पर्यावरण के लिए शुभ है बढ़ती गरुड़ों की संख्या, 15 सौ गुरुडों में आधे भागलपुर में

अब भागलपुर के गंगा किनारे भी सैकड़ों गरुड़ जुटते हैं। गुरुडों की सेवा खुद मछुआरे कर रहे हैं। उसे खाने को मछलियां देते हैं। यहां यह भी जानना जरूरी है कि विश्‍व में इस समय लगभग 15 सौ गरुड़ हैं जिसमें आधे गरुड़ यहां के कदवा पुनर्वास केंद्र में है।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 09 Oct 2020 04:22 PM (IST) Updated:Fri, 09 Oct 2020 04:22 PM (IST)
पर्यावरण के लिए शुभ है बढ़ती गरुड़ों की संख्या, 15 सौ गुरुडों में आधे भागलपुर में
भागलपुर बरारी के पास गंगा तट पर मौजूद गरुड़

भागलपुर [अभिषेक कुमार]। दुनियाभर में इस समय कुल 1500 गरुड़ हैं, जिनमें से करीब आधे भागलपुर में कदवा दियारा स्थित गरुड़ पुनर्वास केंद्र में हैं। 2007 में यहां मात्र 78 गरुड़ थे। स्थानीय ग्रामीण व मछुआरे भी संरक्षण की मुहिम में जुटे हुए हैं। सभी के प्रयासों का सुपरिणाम सामने है।

पास से गुजरती गंगा भी इस कार्य में सहायक बन गई है। गंगा किनारे के गांवों और मछुआरों की बस्तियों में गरुड़ संरक्षण को लेकर बहुत सजगता है। लोगों ने इस बात को भलीभांति समझ लिया है कि गरुड़ समूचे पर्यावरण के लिए आवश्यक कड़ी है। जमीनी स्थिति से रूबरू होने के लिए हमने बरारी स्थित गोड़ी टोला का रुख किया। यहां गंगा के किनारे पहुंचते ही हमें दर्जनों गरुड़ दिखाई दिए। मानो मछुआरों की बाट जोह रहे हों। मछुआरे इन्हें प्रतिदिन भरपेट भोजन कराते हैं। पकड़ी गई मछलियों का एक हिस्सा गरुड़ों को देते हैं। बीते कुछ ही महीनों में यहां आने वाले गरुड़ों की संख्या 10 से बढ़कर 100 के पार पहुंच गई है।

इन्हीं में से एक मछुआरे योगेंद्र महलदार ने बताया, मान्यता रही है कि गरुड़ों को भोजन देने से भरपूर मछलियां पकड़ सकेंगे। लेकिन यह काम शायद बीच में रुक गया था, तभी तो गरुड़ गायब हो गए। तीन वर्ष पूर्व मंदार नेचर क्लब के सदस्यों ने हमें पक्षियों के संरक्षण के बारे में बताया। जाल में फंसे पक्षियों को मुक्त कराने की मुहिम में हम जुड़ गए। बकौल योगेंद्र, तब हमने पाया कि कुछ गरुड़ भी यहां आते हैं। इस उम्मीद से कि गरुड़ लौट आएं, हम सभी ने हर दिन पकड़ी गई मछलियों में इनका भी हिस्सा तय कर दिया।

अब तो मछुआरों के मछलियां फेंकते ही गरुड़ इन्हें लपक लेते हैं। मानो अभ्यस्त हो चुके हों। एक गरुड़ ढाई किलो तक मछलियां खा लेता है।

गरुड़ों का बसेरा कदवा दियारा इस तट से करीब 25 किलोमीटर दूर है। हमने निकटवर्ती गांवों का भी रुख किया। यहां घरों में भगवान विष्णु के वाहन के रूप में गरुड़ की पूजा की जाती है। शोधकर्ता संस्था मंदार नेचर क्लब का अध्ययन बताता है कि 2006 में दोबारा यहां गरुड़ दिखाई देने शुरू हुए। कदवा दियारा में इस समय करीब 700 गरुड़ हैं। इसके अलावा ये असम और पड़ोसी देश कंबोडिया में पाए जाते हैं।

कदवा दियारा में तीन इनकी तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें बड़ा गरुड़, छोटा गरुड़ और जांघिल शामिल हैं। ये अपना घोंसला कदंब, पाकड़, पीपल, सेमल आदि के पेड़ों पर बनाते हैं।

कोसी और गंगा के बीच में होने के कारण कदवा दियारा का इलाका गरुड़ के लिए अनुकूल है। यहां उसे प्रचुर मात्र में आहार के लिए मछली, सांप और केकड़े मिल जाते हैं। अब लोग भी संरक्षण में जुट गए हैं। यही वजह है कि यह इलाका गरुड़ों का प्रजनन केंद्र बन चुका है। - अरविंद मिश्र, अध्यक्ष, मंदार नेचर क्लब

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