्व. चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह रचित एवं डॉ. अरुण मोहन भारवि द्वारा संपादित भोजपुरी इनसाइक्लोपीडिया पार्ट-टू का लोकार्पण भी किया गया। सेमिनार के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि बलिराज ठाकुर ने कहा कि आज भोजपुरी मात्र एक बोली ना होकर एक वैश्विक भाषा बन गई है। इस भाषा की साहित्यिक विरासत बहुत ही समृद्ध है। कार्यक्रम को डॉ. बैरागी, प्रभात चतुर्वेदी, दीप नारायण सिंह, कुमार नयन, अनिल कुमार त्रिवेदी आदि ने संबोधित किया। मौके पर डॉ. रमेश कुमार, श्री भगवान पांडेय, अतुल मोहन प्रसाद, अमरेंद्र दूबे शशि भूषण मिश्र, महेश्वर ओझा, रमाकांत तिवारी, शिव बहादुर पांडेय, रामेश्वर मिश्र विहान, श्रीनिवास पाठक ने अपने विचार रखें। इस दौरान एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें हिदी और भोजपुरी के कवियों ने अपनी प्रस्तुतियों से खूब वाहवाही बटोरी।

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