400 वर्ष पुराना इतिहास : मेढ़ पर मेढ़ चढऩे के साथ प्राचीन महाशय ड्योढ़ी दुर्गा मंदिर में पूजा शुरू

महाशय ड्योढ़ी प्राचीन दुर्गा मंदिर में सप्तमी को ढाक की थाप के बीच विधि-विधान पूर्वक मेढ़ पर मेढ़ चढऩे के साथ ही देवी दुर्गा महारानी के पूजा-अर्चना के लिए मंदिर पट खोल दिए गए।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Tue, 16 Oct 2018 10:26 PM (IST) Updated:Wed, 17 Oct 2018 04:41 PM (IST)
400 वर्ष पुराना इतिहास : मेढ़ पर मेढ़ चढऩे के साथ प्राचीन महाशय ड्योढ़ी दुर्गा मंदिर में पूजा शुरू
400 वर्ष पुराना इतिहास : मेढ़ पर मेढ़ चढऩे के साथ प्राचीन महाशय ड्योढ़ी दुर्गा मंदिर में पूजा शुरू

भागलपुर [विकास पांडेय]। भागलपुर के चंपानगर महाशय ड्योढ़ी स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर में सप्तमी को ढाक की थाप के बीच विधि-विधान पूर्वक मेढ़ पर मेढ़ चढऩे के साथ ही देवी दुर्गा महारानी के दर्शनार्थ व पूजा-अर्चना के लिए मंदिर पट खोल दिए गए। लगभग 400 सालों से पूजित यहां की दुर्गा महारानी अत्यंत जाग्रत मानी जाती हैं। मंगलवार की दोपहर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने देवी दुर्गा के दर्शन किए तथा भक्तिपूर्वक उन्हें पुष्पांजलि दी।

यहां भगवती की विशाल प्रतिमा के ऊपर भगवान शिव की प्रतिमा बिठाकर उनकी भी पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। इसे मेढ़ पर मेढ़ चढ़ाये जाने के रूप में जाना जाता है। मणि मोहन बनर्जी उर्फ मंटू बाबा ने वैदिक मंत्रों का उच्चार कर विधि पूर्वक इस अनुष्ठान को पूरा कराया। उन्होंने बताया कि मंदिर में देवी दुर्गा की विशाल चार भुजा प्रतिमा के साथ छोटे आकार की अष्टधातु की दसभुजा दुर्गा भी बिठाई गई है। पूजा शुरू होने पर सबसे पहले उनकी व नव पत्रिका की पूजा की गई। उसके बाद वैदिक मंत्रों के साथ प्रतिमा को आभूषण धारण कराया गया तथा उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई।

उसके बाद उनकी विधि पूर्वक पूजा की गई। इससे पूर्व अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति को पालकी पर बिठाकर छतरी लगाकर बाजे-गाजे के साथ ठाकुरबाड़ी से सेवायत अरधेंदु घोष उर्फ पलटन घोष व पुरोहित मणिमोहन बनर्जी की अगुआई में मंदिर लाया गया। मंटू बाबा ने बताया कि वे दशमी तक मंदिर में ही बिराजेंगी। लगभग 400 सालों से देवी की पूजन की यही परिपाटी चली आ रही है। उनके अनुसार, चतुर्थी से ही मंदिर में अखंड ज्योति जल रही है, जो दशमी तक जलती रहेगी।

चतुर्थी से दशमी तक मंदिर के पट अहर्निस खुले रहेंगे। इसके पूर्व मंगलवार को प्रात: बाजे-गाजे के साथ नव पत्रिका को पालकी पर बिठाकर मंदिर से गंगा तट ले जाया गया और दूध, दही, घी, मधु, कपूर, गुड़, सरसों तेल, हल्दी, सहस्त्र धाराओं आदि नाना विधि से उन्हें स्नान करा कर उनकी पूजा की गई तथा पालकी पर वापस मंदिर लाया गया। उन्होंने बताया कि नव पत्रिका देवी स्वरूपा मानी जाती हैं और यहां प्रतिमा से पूर्व उनकी पूजा किए जाने की परिपाटी है।

इस अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी। नव पत्रिका को मंदिर में स्थापित करने के बाद पुरोहित द्वारा श्रद्धालुओं के बीच हल्दी, सिंदुर आदि के साथ कुबेर की पूजा की हुई कौडिय़ां लुटाई गई। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि लुटी हुई कौड़ी घर में रहने से कुबेर भगवान का आशीर्वाद बना रहता है। बुधवार को वहां अष्टमी पूजा होगी। इस बार अष्टमी को संधि या निशा पूजा रात्रि के बजाय दोपहर 12.03 बजे शुरू होकर 12.27 बजे तक होगी। देवी आराधना में यह पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। उसके बाद 12.51 बजे देवी को चार पाठे की बलि दी जाएगी। दोपहर व रात्रि में देवी की पूजा व आरती होगी।

खास बातें
-महाशय ड्योढ़ी में हो रही प्राचीन अष्टधातु की देवी के साथ प्रतिमा की पूजा
-बाजे-गाजे के साथ ठाकुरबाड़ी से पालकी पर मंदिर लाईं गईं अष्टधातु की प्राचीन भगवती की मूर्ति
-लुटाई गई कुबेर की पूजा की हुईं कौडिय़ां
-श्रद्धालुओं का विश्वास है कि लुटी हुई कौड़ी घर में रहने से बना रहता है कुबेर का आशीर्वाद

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