बिहार में बाढ़: मिटा आदमी और जानवर के बीच फर्क, भूख से बेहाल हैं लोग

बिहार में बाढ़ की भयावह स्थिति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आदमी और जानवर के बीच का फर्क मिट गया है। लोग भूख से बेहाल हैं। चारो तरफ तबाही का मंजर है।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Thu, 17 Aug 2017 08:13 PM (IST) Updated:Thu, 17 Aug 2017 09:07 PM (IST)
बिहार में बाढ़: मिटा आदमी और जानवर के बीच फर्क, भूख से बेहाल हैं लोग
बिहार में बाढ़: मिटा आदमी और जानवर के बीच फर्क, भूख से बेहाल हैं लोग

अररिया [समीर सिंह]। अपने परिवार के साथ मनोहर पंडित मेरे सामने खड़े हैं। मंदिर के बरामदे के सामने की जगह है। इससे बस थोड़ी दूर पर सूअर-उसके छौने, आदमी-उसके बच्चे और रंभाती गाय। कोसी ने सबका वजूद एक कर दिया है। फिलहाल इनके बीच कोई फिरका नहीं बांटा जा सकता।

सूअर कीचड़ से लथपथ अपने छौनों के साथ और गाय अपनी गर्दन जमीन पर गिरा-फैला कर पसर गई है। हडिय़ाबाड़ा के मोकिम का बेटा भी एक फटी चटाई पर औंधे मुंह टोल टैक्स बूथ के करीब फोरलेन के बीचोंबीच लेटा है। आसपास बैठे लोगों में कुलदीप, जहीरूद्दीन, खलील कहे जा रहे हैं...,कहियो ऐहन विनाश नय देखलै छिए...।

मुड़बल्ला, डोरिया, बरदाहा, रमई, बेलई, लहसनगंज जानेवाली सड़क पानी में बिला (ध्वस्त) गई है। यहां से फारबिसगंज होते हुए तकरीबन 15 किलोमीटर  की दूरी तय कर ये लोग अररिया पहुंचे हैं। लोग बताते हैं कि डोमरा बांध टूटने से तबाही का यह मंजर फैला है।

हजारों हेक्टेयर से भी अधिक जमीन पर लहलहाते धान के पौधे पानी में डूबे हैं। किसान गमगीन हैं। तमाम लोग ट्रंक और केले के थंब की नाव बनाकर मुख्य सड़क पर भाग आए हैं। एक लड़का बताता है कि  13 अगस्त को उसे मैसेज मिला कि गांव में पानी आ सकता है। जितनी तेजी से मैसेज आया, उससे भी अधिक तेजी से गांव में पांच फीट तक पानी घुस गया।

लोग संभल भी नहीं पाए। कुछ लोग सड़कों पर भागे तो कुछ ने छतों पर चढ़कर जान बचाई। यहां से कुछ दूर, फारिबसगंज की मटियारी  पंचायत में शिवानंद दास का 14 वर्षीय पुत्र पानी की तेज धार में बह गया। इसी पंचायत के राजेश सिंह, राकेश पांडे कहते हैं कि स्थिति भयावह है। लोग भूख से बेहाल हैं। बाढ़ के पानी की तेज धार पांव को जमीन से उखाड़ देती है।

ककोड़वा बस्ती की शाहिना  अपने तीन वर्षीय बच्चे के साथ सदर अस्पताल, अररिया में भोजन पका रही हैं। वह कहती है कि बाढ़ ने उसका सब कुछ बहा दिया, सिर्फ तीन किलोग्राम चावल बचा है। परिवार के साथ मिलकर नमक-भात खा रही हैं।

चावल खत्म होने के बाद कैसे गुजारा होगा, यह सोचकर ही वे चिंतित हैं। शाहिना बताती हैं कि बाढ़ के बाद कई लोग बेघर हो गए हैं। राहत नाम की चीज नहीं है। घरों में रखा अनाज सड़ गया है। ककोड़वा के लोगों का कहना है कि सचमुच खौफनाक मंजर है। ऊपर वाला ऐसा मंजर दोबारा ना दिखाए।

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