Covid Center Bhagalpur : सांसें उखड़ चुकी थी, सेवा से बचा लिया
Covid Center Bhagalpur Live कोरोना संक्रमितों का इलाज यहां कुछ इस प्रकार की जाती है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़े। लेकिन उनको कोई सुविधा ही नहीं है।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। कोविड सेंटर भागलपुर का बिल्डिंग नंबर एक। बुधवार-गुरुवार की दरमियानी रात। करीब सवा एक बजे हैं। बिल्डिंग के मुख्य द्वार पर लगे डायनिंग टेबल पर एक लड़की मरीज को लिटाया गया है। उसका दम पूरी तरह से उखड़ा हुआ है। उसे सांस लेने में परेशानी हो रही है। पास में उसकी भाभी बैठी है। वहां पर कोरोना मरीजों के खान-पान और आवासन की व्यवस्था देख रहे ठीकेदार महेश तुलस्यान, दीपक चौबे के दो सहकर्मी लड़की के बाल और तलवा में तेल की मालिश कर रहे हैं। कोरोना से पूरी तरह बेखौफ होकर। उनके हाथों में ग्लब्स तक नहीं थे तभी। चिकित्सा कार्य से जुड़े लड़की के एक भाई भी वहीं भर्ती हैं। उनकी समझ है कि लड़की को गैस हो गया है। उन्होंने अपने घर से आला, ब्लडप्रेशर जांच मशीन और कुछ सूई-दवाई मंगाई। उन्हें विश्वास है कि वे मरीज को नार्मल कर लेंगे और मायागंज अस्पताल भेजे जाने से बचा लेंगे। यहां परिवार के लोग हैं, लड़की हताश नहीं होगी।
शायद इन लोगों को मायागंज कोविड वार्ड की व्यवस्था की जानकारी है। उसी वक्त मायागंज से एक मरीज लौटा। अंतरिक्ष यात्री की तरह सफेद पीपीई किट से पूरी तरह से ढंका हुआ। एंबुलेंस से उतरने के बाद उसे बिल्डिंग नंबर एक के मुख्य द्वार के सामने लगे शामियाना के नीचे लाया गया। दिन में हुई बारिश के कारण शामियाने से कई जगहों से पानी बूंद-बूंद कर टपक रहा है। एक ने व्यंग्य किया इस शामियाना का बिल वाटर प्रूफ टेंट के रूप में सीएस कार्यालय से पास हो चुका है। शामियाना के नीचे जमीन पर हरी चट्टी लगाई गई है। समारोहों में टेंट वालों की ओर से लगाया जाने वाला कारपेट। बारिश हुए आठ घंटे से अधिक बीत चुका था, लेकिन शामियाना के रिसते रहने से यह कारपेट भी भीगा है। मायागंज से आए मरीज को यहीं पीपीई किट उतारकर एक प्लास्टिक की बैग में रखने कहा जाता है। पीपीई किट उतारते-उतारते मरीज निढाल हो चुका था। वह जमीन पर गिर जाता पर तभी मुख्य द्वार पर लड़की का मनोबल बढ़ा रहे युवकों में एक दौड़कर उसे पकड़ लेता है और वहीं भीगी चटाई पर बिठा देता है।
अब सामने डायङ्क्षनग टेबल पर एक लड़की मरीज और सामने शामियाने में पुरुष मरीज। दोनों की सांसें उखड़ चुकी हैं। बिङ्क्षल्डग पर हर ओर चिपकाए गए डॉक्टर के नंबर पर बात होती है। लाउडस्पीकर मोड में मोबाइल है। उधर से जवाब आया कि रात 11.48 बजे ही लड़की को मायागंज के लिए रेफर कर दिया है। उसे भेज दीजिए नहीं तो मर जाएगी। तभी शामियाना में निढाल बैठे मरीज ने उखड़ती आवाज में ही कहा- मायागंज भेजा तो और जल्दी मर जाएगी। यहां कोविड सेंटर में भले ही मेन गेट पर ताला लगता है, लेकिन वातावरण खुला-खुला है। वहां मायागंज तो एक किस्म से जेल है जेल। एक मझोले साइज के कमरे में पांच बेड है। बाहर से ताला मार दिया जाता है। फिर पूछने भी कोई नहीं आता कि ङ्क्षजदा हो या मर गए। मरेगा तो हर कोई। कोरोना से या ऐसे। आज या कल, लेकिन यहां लग रहा है कि कम से कम मरने से पहले अकेलेपन की मौत तो नहीं मरेंगे। अब तक करीब दो घंटे यहां बीत चुके हैं। लड़की ने दो बार उल्टी की। भाई ने सूई-दवाई थी वह कुछ काम करती प्रतीत हुई। वह कुछ नार्मल हुई तो भाई-भाभी उसे लेकर बेड पर चले गए। दूसरी ओर, शामियाने के नीचे बैठा मरीज भी नार्मल होता है। वह कहता है कि मायागंज में मानसिक रूप से कमजोर हो गए थे। अभी पीपीई किट में आए तो पीसना से भीग गए। इसी से बेहोशी जैसी स्थिति हो गई थी।
एक भाई नहीं सटा
लड़की की हालात खराब जानकार उसके घर से उसका एक और भाई आया। वही आला-ब्लडप्रेशर जांच मशीन आदि लेकर आया था। लेकिन वह अपनी बहन के निकट आने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। जबकि चिकित्सा कार्य से जुड़ा उसके दूसरे भाई ने पूरी ईमानदारी से अपना चिकित्सीय और भाई होने का धर्म निभाया। उसने बिना डरे अपनी बहन की जांच की, सूई-दवाई दी।
ये हैं सच में कोरोना योद्धा
कोविड सेंटर सच में यदि कोई कोरोना योद्धा है वह भोजन कराने, आवासन की व्यवस्था करने वाला ठीकेदार और उसके सहयोगी। इसके बाद सफाईकर्मी। उन्हें कोरोना मरीज सीधे संपर्क में आना ही पड़ता है। ये यहां आए मरीजों को बीमारी से जीतकर वापस लौटने को लेकर प्रोत्साहित करते हैं। ये अपना उदाहरण देते हैं कि कैसे साढ़े तीन महीने से कोरोना मरीजों के बीच हैं और स्वस्थ भी हैं। बाकी डॉक्टर या नर्स अगर कभी विशेष परिस्थिति में आए तो वे दूर से ही बात करते हैं। अगर किसी मरीज को कोई दिक्कत हुई तो उसे मानसिक मजबूती देने की जगह तत्काल मायागंज रेफर कर अपनी जिम्मेदारी पूरा कर लेते हैं।