निगम के लिए बोतलबंद और छह लाख आबादी को दूषित पानी

भागलपुर। नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी खुद बोतलबंद पानी पी रहे, लेकिन छह लाख आबादी को फ्लोराइड और

By JagranEdited By: Publish:Wed, 10 Aug 2022 02:21 AM (IST) Updated:Wed, 10 Aug 2022 02:26 AM (IST)
निगम के लिए बोतलबंद और छह  लाख आबादी को दूषित पानी
निगम के लिए बोतलबंद और छह लाख आबादी को दूषित पानी

भागलपुर। नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी खुद बोतलबंद पानी पी रहे, लेकिन छह लाख आबादी को फ्लोराइड और आर्सेनिक युक्त पानी पिला रहे हैं। स्थिति यह है कि जलमीनारो की न साफ-सफाई हुई और न ही आपूर्ति किए जाने वाले पानी की लैब में जांच हो रही। ऐसा तब हो रहा जब शहर में गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में भूमिगत जल में आर्सेनिक और दक्षिणी क्षेत्र में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भूगर्भ जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और दूसरे अन्य दूषित करने वाले तत्वों के मामले में भागलपुर की रिपोर्ट खराब है। भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा के मामले में यह शहर बिहार में चौथे स्थान पर है, जबकि आर्सेनिक, फ्लोराइड व आयरन के मामले में राज्य में पहले स्थान पर है। भूगर्भ जल में फ्लोराइड मानक से दोगुना है और आर्सेनिक मानक से 10 गुना, जबकि आयरन मानक से है दोगुना है।

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पानी की गुणवत्ता भगवान भरोसे

शहरी क्षेत्र में नगर निगम ने करीब 282 से अधिक प्याऊ, 78 के करीब डीप बोरिग का निर्माण तो करा दिया, लेकिन अब तक लैब में पानी की गुणवत्ता की जांच नहीं कराई गई। डीप बोरिग की निविदा में पानी की गुणवत्ता जांच का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं, डीप बोरिग के निर्माण के क्रम में भी पानी की जांच तक नहीं की जाती है। इससे शहरवासियों को जानकारी तक नहीं मिल पाती कि पानी में किस कैमिकल की मात्रा अधिक है और उनकी सेहत पर असर पड़ सकता है। पेयजल के लिए प्याऊ और बोरिग की व्यवस्था है, जबकि स्थिति यह है कि प्याऊ किसी काम के नहीं हैं। गुणवत्ता की बात करें तो बोरिग का पानी पीने लायक नहीं, बल्कि सिर्फ पौधों में पानी डालने के लायक है।

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जलमीनार और प्याऊ के टंकी की नहीं हुई सफाई

निगम के अधिकारी खुद के पीने के लिए मिनरल वाटर मंगवाते हैं और शहर के लोग वही कीड़े-मकोड़े वाला पानी पी रहे हैं। या यूं कहें जैसे-तैसे पानी का यूज होता है। सबको पता है कि सप्लाई वाले पानी की स्थिति बहुत खराब है, जिसका यूज खतरनाक साबित हो सकता है। कई जलमीनारो की कई साल से साफ-सफाई नहीं हुई है, फिर भी उसके पानी का उपयोग पीने के लिए किया जा रहा है। शहरी क्षेत्र में घंटाघर व मानिक सरकार जलमीनार से जलापूर्ति की जा रही है। पांच दशक पुराने जलमीनार की सफाई नगर निगम द्वारा नहीं कराई है। इसके साथ ही पिछले 10 वर्ष में 306 प्याऊ का निर्माण हुआ है। इनमें से 20 प्याऊ पूरी तरह से खराब हैं। इन प्याऊ के निर्माण के बाद टंकी की सफाई नहीं की गई। पानी की टंकियों में कीड़े और गाद भरी हुई है, लेकिन जलकल की टीम अब तक झांकने तक नहीं गई है।

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22 बड़े और 80 छोटे नालों का गिरता है पानी

नाथनगर से लेकर मायागंज अस्पताल व बरारी तक के तकरीबन 22 बड़े नालों और 80 छोटी नालियों का पानी जमुनिया धार में सीधे गिरता है। इस धार में मेडिकल वेस्ट के निस्तारण प्लांट का पानी भी सीधे गिरता है। नाथनगर के बुनकर बाहुल्य क्षेत्र से धागा रंगाई वाला पानी भी जमुनिया धार में ही गिरता है। इस कारण ठहरे हुए पानी का रंग काला व मटमैला हो जाता है। यह सब जानते हुए निगम वाटर व‌र्क्स में 12 माह में करीब आठ माह इसी पानी का जैसे-तैसे शोधन कर आपूर्ति कर रहा है। राव वाटर के साथ वाटर व‌र्क्स के चार तालाब में गंदगी भी जमा होती है। इन तालाबों की समय-समय पर गाद की उड़ाही भी नहीं होती है। जलकल के सहायक अधीक्षक कृष्णा प्रसाद ने पूछे जाने पर कहा कि पिछले चार माह में चार में से दो संप की उड़ाही की गई है। तालाबों की भी उड़ाही की जाएगी।

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निगम प्रतिदिन लैब भेजता है पीएचईडी को सैंपल

नगर निगम की जलकल शाखा का दावा है कि प्रतिदिन वाटर व‌र्क्स के पानी को जांच के लिए पीएचईडी लैब भेजा जाता है। एक दिन के लैब जांच पर 700 रुपये का भुगतान किया जाता है। वाटर व‌र्क्स में 135 वर्षों से नालगोंडा तकनीकी से नदी के पानी का शोधन किय जाता है। इसके लिए चूना, ब्लीचिग, फिटकरी व क्लोरिन जैसे रासायनिक पदार्थ का उपयोग किया जाता है। इसके उपयोग से जल में अतिरिक्त फ्लोराइड को निकालने की प्रक्रिया होती है, लेकिन इस विधि से शोधन कार्य लगभग बंद हो गया है। आधुनिक तकनीक से जलापूर्ति को लेकर करीब सवा पांच सौ करोड़ रुपये की योजना चल रही है। दिसंबर में जलापूर्ति योजना का कार्य पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अब तक 60 प्रतिशत भी कार्य पूर्ण नहीं हुआ है। ऐसे में 2023 भी शुद्ध पेयजल मिलेगा या नहीं इसपर भी संशय है।

जांच में मिले थे हानिकारक बैक्टीरिया और रसायनिक तत्व

टीएमबीयू रसायन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. विवेकानंद मिश्र की मानें तो 2015 में नगर निगम ने केंद्रीय लैब में पानी की जांच कराई थी। रिपोर्ट में हानिकारक बैक्टीरिया और रसायनिक तत्व मिलने की पुष्टि हुई थी। वाटर व‌र्क्स में जमुनिया धार से पानी लिया जा रहा है। वह मूल रूप से नाले का पानी है। नदियों का गंदा पानी तालाब के पानी में मिलने से इसमें प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इस पानी में लेड व मरकरी की मात्रा बढ़ जाती है। पानी में पांच पीपीएम आक्सीजन का रहना जरूरी है।

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अधर में जलापूर्ति योजना, बोरिग से आपूर्ति का इंतजार

शहर में जलापूर्ति योजना को लेकर बुडको को 19 डीप बोरिग का कार्य करना था। इसके लिए करीब 10 करोड़ भी आवंटन मिला, लेकिन पांच बोरिग से जलापूर्ति नहीं हुई। साथ ही तातारपुर में डीप बोरिग के लिए जगह नहीं मिलने पर योजना का कार्य पिछले तीन वर्ष से अधूरा पड़ा है। अलीगंज में दो डीप बोरिग का कार्य हुआ, लेकिन मुख्य पाइपलाइन से कनेक्शन नहीं जोड़ा गया है। इससे योजना रहते लोगों को जलापूर्ति से वंचित होना पड़ रहा है। यहीं हाल जलापूर्ति योजना के तहत जलमीनार निर्माण की है। बरहपुरा में बिना एनओसी के जलमीनार का प्रस्ताव बन गया। अब जगह नहीं मिलने से जलमीनार का कार्य फंस गया है।

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