उल्लासपूर्ण माहौल में मना मकर संक्रांति का त्योहार

शुक्रवार को मकर संक्रांति का त्योहार पूरे इलाके में उल्लास पूर्वक मनाया गया। श्रद्धालुओं ने बताया कि पंडितों के अनुसार 12 बजकर दो मिनट पर शुभ मुहूर्त प्रारंभ होते ही लोगों ने स्नान कर पूजा उपासना किया। इसके बाद मान्यता के अनुसार तिल-चावल से अराधना कर दही चूरा और तिलबा भोजन ग्रहण किया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Jan 2022 11:54 PM (IST) Updated:Fri, 14 Jan 2022 11:54 PM (IST)
उल्लासपूर्ण माहौल में मना मकर संक्रांति का त्योहार
उल्लासपूर्ण माहौल में मना मकर संक्रांति का त्योहार

चेरिया बरियारपुर : शुक्रवार को मकर संक्रांति का त्योहार पूरे इलाके में उल्लास पूर्वक मनाया गया। श्रद्धालुओं ने बताया कि पंडितों के अनुसार 12 बजकर दो मिनट पर शुभ मुहूर्त प्रारंभ होते ही लोगों ने स्नान कर पूजा उपासना किया। इसके बाद मान्यता के अनुसार तिल-चावल से अराधना कर दही चूरा और तिलबा भोजन ग्रहण किया।

जानकारी के अनुसार शाहपुर, चरिया बरियारपुर, श्रीपुर, खांजहांपुर, विक्रमपुर, बसही, गोपालपुर सहित अन्य पंचायतों में शांतिपूर्वक उल्लासपूर्ण माहौल में उक्त त्योहार संपन्न हो गया। इस दौरान खिली धूप के बीच बसौना घाट, चेरिया घाट, रामपुर घाट, विक्रमपुर घाट सहित बूढ़ी गंडक नदी के अन्य घाटों पर भी लोगों ने स्नान कर पूजा अर्चना की तथा दान किया। दक्षिण भारत में इसे पोंगल, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायणी, हरियाणा और पंजाब में माघी, असम में भोगाली बिहु, बंगाल में पौष-संक्रांति तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से मनाते हैं। हकीकत में क्या है मकर संक्रांति का महत्व :

मकर संक्रांति असल में सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश और सूर्य के दक्षिण से उत्तर दिशा में अर्थात उत्तरायण गति प्रारंभ होने का दिन है। आमतौर पर महीने भर की खरमास के बाद इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा की गति के आधार पर महीने को दो भागों कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष के रूप में बांटा गया है। इस तरह सूर्य की गति के आधार पर वर्ष को भी दो भागों में उत्तरायण और दक्षिणायन के रूप में बांटा गया है।

इस संबंध पबड़ा निवासी पंडित रामशंकर झा ने बताया कि उत्तरायण और दक्षिणायन का महत्व महाभारत में है। ज्ञात मान्यता है कि उत्तरायण में पृथ्वी प्रकाशमय होती है तथा दक्षिणायन में अंधकारमय होती है। चूंकि महाभारत में इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने शरीर का परित्याग किया था। कृष्ण ने उत्तरायण का महत्व बताते हुए महाभारत में कहा है कि उत्तरायण के छह प्रकाशमय महीनों में शरीर का त्याग करने से व्यक्ति पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसके विपरीत दक्षिणायन के छह अंधकारमय महीनों में शरीर छोड़ने पर उसे पुन: पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। पौराणिक कथा के अनुसार, मकर सक्रांति के दिन ही गंगा ने सागर के पुत्रों का उद्धार किया था। कर्मकांड के अनुसार, आज के दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य से श्रद्धालुओं को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पंडितों के अनुसार इस दिन पतंग पर अपनी मनोकामना लिखकर उड़ाने से पूर्ण होता है। बलिया : बलिया एवं डंडारी में मकर संक्रांति का त्योहार हर्षोल्लास के साथ शुक्रवार को मनाया गया। दिन के 12 बजते ही संक्रांति के प्रवेश करते ही लोग गंगा, बूढ़ी गंडक, कुंआ, तालाब, चापाकल, नल एवं नजदीक के अन्य सरोवरों में स्नान ध्यान कर अपने इष्टदेवता, कुलदेवता की पूजा अर्चना की। इसके बाद तिल-चावल, चूरा-दही, तिलबा, शक्कर, तिलकुट आदि ग्रहण किया। मकर संक्रांति के प्रवेश करते ही मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाएगा।

नावकोठी : प्रखंड क्षेत्र में मकर संक्रांति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पंचांग के अनुसार, 12.18 बजे के बाद ही शुभ मुहूर्त था। इसके बाद लोगों ने पवित्र नदियों एवं सरोवरों में स्नान कर पूजा पाठ किया। घर की बुजुर्ग महिलाओं के द्वारा सभी सदस्यों को तिल, चावल, गुड़ का मिश्रण कर प्रसाद के रूप में वितरित किया गया। मकर संक्रांति संपूर्ण भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही सागर के 60 हजार पुत्रों का गंगा ने उद्धार किया था।

गढ़हरा : मकर संक्राति का त्योहार शुक्रवार को गढ़हरा, बारो एवं राजवाड़ा सहित पूरे क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस तिथि को लेकर लोगों में संशय की स्थिति भी बनी रही। परंपरा के अनुसार, शुक्रवार को पूजा-अर्चना के बाद घरों के सदस्यों ने एक साथ बैठकर दही, चूरा एवं तिलकुट का आनंद उठाया। पुण्य काल प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना प्रारंभ की। प्रसाद ग्रहण के बाद बच्चे, युवक पतंग उड़ाने में मशगूल दिखे। पतंगबाजी करने वाले युवा सचिन झा, हंस राज, पीयूष सज्जन ने बताया कि परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का अलग महत्व है।

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