महाशिवरात्रि : अजगवीनाथ के गंगाजल से ही विवाह पर स्नान करते हैं बाबा बैद्यनाथ Bhagalpur News

शिव विवाह पर अंग प्रदेश वर पक्ष और मिथिलांचल कन्या पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। तीन दशक पूर्व ब्रह्मलीन हो चुके महंथ पुरुषोत्तम भारती ने इस परंपरा को स्पष्ट किया था।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 09:04 AM (IST) Updated:Fri, 21 Feb 2020 09:04 AM (IST)
महाशिवरात्रि : अजगवीनाथ के गंगाजल से ही विवाह पर स्नान करते हैं बाबा बैद्यनाथ Bhagalpur News
महाशिवरात्रि : अजगवीनाथ के गंगाजल से ही विवाह पर स्नान करते हैं बाबा बैद्यनाथ Bhagalpur News

भागलपुर [उदय चंद्र झा]। प्राचीनकाल से यह परंपरा चली आ रही है कि महाशिवरात्रि पर उत्तरवाहिनी गंगातट स्थित बाबा अजगवीनाथ मंदिर के महंथ द्वारा भिजवाये गए गंगाजल से ही विवाह पर चारों प्रहर में बाबा बैद्यनाथ चार बार स्नान करते हैं। साथ ही बाबा बैद्यनाथ विवाह पूर्व स्नान के बाद यहीं से भिजवाई गई धोती-गमछा और जनेऊ धारण करते हैं। चूंकि यह धारणा है कि शिव विवाह पर अंग प्रदेश वर पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है और मिथिलांचल कन्या पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।

इस का निर्वहन करते हुए प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बुधवार को सुल्तानगंज की पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित बाबा अजगवीनाथ के महंथ प्रेमानंद गिरि द्वारा गंगाजल भरकर अजगवीनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित युगल किशोर मिश्र के हाथों बाबा बैद्यनाथ के स्नानार्थ जल भेजा गया। परंपरानुसार बाबा अजगवीनाथ के महंथ का बाबा बैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश वर्जित है, इसीलिए इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए पुरोहित के पूर्वजों के समय से ही उन्हीं के वंश और परिवार के लोग इस जल को लेकर पूरी पवित्रता और निष्ठा के साथ बाबा बैद्यनाथ के दरबार जाते हैं।

बताते चलें कि लगभग तीन दशक पूर्व ब्रह्मलीन हो चुके महंथ पुरुषोत्तम भारती ने इस परंपरा को स्पष्ट किया था। उन्होंने तब बताया था कि लगभग सात सौ वर्ष पूर्व गुरु भाई हरनाथ भारती और केदार भारती को दैनिक देवघर पदयात्रा के दौरान परीक्षा लेने के लिए बाबा बैद्यनाथ ने रास्ते के जंगल में सारा गंगाजल पी लिया था। तभी असमंजस में किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े दोनों गुरु भाइयों को स्वयं बाबा बैद्यनाथ ने समाधान बताते कहा था कि अब प्रतिदिन पदयात्रा कर गंगाजल लेकर देवघर आने की आवश्यकता नहीं है। जाओ तुम्हारी तपस्थली पर मृगचर्म के नीचे मेरा विग्रह लिंग है। ब्रह्म मुहुर्त के दौरान सवा घंटे मैं उसी में समाहित रहूंगा। तुम्हें मेरी दैनिक पूजा और जलाभिषेक का पुण्य उसी विग्रह लिंग की पूजा से प्राप्त होगा। साथ ही बाबा बैद्यनाथ ने निर्देशित किया था कि महाशिवरात्रि पर मेरे चतुष्प्रहर स्नान के लिए गंगाजल तुम ही वहां से भिजवाओगे लेकिन किसी भी स्थिति में तुम दोनों या तुम्हारे उत्तराधिकारियों को मेरे गर्भगृह में प्रविष्ट नहीं होना है। तभी से ये परंपरा अब तक चली आ रही है।

आज भी यहां के स्थानापति महंथ देवघर मंदिर में नहीं जाते हैं और प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर बाबा बैद्यनाथ के चतुष्प्रहर स्नान के लिए यहां से गंगाजल मंदिर के तीर्थ पुरोहित के वंशजों से विजया एकादशी तिथि को भिजवाया जाता है।

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