जगह-जगह हो सेमिनार, सीएए से अनभिज्ञ हैं लोग; सियासत के कारण भय और भ्रम Bhagalpur News
देश के अधिसंख्य लोगों को सीएए और एनआरसी के बारे में पता नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों को इसके बारे में बताए। लोकतंत्र में विरोध की एक सीमा और मर्यादा भी होती है।
भागलपुर [कौशल किशोर मिश्रा]। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर देश में फैले भ्रम को दूर करने के लिए जरूरी है कि जगह-जगह सेमिनार आदि का आयोजन कर लोगों को हकीकत बताई जाए। इस पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह देशहित में कतई नहीं है। दैनिक जागरण कार्यालय में संपादकीय विभाग की अकादमिक बैठक में ये बातें विशिष्ट अतिथि अधिवक्ता ओमप्रकाश तिवारी ने कहीं। बैठक का विषय था-कैसे थमे सीएए पर भय और भ्रम की राजनीति?
विदेशों में भी बन रहा माहौल
ओमप्रकाश तिवारी ने कहा कि देश में भ्रम की स्थिति फैलाने के पीछे विदेशी ताकतें भी हैं। इस बात को समझना होगा कि भारत दुनिया में तेजी से एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। कई देश इसे पचा नहीं पा रहे। इसलिए यहां के मुद्दों को लेकर विदेशों में भी माहौल बनाया जा रहा है, जबकि यह किसी देश का बिल्कुल आंतरिक मामला है।
विरोध की सीमा रेखा जरूरी
सीएए का विरोध करने वाले बच्चों तक को इसमें शामिल कर रहे हैं। बच्चों की बात छोड़ दें, अधिसंख्य लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों को इसके बारे में बताए। लोकतंत्र में विरोध का हक सभी को है, लेकिन उसकी एक सीमा और मर्यादा भी होती है। इसके लिए रास्ते निकालने होंगे।
सीएए भारत के नागरिकों के लिए नहीं
सीएए के प्राविधानों को देखें तो यह कहीं से भी देश के नागरिकों के लिए नहीं है। यह पूरी तरह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन अल्पसंख्यकों के लिए है, जो वहां धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किए गए हैं। जो भारत में 31 दिसंबर 2014 तक शरणार्थी के रूप में आ चुके हैं, यह सिर्फ उन्हें ही नागरिकता देने के लिए है। इस सवाल पर कि इसमें सिर्फ छह धर्मों के ही लोग क्यों, तिवारी ने कहा-जिन देशों का उल्लेख किया गया है, वे धर्मनिरपेक्ष नहीं, बल्कि इस्लामिक देश हैं। इसलिए वहां के उन अल्पसंख्यकों को राहत दी गई है, जो धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किए गए हैं।
एनआरसी का तो अभी वजूद ही नहीं
इस मुद्दे पर हो रही राजनीति ने ही लोगों के बीच भय और भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। एनआरसी की बात हो रही है, जिसका अभी कोई वजूद ही नहीं है। नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) पर भी ऐसा ही भ्रम है, जबकि जनगणना हर दस साल पर होने वाली एक प्रक्रिया है। ऐसा ही कोई देश होगा, जिसके पास अपना एनपीआर नहीं। इसी आधार पर विकास की योजनाएं बनती हैं।
करना होगा कोर्ट के फैसले का इंतजार
जहां तक सीएए का सवाल है तो यह कानून बनने के बाद केरल से पहली याचिका कोर्ट में दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट में डेढ़ सौ अधिक याचिकाएं दाखिल हो गई हैं। हम भारत के नागरिक हैं और देश के संविधान और कोर्ट पर हमारा भरोसा है तो उसके फैसले का इंतजार क्यों नहीं? अपने देश में कानून का राज है। ऐसे में न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए। देश में भ्रम की स्थिति से निपटने के लिए विश्वविद्यालयों में, जगह-जगह सेमिनार का आयोजन कर भी लोगों को जागरूक किया जा सकता। लोगों को भी इस पर नजर रखनी होगी कि आमलोगों की भावनाओं को भड़का कर कोई भी माहौल खराब करने की कोशिश न कर सके। सीएए को गलत तरीके से परिभाषित कर लोगों को गुमराह भी किया जा रहा है।