गंगा की गोद में पल-बढ़ रहा ऊदबिलाव का परिवार, भरपूर मिल रहा भोजन

गंगा भागलपुर शहर से उत्तर खिसकती जा रही है। सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच जल की कमी हो गई है। जगह-जगह रेत के टीले उभर आए हैं। ये रेत के टीले जैविक गतिविधियों के केंद्र बने हुए हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 09 Nov 2018 08:48 PM (IST) Updated:Sat, 10 Nov 2018 06:50 AM (IST)
गंगा की गोद में पल-बढ़ रहा ऊदबिलाव का परिवार, भरपूर मिल रहा भोजन
गंगा की गोद में पल-बढ़ रहा ऊदबिलाव का परिवार, भरपूर मिल रहा भोजन

भागलपुर (दिनकर)। जल की कमी के कारण भले ही गंगा नदी सिमट रही हो लेकिन यहां का कछार जैविक गतिविधियों से गुलजार है। पर्याप्त भोजन मिलने और प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण होने के कारण तेजी से विलुप्त हो रहे उदबिलाव की संख्या यहां बढ़ रही है। इनकी मौजूदगी से पुष्ट हुआ है कि सुल्तानगंज से कहलगांव और आगे तक गंगा नदी का इको सिस्टम दुरुस्त है।

संरक्षित है उदबिलाव

उदबिलाव वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित है। इससे पहले एशियन वाटर बर्ड्स सेंसस कार्यक्रम के अलावा अन्य कई सर्वेक्षणों में गंगा नदी के दियारा में उदबिलाव के लगभग आधा दर्जन परिवार को देखे गए हैं।

रेत के टीले बने जैविक गतिविधियों के केंद्र

बाढ़ खत्म होने के बाद फिर से गंगा नदी भागलपुर शहर से उत्तर खिसकती जा रही है। सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच जल की कमी हो गई है। जगह-जगह रेत के टीले उभर आए हैं। ये रेत के टीले जैविक गतिविधियों के केंद्र बने हुए हैं।

उदबिलाव का परिचय

उदबिलाव विलुप्त होता जलीय स्तनधारी जीव है। इनका मुख्य भोजन मछली है। इसका शिकार खाल और मांस के लिए किया जाता रहा है। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी भी होती है। इस कारण इसकी संख्या तेजी से घटती जा रही है। अब सरकार ने संरक्षण के लिहाज से इसके शिकार पर सख्ती से रोक लगा दी है। भारत में गंगा नदी और डेल्टा में इनका प्राकृतिक आवास था, जो अब सिमट कर कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित रह गया है।

मछली है प्रिय भोजन

जीव विज्ञान के प्राध्यापक सह बीएन मंडल यूनिवर्सिटी के प्रतिकुलपति डॉ फारुक अली कहते हैं कि नदी में स्मूथ इंडियन औटर प्रजाति के उदबिलाव देखे जाते हैं। इनका प्रिय भोजन मछली है। सांप और मेढ़क भी चाव से खाते हैं। गंगा नदी में टापू पर मांद में रहना पसंद करते हैं। इनका ज्यादा समय पानी में आहार की तलाश में बीतता है। यह समय-समय पर अपना ठिकाना बदल देते हैं लेकिन फरवरी से सितंबर तक जोड़ा बनाते हैं और प्रजनन करते हैं। गंगा नदी में अब तक उदबिलाव की संख्या पर सर्वेक्षण नहीं होने के कारण इसकी कुल संख्या का पक्का पता नहीं चल सका है।

इस पर शोध की जरूरत 

मंदार नेचर क्लब के संरक्षक सह वेटलैंड्स इंटरनेशनल के को-ऑर्डिनेटर अरविंद मिश्रा ने कहा कि गंगा की भौगोलिक स्थिति के साथ ही उदबिलाव के रहने का भी ठिकाना बदल रहा है। उदबिलाव की उपस्थिति जल की पारिस्थितिकी को दर्शाती है। विभिन्न सर्वेक्षणों के दौरान भागलपुर में गंगा नदी में अलग-अलग छाडऩ पर उदबिलाव देखे गए। सटीक संख्या नहीं बताया जा सकता। इस पर शोध की जरूरत है।

कई जलीय जीव देखे गए 

भागलपुर के वन प्रमंडल पदाधिकारी एस. सुधाकर ने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान गाद और रेत से बने टापुओं पर कई तरह के पक्षी और जलीय जीव देखे गए। इनकी उपस्थिति यह बताती है कि वे यहां सुरक्षित महसूस कर रहे हैं और आहार की भी कोई कमी नहीं हो रही है। सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी गांगेय डॉल्फिन अभयारण्य घोषित है, इसलिए समय-समय पर इसकी निगरानी की जाती है।

पर्यावरणविद् उत्साहित

- भरपूर मात्रा में मिल रहा भोजन, प्रजनन के लिए अनुकूल साबित हो रहा गंगा नदी के कछार क्षेत्र का वातावरण

- भारतीय वन्यजीव संस्थान के सर्वे में चला पता

- उदबिलाव की मौजूदगी से सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा के इको सिस्टम के दुरुस्त होने के मिल रहे संकेत

- गंगा नदी में टापू पर मांद में रहना पसंद करता है यह जीव

- 06 से अधिक उदबिलाव के परिवार देखे गए हैं एशियन वाटर बर्ड्स सेंसस कार्यक्रम के दौरान

- 13 प्रजातियां विश्वभर में है उदबिलाव की, इसमें से तीन भारत में पाए जाते हैं

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