आरा शहर की अधिष्ठात्री हैं आरण्य देवी, महाभारतकाल से हो रही पूजा

आरा शहर की अधिष्ठात्री आरण्य देवी की पूजा यहां प्राचीन काल से हो रही है। मान्यता है कि देवी की स्थापना धर्मराज युद्धिष्ठिर ने की थी। इसे भगवान राम से भी जोड़ा जाता है।

By Pramod PandeyEdited By: Publish:Thu, 06 Oct 2016 04:34 PM (IST) Updated:Thu, 06 Oct 2016 11:11 PM (IST)
आरा शहर की अधिष्ठात्री हैं आरण्य देवी, महाभारतकाल से हो रही पूजा

भोजपुर [जेएनएन ]। भोजपुर के जिलामुख्यालय का नामकरण जिस आरण्य देवी के नाम पर हुआ है वे इलाके के लोगों की आराध्य हैं। यह नगर की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। मंदिर तो बहुत पुराना नहीं है पर यहां प्राचीन काल से पूजा का वर्णन मिलता है। संवत् 2005 में स्थापित इस मंदिर के बारे में कई किदवंतियां प्रचलित हैं। इसका जुड़ाव महाभारतकाल से है। इसे भगवान राम के जनकपुर गमन के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है।

इस मंदिर के चारो ओर पहले वन था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में भी ठहरे थे। पांडवों ने यहां आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। मां ने युधिष्ठिर को स्वप्न में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करे। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की थी।

वास्तुकला संवत् 2005 में स्थापित यह मंदिर संगमरमर की है। मंदिर का मुख्य द्वार पूरब की तरफ है। मुख्य द्वार के ठीक सामने मां की भव्य प्रतिमाएं हैं। द्वापर युग में इस स्थान पर राजा म्यूरध्वज राज करते थे। इनके शासन काल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ यहां पहुंचे थे। उन्होंने राजा के दान की परीक्षा ली। इस मंदिर में छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी और बड़ी प्रतिमा को सरस्वती का रूप माना जाता है।

पढ़ेंः चंडिका स्थानः यहां गिरी थी सती की बाईं आंख, अंगराज कर्ण से भी जुड़ी है कथा

ऐसे पहुंचें मंदिर
स्थानीय रेलवे स्टेशन से उत्तर तथा शीश महल चौक से लगभग 2 सौ मीटर उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है अति प्राचीन आरण्य देवी का मंदिर। यहां आवागमन के साधन सुलभ उपलब्ध रहते हैं। जहां मंदिर के आस-पास पूजा सामग्रियों की दुकानें सजी रहती है।

कहते हैं पुजारी

मंदिर के पुजारी संजय बाबा कहते हैं वैसे तो यहां भक्तों का बराबर तांता लगा रहता है। शारदीय व चैती नवरात्र पर विशेष पूजा अर्चना को भक्तगण पहुंचते हैं। दूसरे प्रदेशों से भी काफी संख्या में भक्त लोग पूजा अर्चना को यहां आते हैं।

पढ़ेंः बड़ी पटनदेवीः यहां गिरी थी सती की बाईं जांघ, पटना की हैं नगर रक्षिका

लल्लू भाई ने बताया कि नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। शारदीय नवरात्र की सप्तमी की अहले सुबह यहां विशेष आरती की जाती है और विशेष प्रसाद की व्यवस्था रहती है। मंदिर की सजावट और मां के भव्य शृंगार के लिए कोलकाता से माली आते हैं। विशेष फूलों से पूरे मंदिर की सजावट की जाती है।

chat bot
आपका साथी